Thursday, September 11, 2014

मेरी कॉम


फिल्म समीक्षा

  जुनून की शिखर यात्रा :  मेरी कॉम 

धीरेन्द्र अस्थाना

बहुत दिनों के बाद एक बहुत अच्छी फिल्म देखने को मिली। चक दे इंडिया और भाग मिल्खा भाग के बाद खेल पर बनी एक उम्दा फिल्म। बरफी के बाद प्रियंका चोपड़ा की अभिनय यात्रा में एक और मील का पत्थर। खेल फेडरेशनों के कुचक्रों , तानाशाही और जुल्मों को बेनकाब करने वाली एक और साहसिक फिल्म। कितने अभावों, प्रतिकूलताओं और वंचनाओं के बीच रह कर हमारे खिलाड़ी देश के लिए सोने और चांदी के पदक लाते हैं। लेकिन इस अविराम संधर्ष की सराहना करने के बजाय खेल फेडरेशनों के पदाधिकारी सत्ता के मद में प्रतिभाओं को नष्ट करने के षड्यंत्रों मे लीन रहते हैं। क्या इन मदान्ध लोगों पर नजर रखने और उन्हें सजा देने वाला कोई तंत्र विकसित नहीं किया जा सकता।देश विदेश के शहरों में खिलाड़ी होटल की डोरमेटरी में ठूंस दिए जाते हैं जबकि अधिकारी पांच सितारा सुविधाओं की ऐश का उपभोग करते हैं। और बिल फटता है खिलाडियों के नाम पर। खिलाडी को बैन करने का भय दिखा कर अक्सर उसका यौन शोषण करने की घटनाएं भी जब तब उजागर होती रहती हैं। खिलाडियों को भारत का नागरिक होने के बावजूद क्षेत्रवाद की राजनीति से भी लड़ना होता है।    इतने सारे मुद्दों को बैकड्र्रॉप में समेटकर निर्देशक उमंग कुमार ने भारत की महान, जीवित महिला बॉक्सर, मणिपुर की मेरी कॉम की संघर्ष यात्रा को अपनी फिल्म का विषय बनाया है। मेरी कॉम के किरदार को पर्दे पर जीवंत करने वाली अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने भी कमाल का परिश्रम, अभ्यास और अभिनय करके फिल्म को एक यादगार अनुभव में बदल दिया है। मेरी कॉम के पति के रूप में प्रियंका के अपोजिट जो लड़का दर्शन कुमार उतरा है उसने हालांकि खुद कहा है कि प्रियंका जैसी बड़ी अभिनेत्री के सामने उसका चुनाव सिर्फ इसलिए हुआ है क्योंकि उसका चेहरा मणिपुरी लुक देेता है। लेकिन हकिकत यह है कि पहली फिल्म होने के बावजूद उसने बड़ा ही सहज और स्वाभाविक अभिनय किया है। फिल्म की एक बड़ी यूएसपी उसके गाने भी हैं जो फिल्म को न सिर्फ परिभाषित करते हैं बल्कि गति भी देेते चलते हैं। क्रिकेट को महान समझने वाले लोग इस फिल्म को देख कर अपने ज्ञान में यह इजाफा भी कर सकते हैं कि बॉक्सिंग संभवतः सब खेलों के उपर है। क्योंकि यह जान लेवा और दमतोड़ है। फिल्म के संवाद तो बॉक्सिंग के अनिवार्य पाठ की तरह हैं। फिल्म में अनेक जगहों पर कुछ मर्मस्पर्शी सीन भी हैं जो थरथरा देते हैं। देश के बहुत सारे लोग जो शायद बॉक्सर मेरी कॉम के बारे में उतना नहीं जानते जितना सचिन तेंडुलकर के बारे में जानते हैं, इस फिल्म के बाद मेरी कॉम के जुझारू और जुनूनी व्यक्तित्व से आमना सामना कर सकेंगे। अनिवार्य रूप से देखने लायक फिल्म।
निर्देशक : उमंग कुमार
कलाकारः प्रियंका चोपड़ा, दर्शन कुमार
संगीत : शशि सुमन, शिवम





राजा नटवरलाल

फिल्म समीक्षा

 ठगी का मायाजाल : राजा नटवरलाल

धीरेन्द्र अस्थाना

दुनिया के एक शातिर ठग और छोटे मोटे डॅान के के मेनन को ठगने की कहानी है राजा नटवरलाल। इसे ठगता है इमरान हाशमी जो एक छोटा सा ठग है। इमरान हाशमी की प्रेमिका है हुमाईमा मलिक। यह पाकिस्तानी अभिनेत्री है और इसकी हिंदी में यह पहली फिल्म है। मगर वह पहली फिल्म में ऐसा कुछ नहीं कर पाई जो उसकी अभिनय क्षमता के प्रति उम्मीद जगाता हो। फिल्म में वह एक बार डांसर बनी है। छोटी मोटी ठगी से प्राप्त रकम को इमरान हुमाईमा पर लुटाता रहता है। इमरान का एक दोस्त है राधव जिसका इमरान के जीवन में बड़े भाई जैसा दर्जा है। इमरान एक बार कोई लम्बा हाथ मार कर हुमाईमा के साथ घर बसाना चाहता है और हुमाईमा को डांस बार से छुटकारा दिलाना चाहता है। एक दफा एक बार में शराब पीते हुए इमरान दो गुंडों की बातचीत सुन लेता है। दोनों कहीं से अस्सी लाख की रकम उठा कर कहीं पहुंचाने वाले हैं। इमरान फौरन अपने दोस्त राधव के घर पहुंचता है और उससे इस बड़ी ठगी में सहयोग चाहता है। दोनों मिल कर यह रकम पार करने में कामयाब हो जाते हैं और आपस में चालीस चालीस लाख बांट लेते हैं। लेकिन समस्या यह पैदा होती है कि यह रकम साउथ अफ्रीका के केपटाउन शहर में बैठे डॅान के के मेनन की है। वह दोनों की सुपारी दे देता है। इस क्रम में इमरान का दोस्त राधव मार दिया जाता है। हत्यारों को इमरान की तलाश जारी है लेकिन इमरान को अभी तक पहचाना नहीं गया है इसलिए वह बचा हुआ है। इमरान हिमाचल के शहर धर्मशाला पहुंचता है जहां देश का सबसे बड़ा ठग परेश रावल रहता है। यह बात इमरान को एक बार राधव ने ही बताई थी। इमरान परेश से अपना साथ देने की गुजारिश करता है। वह परेश के सहयोग से के के मेनन को ठग कर राधव की मौत का बदला लेना चाहता है। इसके लिए उसके पास एक योजना है। के के की एक बड़ी कमजोरी क्रिकेट है। इमरान एक नकली क्रिकेट टीम के के को बेच कर उससे कई सौ करोड़ रूपये ऐंठना चाहता है। यह है पूरी पटकथा जिसके उपर यह लगभग ढाई घंटे की फिल्म खड़ी हुई है। इस फिल्म के दो सकारात्मक गुण भी हैं। पहला इमरान, परेश रावल और के के मेनन का शानदार और सहज अभिनय। जो जिस किरदार में है उसमें एकदम जीवंत और विश्वसनीय लगता है। दूसरा गुण है संजय मासूम के बेहतरीन संवाद जो कहानी से मेल खाते हैं। फिल्म के एक दो गाने भी अच्छे हैं। के के मेनन को कितनी सफाई से ठगा जाता है इस पूरी प्रकिया को बड़े दिलचस्प ढंग से बुना गया है। लेकिन इसमें कुछ अतिरंजना भी है। क्रिकेट टीमें इतने साधारण तरीके से नहीं बिका करतीं। उनकी बोलियों का नजारा बेहद भव्य और राजसी होता है। उसमें ग्लैमर भी बहुत होता है। लेकिन इतनी सिनेमाई आजादी तो चलती है। फिल्म को अभिनय के मोर्चे पर बेहतरीन और कहानी के मोर्चे पर साधारण माना जा सकता है। लेकिन कहीं पर भी फिल्म बोर नहीं करती। एक बार देखी जा सकती है।
   
निर्देशक : कुणाल देशमुख
कलाकारः इमरान हाशमी, हुमाईमा मलिक, परेश रावल, के के मेनन
संगीत : युवान शंकर राजा