Sunday, March 1, 2015

अब तक छप्पन 2

फिल्म समीक्षा
सत्ता का अंडरवर्ल्ड 
‘अब तक छप्पन 2‘

धीरेन्द्र अस्थाना

सहारा इंडिया परिवार द्वारा बनायी गयी सुपरहिट फिल्म अब तक छप्पन का यह सीक्वेल भी बेहतर ढंग से बना और बुना हुआ सिनेमा है। हालांकि निर्देशक और प्रोड्यूसर बदल गये हैं लेकिन इस सीक्वेल में भी सहारा मूवीज स्टूडियो को क्रेडिट दिया गया है। अब तक छप्पन जहां खत्म हुई थी उस समय के दस साल बाद के कालखंड पर यह सशक्त सीक्वेल खड़ा हुआ है। मुंबई में बढ़ते क्राइम से चिंतित प्रदेश के गृह मंत्री विक्रम गोखले गोवा के अपने गांव में शांत जीवन बिता रहे एनकाउंटर अधिकारी नाना पाटेकर को फिर से बुला कर हालात संभालने को कहते हैं। नाना मना कर देेते हैं। लेकिन जब नाना का संगीतकार बेटा अमन उनसे कहता है कि मेरे पिता पुलिस हैं वह मछुआरे नहीं हैं जो पूरा पूरा दिन मच्छी पकड़ने में बिता देता है, तो नाना नयी जिम्मेदारी संभालने अपने बेटे के साथ फिर से मुंबई आ जाते हैं। आज के फिल्मी समय में यह जानना दिलचस्प होगा कि फिल्म में ना तो कोई आईटम सोंग है ना ही को लव ट्रैक। सीधे सीधे गुंडों और पुलिस की मुठभेड़ हैं। मुंबई आते ही नाना गुंडों का शूटआउट शुरू कर देते हैं। बदले में उन पर भी हमले होते रहते हैं। पिछली फिल्म में उन्होंने गुंडों के हमलों में अपनी पत्नी को खोया था। इस फिल्म में उनका इकलौता बेटा मारा जाता है। पुलिस विभाग में उनकी इज्जत करने वाले अधिकारी भी हैं तो उनसे जलने वाले भी। नाना किसी की परवाह नहीं करते और अपने जांबाज तथा मुंहफट अंदाज में काम करते रहते हैं। फिल्म में गुलपनाग एक क्राईम रिर्पोटर बनी है लेकिन उसके लिए फिल्म में कोई खास स्पेस नहीं है। राज जुत्शी विदेश में बैठा इंडिया का कुख्यात डॉन है। वह भी जब तब नाना पर हमले करवाता रहता है। नाना प्रदेश के मुख्य मंत्री और गृह मंत्री को अच्छा राजनेता मानता है लेकिन उस वक्त उसके पैरों तले की जमीन खिसक जाती है जब उसे पता चलता है कि सत्ता और अंडरवर्ल्ड का कितना गहरा गठजोड़ है। विदेश में बैठा डॉन राज मंत्री गोखले का आदमी निकलता है जिसने गोखले के कहने पर मुख्य मंत्री का मर्डर करवाया है ताकि गोखले मुख्य मंत्री बन सके । गोखले नाना को बताता है कि उसे तय करना है कि वह उसके साथ आएगा या वापस अपने गांव में जा कर मछली मारेगा। गोखले नाना को बताता है कि एक सफल राजनेता को पुलिस भी चाहिए और माफिया डॉन भी। अंत में मुख्य मंत्री की श्रद्धांजलि सभा हो रही है। गोखले के भाषण के समय नाना भी वहां पहुंचता है। पुलिस कमिशनर गोविंद नामदेव नाना का रिवाल्वर रखवा लेते हैं। भाषण के बाद नाना गोखले के पास पहंुच कर उनके पांव छूता है तो गोखले मुस्कुरा कर कहते हैं अच्छा फैसला किया। वैलकम बैक। नाना मंच से दो शब्द कहना चाहता है और इजाजत मिलने पर कहता है- मैनंे हमेशा छुप कर एनकाउंटर किये ताकि उनका कोई सबूत ना रहे। लेकिन आज मैं इस विशाल जन सैलाब के सामने एनकाउंटर करने वाला हूं। इसके बाद वह अपने कलम रूपी खंजर से गोखले को मार डालता है। फिर वह जेल में कहता है कि नयी पीढ़ी की जिम्मेदारी है कि वह ऐसे करप्ट लोंगो का एंनकाउंटर करती रहे। अच्छी फिल्म है देखनी चाहिए।
निर्देशक: एजाज गुलाब
कलाकार: नाना पाटेकर, गुल पनाग, विक्रम गोखले, गोविंद नामदेव
संगीत: राज जुत्शी, संजीव चौटा





बदलापुर

फिल्म समीक्षा
बचकाने बदले की बदलापुर 
धीरेन्द्र अस्थाना
बड़ी अजीबोगरीब, तर्कहीन और बेसिर पैर की फिल्म है बदलापुर। दो स्टार इसलिए दिए हैं क्योंकि फिल्म में दो बेहतरीन गाने और नवाजुद्दीन जैसे सपोर्टिंग आर्टिस्ट का कमाल का अभिनय है। नवाज नेगेटिव किरदार में है लेकिन पूरी फिल्म में वही छाया हुआ है। अपने किरदार में पूरी तरह घुस जाना और बिल्कुल किरदार जैसा हो जाना इसे एक्टिंग के संसार में कायांतरण कहते हैं। नवाज ने इस कायांतरण कला को साध लिया है।  फिल्म को नवाज के अभिनय के कारण ही देखा जा सकता है। वरूण धवन फिल्म का हीरो है लेकिन अपनी करतूतों से वह विलन के रूप में बदलता नजर आता है। प्रतिशोध में भरे हुए व्यक्ति के चरित्र को वह साध नहीं सका है। असल मंे उसके चरित्र में ही नहीं पूरी पटकथा में ही काफी सारे झोल हैं। फिल्म को ठीक से सोचा ही नहीं गया है। दूसरी तरफ नवाज विलेन है लेकिन अपनी कुर्बानी से वह दर्शकों की सहानुभूति बटोर ले जाता है। एक हत्यारे को महानता का, संवेदनशीलता का और इंसानियत का चोला पहना कर निर्देशक कौन सा नया सिद्धांत गढ़ना चाहते हैं यह समझ से परे है। फिल्म का आरंभ अच्छा हुआ था। नवाज और विनय पाठक एक बैंक लूटने के बाद वरूण धवन की पत्नी की कार में धुस जाते हैं। तेज चलने की वजह से अचानक कार का दरवाजा खुल जाता है और यमी का बेटा सड़क पर गिर जाता है। यमी के शोर मचाने और प्रतिवाद करने के कारण कार चलाता नवाज यमी को गोली मार देता है। फिर वह अपने साथी विनय पाठक को एक मोड़ पर उतार कर गाड़ी भगा ले जाता है। आखिर पुलिस की दो गाड़ियां उसे घेर लेती हैं। नवाज को बीस साल की जेल होती है। जेल से पहले कस्टडी में बहुत पिटने के बाद भी वह अपने पार्टनर का नाम नहीं बताता है। जेल में रहते हुए नवाज को केंसर हो जाता है। अब तक वह सजा के पंद्रह साल पूरे कर चुका है। इस बीच वरूण भी पुणे छोड़ मुंबई के बदलापुर उपनगर में बस चुका है। नवाज एक साल के भीतर मरने वाला है। कैदियों के लिए काम करने वाली एक संस्था की अध्यक्ष दिव्या दत्ता वरूण धवन के पास इस आशय से पहुंचती है कि वह नवाज को मा फ कर दे ताकि नवाज जेल में नहीं अपने घर में मर सके। वरूण मना कर देता है लेकिन जब नवाज की मां वरूण को नवाज के पार्टनर का नाम और पता ठिकाना बताने का वायदा करती है तो वरूण माफी नामा लिख देता है। नवाज जेल से रिहा हो जाता है। वह रिहा हो कर विनय पाठक के होटल पहुंचता है जहां उसे पता चलता है कि विनय पाठक और उसकी पत्नी राधिका आप्टे पांच दिन से गायब हैं। नवाज के वहां पहुंचने से पांच दिन पहले वरूण विनय पाठक और उसकी पत्नी का मर्डर कर लाशें जमीन में गाड़ चुका होता है। बैंक डकैती का जो ढाई करोड़ रूपया नवाज को मिलना होता है वह वरूण ले जाता है। नवाज वरूण से मिलने जाता है तो वरूण उसे बता देता है कि उसने नवाज के दोस्त और उसकी बीबी को मार कर कहां गाड़ा है। नवाज उसे बताता है कि उसकी पत्नी पर गोली विनय ने नहीं नवाज ने चलायी थी। इसके बाद नवाज पुलिस में समर्पण कर देता है और विनय पाठक के कत्ल का इल्जाम अपने सिर ले लेता है। तब नवाज की प्रेमिका हुमा कुरैशी वरूण के पास पहुंचती है और कहती है नवाज ने तुम्हें माफ करके जीवन जीने का दुसरा मौका दे दिया है। लेकिन इस मौके का तुम करोगे क्या? अब तो तुम्हारा बदला भी पूरा हो गया है। इसके बाद पिक्चर समाप्त हो जाती है। 
निर्देशक: ़श्री राम राघवन
कलाकार: वरूण धवन, हुमा कुरैशी, यमी गौतम, नवाजुद्दीन
संगीत: सचिन-जिगर