Friday, July 20, 2012

‘काका’ को देश का आखिरी सलाम


काकाको देश का आखिरी सलाम

धीरेन्द्र अस्थाना

रोमांस के बादशाह राजेश खन्ना को बारिश में नम आंखों के साथ उनके परिजनों, दोस्तों और चाहनेवालों ने अंतिम विदाई दी। जब फूलों से लदे हुए ट्रक में रखे एक पारदर्शी बॉक्स में राजेश खन्ना का पार्थिव शरीर विले पाल्रे स्थित पवन हंस श्मशान स्थल पर पहुंचा तो वहां एक अजीब सा भावुक मंजर उपस्थित हो गया। उत्तेजना, सनसनी और शोकग्रस्त लोगों के अपार समूह में अपने चहेते सुपर स्टार की एक झलक पाने की भारी बेचैनी थी। लोग अपने-अपने कैमरों और मोबाइल से जीते जी किंवदंती बन चुके राजेश खन्ना की इस अंतिम यात्रा को लगातार कैद कर रहे थे। लोगों की भीड़ सड़क पर लगे लोहे के डिवाइडर को तोड़ने पर अमादा थी। लोगों ने राजेश खन्ना की फेम जड़ित तस्वीरें हाथ में उठा रखी थीं, जिनमें से कुछ पर लिखा था -राजेश खन्ना आपके बिना देश अधूरा।सुबह साढ़े ग्यारह बजे के करीब राजेश खन्ना के दामाद अभिनेता अक्षय कुमार और उनके बेटे आरव ने मिलकर काका को मुखाग्नि दी। सुरक्षा के भारी इंतजाम किए गए थे। बेहद चुने हुए लोगों को ही श्मशान गृह के भीतर जाने दिया गया था। मीडियाकर्मी भी भीतर नहीं जा पाए थे। खबरों के मुताबिक, बॉलीवुड की बीसियों नामचीन हस्तियां श्मशान गृह के भीतर मौजूद थीं। सुबह करीब दस बजे मुंबई के कार्टर रोड स्थित आशीर्वादबंगले से राजेश खन्ना की अंतिम यात्रा शुरू हुई। काका का पार्थिव शरीर एक पारदर्शी बॉक्स में फूलों से लदे ट्रक पर रखा गया था ताकि आम जनता काका के अंतिम दर्शन सहजता से कर सके। ट्रक के ऊ पर राजेश खन्ना की पत्नी डिंपल कपाड़िया, दामाद अक्षय कुमार, बेटी रिंकी और नाती आरव मौजूद थे। ट्रक के सामने राजेश खन्ना के युवा दिनों की बड़ी सी तस्वीर रखी गई थी। अंतिम यात्रा के समय मुंबई में भारी बारिश चल रही थी। बारिश के बावजूद हाथ में छाता लिए लोग लगातार राजेश खन्ना के इस कारवां में शामिल होते जा रहे थे। शव यात्रा में दूर दूर तक, काले, पीले, नीले, लाल छाते दिख रहे थे। ट्रक के श्मशान स्थल तक पहुंचने तक अपार जनसमूह इकट्ठा हो चुका था। इतना ज्यादा लंबा और बड़ा ट्रैफिक जाम बीते दसियों वर्षों में मुंबईकरों ने नहीं देखा। इस ट्रैफिक जाम में अभिनय के शहंशाह अमिताभ बच्चन, उनके बेटे अभिषेक बच्चन और निर्देशक सतीश कौशिक भी फंसे हुए थे। यही कारण था कि अमिताभ और अभिषेक को अपनी गाड़ी से उतरकर अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए पैदल चलना पड़ा। इनकी एक झलक पाने के लिए भीड़ में अफरा-तफरी मच गई। पुलिस के सुरक्षाचक्र में दोनों को श्मशान स्थल के भीतर ले जाया गया। भीड़ को काबू में करने के लिए पुलिस को हल्के लाठीचार्ज का भी सहारा लेना पड़ा। राजेश खन्ना अपने समय में स्टाइल, आत्ममुग्धता और अभिमान के प्रतीक बन चुके थे। कॉलेज में कोई लड़का स्टाइल मारता था तो लड़कियां उसे चिढ़ाती थीं -क्या रे, खुद को राजेश खन्ना समझता है क्या?’ लेकिन पिछले कुछ समय से राजेश खन्ना मानो अपना ही यह गाना जी रहे थे -हजार राहें मुड़ के देखीं कहीं से कोई सदा न आयी.. लेकिन जिन लोगों ने उनकी अंतिम यात्रा देखी है वे इस बात के गवाह हैं कि राजेश खन्ना को अपना अंतिम सलाम देने के लिए लोग पूरी मुंबई से इकट्ठा हुए थे।

Saturday, July 14, 2012

कॉकटेल


फिल्म समीक्षा

संवेदना और मस्ती की ‘कॉकटेल‘

धीरेन्द्र अस्थाना


सैफ अली खान को मान लेना चाहिए कि प्यार और संवेदना में डूबी फिल्में उनके व्यक्तित्व के ज्यादा करीब लगती हैं। यह रिश्तों और रोमांस का ‘कॉकटेल‘ उनके लिए लकी भी साबित होता है। फिल्म की कहानी इम्तियाज अली ने लिखी है। इसलिए अनुमान तो था कि कहानी में प्यार का थीसिस और एंटी थीसिस जरूर होगा इसलिए इंटरवल तक जबर्दस्त मस्ती में डूबी फिल्म के बारे में इंटरवल के बाद पता चल जाता है कि अब यह एक गंभीर किस्म का ‘यू टर्न‘ लेने वाली है। संक्षेप में कहानी कुछ यूं है- सैफ एक दिलफेंक युवक है जो प्यार वगैरह में यकीन नहीं करता। उसके लिए लड़कियां बदलना चादर बदलने जैसा है। दीपिका एक प्रैक्टिकल, कामयाब और प्रोफेशनल लड़की है। उसे मां-बाप के होते हुए भी उनका प्यार नहीं मिला। दोनों लंदन में रहते हैं और टकरा जाते हैं। सैफ दीपिका के घर रहने चला आता है। वहां डायना पेंटी है जो अपने पति की तलाश में लंदन आयी है मगर पति उसे ठुकरा चुका है। उसे दीपिका के घर में शरण मिलती है। तीनों जवान दिल दोस्तों के साथ मौज मजा करते हुए एक ही घर में एक साथ रहते हैं कि एक दिन घर में सैफ की मां आ जाती है। मां के संग-साथ से दीपिका को अहसास होता है कि भले ही उसके हिस्से में यह न आया हो लेकिन प्यार तो एक नायाब तोहफा है। वह सैफ से विवाह कर घर बसाना चाहती है, लेकिन तब तक तो लंपट किस्म के सैफ को डायना से प्यार हो चुका होता है। यह ‘थीम‘ इससे पहले कई फिल्मों में दिखायी जा चुकी है, लेकिन तो भी इसे बार-बार देखना अच्छा लगता है। कारण कि लफंगई कुछ ही देर के लिए भाती है। स्थायी तो मोहब्बत ही है। एक लंबे घटनाक्रम के बाद सैफ और डायना मिल जाते हैं और दीपिका हंसी-खुशी के साथ हार जाती है। इस फिल्म में दीपिका का काम इतना परिपक्व है कि वह एक सीनियर एक्ट्रेस होने का भ्रम देती नजर आती है। सैफ ने भी उम्दा काम किया है, लेकिन सबसे ज्यादा चकित करती है डायना पेंटी। यह उनकी पहली फिल्म है और इसी में वह अभिनय के काफी ऊंचे पायदान पर जाकर खड़ी हो गयी हैं। कहीं-कहीं वह तब्बू की झलक देती हैं। फिल्म के कई गाने पहले ही हिट हो चुके हैं। उन्हें फिल्माया भी अच्छे ढंग से गया है। रिश्तों, अभिनय, गीत, फिल्मांकन और मौज मस्ती का अच्छा कॉकटेल है यह फिल्म। देख लें। 

निर्देशक: होमी अदजानिया
कलाकार: सैफ अली खान, दीपिका पादुकोन, डायना पेंटी, डिंपल कपाड़िया, बोमन ईरानी, रणदीप हुडा
संगीत: प्रीतम चक्रवर्ती

Saturday, July 7, 2012

बोल बच्चन


फिल्म समीक्षा

रोहित की चाट मसाला ‘बोल बच्चन‘

धीरेन्द्र अस्थाना

रोहित शेट्टी मनोरंजन के नये और युवा बादशाह हैं। वह अपनी फिल्मों पर निर्माताओं का भरपूर पैसा लगवाते हैं। लेकिन दोनों हाथों से बटोरकर तिगुना-चौगुना पैसा वापस भी करते हैं। विधु विनोद चोपड़ा अच्छा सिनेमा बनाते हैं। उनकी फिल्में भी दर्शक टूटकर देखते हैं। इसके बावजूद उन्हें लगता है कि सिर्फ रबिश फिल्में ही सौ करोड़ कमाती हैं। रोहित शेट्टी को ऐसे बयानों से फर्क नहीं पड़ता। वह सौ करोड़ कमाने के लिए ही फिल्में बनाते हैं और निर्माताओं के चहेते दर्शक बने हुए हैं। एक बार फिर वे दर्शकों के स्वाद को चटपटा टच देने के लिए ‘बोल बच्चन‘ के रूप में अपनी बारह मसालों की चाट को लेकर हाजिर हुए हैं। रोहित का हिट फॉर्मूला है कॉमेडी के ताने-बाने में थोड़ा सा इमोशन और थोड़ा सा एक्शन डालकर एक तेज रफ्तार लार्जर दैन लाइफ ड्रामा तैयार करो। जैसे भी हो दर्शक को मजा मिलना ही चाहिए। उनका यह फंडा चलता है। दर्शक खुश होने के लिए हंसने के लिए रोमांचित होने के लिए रोहित की बनायी चाट खुशी-खुशी खाने सिनेमा हाल के भीतर आता है। रोहित को दर्शकों का टोटा नहीं पड़ता और फिल्म की टीम के घर पैसा बरसता है। ‘बोल बच्चन‘ की कहानी में कोई ताजगी नहीं है। पूरी फिल्म का सेंट्रल थीम एक चिरपरिचित पुराना मुहावरा है। एक झूठ को छिपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते हैं। इस मुहावरे की जमीन पर पूरी फिल्म की इमारत खड़ी की गयी है। एक छोटे बच्चे की जान बचाने के लिए अभिषेक बच्चन एक विवादित मंदिर का ताला तोड़कर उसमें बने तालाब में डूबते बच्चे को बचाता है। फिर धर्मांध लोगों से अभिषेक को बचाने के लिए असरानी का बेटा अभिषेक का नाम अभिषेक बच्चन बता देता है। जबकि अभिषेक के किरदार का नाम अब्बास अली होता है। अजय देवगन गांव के निरंकुश तानाशाह जैसा है जो स्वभाव से क्रूर दिखता है लेकिन नेक दिल वाला सच्चा इंसान है। वह झूठ और धोखे से नफरत करता है। नाम वाले झूठ को छिपाने के लिए कई और झूठ बोले जाते हैं जिनको घटित करने के लिए कई कमाल धमाल कॉमिक सिचुएशन्स खड़ी की जाती हैं। अजय देवगन तो कॉमेडी, एक्शन और इमोशन सबके राजा हैं लेकिन इस फिल्म में अभिषेक ने भी गजब कॉमेडी और अजब एक्शन किया है। फिल्म की दोनों हीरोइनों असिन और प्राची देसाई को जितना भी मौका मिला, उन्होंने खुद को प्रमाणित किया। फिल्म के गाने पहले से ही हिट हैं। बिग बी से एक गाना करवा कर फिल्म की स्टार वेल्यू बढ़ायी गयी है। देखें और मजा करें। 

निर्माता: अजय देवगन
निर्देशक: रोहित शेट्टी
कलाकर: अजय देवगन, अभिषेक बच्चन, असिन, प्राची देसाई, असरानी, अर्चना पूरन सिंह
संगीत: हिमेश रेशमिया, अजय-अतुल गोगावले