Saturday, December 22, 2012

दबंग-2


फिल्म समीक्षा

गदर मचाने आयी ‘दबंग-2‘

धीरेन्द्र अस्थाना

अगर पर्दे पर सलमान खान के एंट्री लेते ही मुंबई जैसे महानगर के दर्शक भी सीटियां बजाने लगते हैं तो अनुमान लगाया जा सकता है कि देश के बाकी शहरों में क्या होता होगा। सलमान खान की लोकप्रियता का आलम गजब का है। उनकी एंग्रीमैन की छवि गदर मचा देती है। ‘दबंग‘ की तरह ‘दबंग-2‘ भी हिट है। फर्क इतना है कि ‘दबंग‘ के निर्देशक अभिनव कश्यप थे जिन्होंने मसालों को कहानी पर हावी नहीं होने दिया था। ‘दबंग-2‘ के निर्देशक सलमान के अपने भाई अरबाज खान हैं जिन्होंने मसाले कुछ ज्यादा मिला दिए हैं जिस कारण फिल्म की कहानी थोड़ा दब गयी है। लेकिन तो भी ‘दबंग-2‘ हुड़ हुड़ दबंग है जिसे देखने का अपना मजा है। दर्शकों ने बहुत डूबकर फिल्म को देखा भी और एंजॉय भी किया। पिछली बार खलनायक सोनू सूद थे, इस बार प्रकाश राज हैं, दक्षिण के स्टार खलनायक, जो बहुत तेजी से हिंदी सिनेमा में भी अपनी मजबूत जगह बना रहे हैं। पिछली बार की प्रेमिका सोनाक्षी सिन्हा इस बार सलमान की पत्नी के रोल में हैं। चुलबुल पांडे इस बार भी अपने पुराने अंदाज में हैं बल्कि कह सकते हैं कि पहले से ज्यादा आक्रामक तेवर में। प्रकाश राज के गुंडे भाई की भूमिका में प्रतिभाशाली युवा एक्टर दीपक डोबरियाल हैं जिन्हें कुछ ज्यादा ही खतरनाक डायलॉग बोलता देख सलमान का सहयोगी एक सिपाही बोलता है- पर्सनालिटी को देखते हुए यह कुछ ज्यादा नहीं बोल रहा है। ऐसा बुलाकर दीपक की कद-काठी को जस्टीफाई किया गया है लेकिन खुद दीपक को तय करना है कि अगर उन्हें आगे चल कर ऐसे ही रोल करने हैं तो अपना जिस्म ज्यादा बलशाली और चेहरा रौद्र करना होगा। इस बार मलाईका अरोड़ा खान के अलावा करीना कपूर का आइटम डांस ‘फेवीकोल‘ भी रखा गया है जिसमें करीना ने बोल्डनेस की एक नयी ऊंचाई दिखा दी है। दर्शक इस आइटम नंबर पर सीटियां बजा रहे थे। ज्यादा तो नहीं मगर थोड़ी बहुत कॉमेडी भी जगह-जगह रखी गयी है जो गुदगुदाती है। फिल्म के क्लाईमेक्स में जब सलमान खान एक-एक कर प्रकाश राज के गुंडों का सफाया करते हैं तो दर्शक इन स्टंट दृश्यों को सांस रोक कर देखते हैं। ‘फेवीकोल‘ की तरह ‘पांडे जी सीटी बजाएं‘ गाना भी पहले ही लोकप्रिय हो चुका है। बढ़िया टाइमपास फिल्म है। 

निर्देशक: अरबाज खान
कलाकार: सलमान खान, सोनाक्षी सिन्हा, अरबाज खान, प्रकाश राज, विनोद खन्ना, दीपक  डोबरियाल, करीना और मलाईका।
संगीत: साजिद-वाजिद

Monday, December 17, 2012

खिलाड़ी 786


फिल्म समीक्षा

खिचड़ी मसालेदार उर्फ ‘खिलाड़ी 786‘

धीरेन्द्र अस्थाना



पहले ही बता दें कि अक्षय कुमार की नयी फिल्म ‘खिलाड़ी 786‘ से कुछ बड़ी उम्मीदें न लगायें। यह उस जोनर की फिल्म है जो ‘लार्ज द दैन लाइफ‘ वाले सिद्धांत का सहारा लेकर केवल जनता का मनोरंजन करने के लिए बनायी जाती है। वह  यह फिल्म भी शुद्ध रूप से एक एंटर टेनर फिल्म है, जिसे एक्शन, इमोशन, कॉमेडी का तड़का लगाकर एक मसालेदार खिचड़ी की तरह बनाया गया है। फिल्म पूरी तरह दर्शकों को अपने साथ बांधे रखने में सफल हुई है। इसका प्रमाण यह है कि पूरी फिल्म में या तो दर्शक जब तक हंसते नजर आते हैं या फिर सांस रोककर अक्षय कुमार की हैरतअंगेज मारधाड़ का मजा लेते हैं। कुछ पुरानी फिल्मों की तरह इस फिल्म में भी बचपन में बिछड़े दो भाइयों को मिला देने का फामरूला फिल्म के क्लाइमेक्स में डाला गया है। अक्षय कुमार एक फौलादी किस्म का जांबाज लड़ाका है जो पुलिस की वर्दी पहनकर तस्करी करने वालों के ट्रक जब्त करता है और पुलिस को सौंप देता है। बदले में उसे मोटा इनाम मिलता है। उसकी जिंदगी में एक दुख है कि अनेक प्रयासों के बाद भी उसका विवाह नहीं हो पा रहा है। इस कथा के सामने मिथुन चक्रवर्ती की दुनिया रची गयी है। मिथुन एक डॉन है, जिसका एक ही सपना है कि उसकी बहन असिन की शादी किसी इज्जतदार, शरीफ बहन लड़के के साथ हो जाए। असिन एक दबंग और जिद्दी लड़की है जो एक गुंडे से प्यार करती है। असिन और अक्षय की शादी कराने का काम संयोग से हिमेश रेशमिया की झोली में आ गिरता है। हिमेश को उसके पिता ने घर से निकाल दिया है क्योंकि पिता जो भी शादी कराते हैं, उसमें हिमेश कोई बाधा खड़ी कर देता है। घर से निकले हिमेश की एक मात्र इच्छा एक अदद शादी कराने की है। यह तीसरी कथा है। चौथी और मूल कथा इन तीनों कथाओं के मिल जाने से बनती है यानी ‘खिलाड़ी 786‘ नाम की फिल्म। भले ही रोमांटिक रोल वाले हिमेश को दर्शकों ने खास पसंद नहीं किया लेकिन इस फिल्म में थोड़ी बहुत कॉमेडी करके उन्होंने अभिनय में अपनी जगह बनाने की सफल कोशिश की है। फिल्म की कहानी भी उन्हीं की है और संगीत भी। और ‘बावरिया‘ वाला गाना अपने अलग अंदाज के चलते पहले ही ‘टॉप टेन‘ गीतों में अपनी जगह बना चुका है। असिन के पास ज्यादा करने को कुछ था नहीं तो भी एक बिगडै़ल और गुस्सैल चरित्र को उन्होंने बखूबी किया है। फिल्म के अंत में काफी मारधाड़ के बाद अक्षय-असिन की शादी हो जाती है और सबके सपने पूरे हो जाते हैं। मनोरंजन फिल्म है। बोर हो रहे हैं तो फिल्म देख जाएं। 

निर्देशक: आशीष आर. मोहन
कलाकार: अक्षय कुमार, असिन, हिमेश रेशमिया, मिथुन चक्रवर्ती, राज बब्बर, जॉनी लीवर, संजय मिश्रा
संगीत: हिमेश रेशमिया

Saturday, December 1, 2012

तलाश


फिल्म समीक्षा

आत्माओं तक ले जाती है ‘तलाश‘

धीरेन्द्र अस्थाना

यह आमिर खान की ही फिल्म है। वह इस ‘तलाश‘ के न सिर्फ हीरो हैं बल्कि एक प्रोड्यूसर भी हैं। इसकी निर्देशिका रीमा कागती हैं और फिल्म बनने के दौरान रीमा से आमिर के कुछ रचनात्मक मतभेद भी हुए थे। फिल्म देखने के दौरान कुछ कुछ अंदाजा हो जाता है कि मिस्टर परफैक्शनिस्ट निर्देशिका से क्यों असहमत हुए होंगे। असल में यह उस तरह की फिल्म नहीं है जिस तरह की फिल्में आमिर खान की होती है। फिर चाहे निर्देशक कोई भी हो। यह नये समय में खड़ी हुई आधुनिक अंदाज और समकालीन मुहावरे वाली वैसी फिल्म है, जैसी पुराने जमाने ‘वह कौन थी‘ या ‘महल‘ या ‘कोहरा‘। रामगोपाल वर्मा की ‘भूत‘ से थोड़ा अलग लेकिन आत्माओं के अस्तित्व पर जिरह करने वाली भी और उनके अस्तित्व में आस्था व्यक्त करने वाली भी। फिल्म का कथानक उजागर नहीं करेंगे क्योंकि इससे इस सस्पेंस फिल्म का सस्पेंस ही गायब हो जाएगा। सब के सब जमे हुए कलाकार हैं इसलिए अभिनय के मोर्चे पर फिल्म लाजवाब है। ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर‘ से चर्चित नवाजुद्दीन ने वेश्याओं की गली में काम करते लंगड़े लेकिन चालबाज टपोरी के रूप में शानदार काम किया है। इस लड़के में आग है। यह बहुत दूर तक जाने वाला है। फिल्म की पटकथा बेहद कसी हुई है। दर्शक एक पल के लिए भी उलझता या ऊबता नहीं है। फिल्म के साठ फीसदी हिस्से में रानी मुखर्जी छायी रहती हैं लेकिन बाकी के चालीस फीसदी में करीना कपूर भी अपना करिश्मा करती नजर आती हैं। फिल्म की सबसे बड़ी खूबी उसका सस्पेंस हैं। फिल्म शुरू होते ही एक कार एक्सीडेंट में जिस फिल्मी हीरो की मौत होती है उसका लगभग अंत तक पता नहीं चलता कि ऐसा अजीबोगरीब एक्सीडेंट हुआ कैसे? वह तो अंत में उसी जगह, हुबहू उसी तरह आमिर की जीप दुर्घटनाग्रस्त होती है तब यह रहस्य उजागर होता है कि माजरा क्या है? इस माजरे तक पहुंचने के लिए जो यात्रा की गयी है वह निहायत दिलचस्प और सनसनीखेज है। फिल्म में गाने हैं लेकिन जवान पर चढ़ने वाले नहीं हैं। संगीत के स्तर पर फिल्म सामान्य ही है। फिल्म के अंत में आमिर खान की तलाश पूरी हो जाती है जब उन्हें अपने मृत बेटे करण की एक चिट्ठी द्वारा उस ‘गिल्ट‘ से मुक्ति मिल जाती है जिसे लेकर वह जी रहे थे। बेटे की दुर्घटना के समय अपनी जिम्मेदारी ठीक से निभा नहीं सकने का अपराध बोध आमिर ने बेहद मार्मिक ढंग से लिया है। फिल्म देख लें। 

निर्देशक: रीमा कागती
कलाकार: आमिर खान, रानी मुखर्जी, करीना कपूर, नवाजुद्दीन सिद्दीकी
संगीत: राम संपत