Saturday, April 12, 2014

बेवकूफियां

फिल्म समीक्षा

बिना बात की बेवकूफियां

धीरेन्द्र अस्थाना

आज से पेैंतीस चालीस साल पहले जो फिल्में बन रही थीं उनमें इस तरह के प्रंश्न नहीं पूछे जाते थे जो अतार्किक हों। मसलन फिल्म का हीरो गरीब और बेरोजगार है तो वह बड़े से बंगले में रह कर महंगे कपड़े कैसे पहनता है? एक धनवान लड़की एक गरीब लड़के से पहले प्यार कर लेती है फिर उसे छोड़ कर किसी अमीर आदमी का दामन क्यूं थाम लेती है। या फिर अमीर लड़की की दुनियां में गरीब लड़के का प्रवेश मुमकिन ही कैसे हुआ? उन दिनों सिनेमा के उलट हिंदी साहित्य में जो कहानियां लिखी जा रहीं थी उनका मुख्य विषय था मोहब्बत में सेंध लगाती आर्थिक असमानता। यानी माया के हाथों मोहब्बत का परास्त हो जाना। समय बदला। यह विषय थोड़े रोमांटिक तरीके से सिनेमा में भी आया। फिर और समय बदला और सिनेमा ज्यादा यथार्थवादी हुआ। उसके सरोकार बदले और वह सामाजिक विषमताओं तथा बदलाव की बातें करने लगा। लेकिन निर्देशिका नुपुर अस्थाना ने नये समय की फिल्म बेवकूफियां में जो विषय उठाया है वह पैंतीस चालीस साल पुराना ही है। बेशक पुराने विषय को उन्होंने नया लुक और नया ट्रीटमेंट दिया है। मगर इस विषय को बड़े पर्दे पर इतनी बार देखा जा चुका है कि फिल्म का आकर्षण जाता रहता है। निर्देशिका ने अगर नयी पीढ़ी की रिलेशनशिप का बारीकी से अध्ययन किया होता तो बेवकूफियां संभवतः अलग किस्म की फिल्म हो जाती। आज के समय में अगर दो लोग एक दूसरे को डूब कर प्यार करते हैं और दोनों ही कामकाजी हैं तो एक की नौकरी जाने पर दोनों के बीच दरार नहीं पड़ जाती है। आज का पुरूष बेरोजगार होने पर बड़ी सहजता से किचन और घर संभाल लेता है। वह अपने ईगो का हवाई जहाज नहीं बना लेता (डायलॉग फिल्म का है)। फिल्म की पटकथा भी पुरानी लगती है। फिल्म में जो समय दिखाया गया है वह तब का है जब पूरी दुनिया में आर्थिक मंदी का कहर आया हुआ था और पूरे विश्व में बड़े पैमाने पर लोगों की नौकरियां जा रही थीं। फिल्म का हीरो आयुष्मान खुराना भी एक एयरवेज कंपनी से निकाला जाता है। जबकि उसकी प्रेमिका सोनम कपूर लगातार तरक्की की सीढ़ियां चढ़ रही है। सोनम उसकी कार की किश्त, क्रेडिट कार्ड के बिल वगैरह सब भर रही है। इसी के साथ बढ़ रहा है आयुष्मान का फ्रस्ट्रेशन । दोनों में तकरार बढ़ती है और बात ब्रेकअप तक पहुंच जाती है। सोनम अपना तबादला दुबई ले लेती है जबकि आयुष्मान थक हार कर एक रेस्त्रंा मे मैनेजर हो जाता है । इस ब्रेकअप को कितनी कुशलता और दिलचस्प अंदाज में सोनम के पापा रिषी कपूर पैचअप में बदलते हैं यह जानने के लिए फिल्म देख लेने में कोई हर्ज नहीं है।  एक ठीक ठाक फिल्म है लेकिन वह आपके ज्ञान या संवेदना में कुछ जोड़ नहीं पाएगी। आयुष्मान, सोनम और रिषी का अभिनय कमाल का है और फिल्म के संवाद भी जानदार हैं। अगर फिल्म की कथा पटकथा थकी हुई न होती तो यह इस वर्ष की एक उल्लेखनीय फिल्म बन सकती थी।

निर्देशकः नुपुर अस्थाना
कलाकारः आयुष्मान खुराना, सोनम कपूर, रिषी कपूर
संगीतः रघु दीक्षित

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