Saturday, July 25, 2009

लक

फिल्म समीक्षा

यह ‘लक‘ है लार्जर दैन लाइफ

धीरेन्द्र अस्थाना

पहले ही स्पष्ट कर दें कि यह फिल्म एक बहुत बड़ा रियलिटी शो है। जैसा अक्षय कुमार का टीवी शो ‘खतरों के खिलाड़ी‘ था या जैसा इन दिनों दिखाया जा रहा ‘इस जंगल से मुझे बचाओ‘ है। टीवी के रियलिटी शोज और फिल्म ‘लक‘ में सिर्फ एक ही फर्क है। ‘लक‘ में खतरों से खेल रहे लोगों पर करोड़ों का जुआ लगा हुआ है और यहां पराजित होने पर मौत ही एकमात्र विकल्प है। फिल्म की सबसे बड़ी खूबी इसकी पटकथा है जो बेहद कसी हुई है। फिल्म के निर्देशक सोहम शाह ने एक-एक दृश्य को इतनी कुशलता से फिल्माया है कि उत्सुकता बनी रहती है। यह शुद्ध रूप से एक मनोरंजक फिल्म है जो खतरनाक स्टंट दृश्यों से भरी पड़ी है। फिल्म देखने के लिए दिल या दिमाग की कोई जरूरत नहीं है। यह ऐसा ‘लक‘ है जो लार्जर दैन लाइफ है।
समझ नहीं आता कि जब आमिर खान ने अपने भतीजे इमरान खान के लिए एक खूबसूरत सी लव स्टोरी ‘जाने तू या जाने ना‘ बना कर रास्ता दिखा दिया था तो भी इस मासूम से चेहरे वाले संवदेनशील लड़के को बार-बार एक्शन और स्टंट की दुनिया में क्यों धकेला जा रहा है। एक्शन इमरान का रास्ता नहीं है। उसके लिए अच्छी अच्छी प्रेम कहानियों पर काम कीजिए। यह दुनिया संजय दत्त की है जिसका प्रमाण उन्होंने ‘लक‘ में भी दिया है। उनका मूसा भाई वाला रोल प्रभावित करता है। कमल हासन की बेटी श्रुति हासन का बहुत शोर मचाया गया था लेकिन फिल्म ‘लक‘ उनका बैडलक है। फिल्म में उन्हें कुछ कर दिखाने का मौका ही नहीं दिया गया है। श्रुति से ज्यादा प्रभावशाली चरित्र चित्राशी रावत का है और ‘चक दे इंडिया‘ की इस कोमल चैटाला ने ‘लक‘ में शॉर्टकट नामक अपने किरदार को यादगार ऊंचाई तक पहुंचा दिया है। समुद्र में शार्क मछली द्वारा उसका पांव चबाये जाने से ध्वस्त हुए सपनों की व्यथा उसने बेहद मार्मिकता से व्यक्त की है। अगर निजी जीवन में उसकी लंबाई आम लड़कियों जितनी भी होती तो प्रतिभा उसे कहां से कहां पहुंचा सकती थी। दिक्कत यह है कि उसके लिए लेखकों को खोज खोज कर विशेष किरदार रचने होंगे। मिथुन चक्रवर्ती और डैनी मंजे हुए, वरिष्ठ अभिनेता हैं लेकिन भोजपुरी फिल्मों के स्टार रवि किशन ने भी जता दिया है कि वह हिंदी फिल्मों में भी कमाल-धमाल कर सकते हैं। शब्बीर अहमद और अन्विता दत्त के गीतों को कुल ग्यारह गायकों ने अपनी आवाज दी है तो भी कोई गीत अवस्मिरणीय नहीं बन सका है। हां, फिल्म के संवाद मौजूं, हृदय स्पर्शी और कथानक को गति देने वाले हैं। एक टाइमपास फिल्म है।

निर्देशक: सोहम शाह
कलाकार: संजय दत्त, मिथुन चक्रवर्ती, डैनी डेनजोंग्पा, इमरान खान, रवि किशन, श्रुति हासन, चित्राशी रावत।
संगीत: सलीम-सुलेमान-हरि

Saturday, July 18, 2009

जश्न

फिल्म समीक्षा

प्रतिभा की जीत का ‘जश्न‘

धीरेन्द्र अस्थाना

महेश भट्ट कैंप की फिल्म ‘जश्न‘ इस बात का नायाब उदाहरण है कि अगर आपके पास एक साफ-सुथरी, भावनात्मक कहानी है और आपको कहानी कहने का अंदाज आता है तो एक बेहतरीन फिल्म आकार ले सकती है। अच्छी फिल्म के लिए भारी-भरकम बजट, विदेशी लोकेशंस और बड़ी-बड़ी स्टार कास्ट की कोई अनिवार्यता नहीं है। बहुत लंबे समय के बाद कोई फिल्म आयी है जिसने कम से कम तीन स्थलों पर मर्म को छूने का काम किया। जब भी भट्ट कैंप की कोई फिल्म आती है तब यह उम्मीद तो जगती ही है कि कोई अच्छी कहानी देखने को मिलेगा लेकिन इस बार तो बेहद मर्मस्पर्शी और संवेदनशील कहानी से गुजरने का मौका मिला। विषय नया नहीं है। एक गायक के संघर्ष पर दर्जनों फिल्में बनी हैं। लेकिन इस विषय को बुनने, उसे साधने, उसे फिल्माने और उसे बहुआयामी बनाने का कौशल अनूठा है। पता नहीं क्यों ज्यादा दर्शक फिल्म देखने नहीं पहुंचे। हो सकता है कि फिल्म की समीक्षाओं को पढ़ने या मित्रों के जरिए पता चलने पर अगले कुछ दिनों में ज्यादा दर्शक फिल्म देखने पहुंचें और ‘जश्न‘ बॉक्स ऑफिस पर भी ‘जश्न‘ मना सके। फिल्म की ‘रिपीट वेल्यू‘ भी है।
फिल्म का छोटा सा, सार्थक संदेश है - प्रतिभा की जीत तय है। घमंड या ताकत या पैसे की हार निश्चित है। प्रतिभा को दबाया जा सकता है, उसे मंजिल तक पहुंचने में बाधाग्रस्त किया जा सकता है लेकिन प्रतिभा का विस्फोट एक अटूट सच्चाई है। इस संदेश को निर्देशक हसनैन हैदराबादवाला और राकेश मिस्त्री ने केवल चार प्रतिभाशाली युवा कलाकारों के माध्यम से पेश कर दिया है। असल में यह अध्ययन सुमन, अंजना सुखानी और शहाना गोस्वामी की अभिनय प्रतिभा के विस्फोट की भी फिल्म है। एक विलेन की ‘बॉडी लैंग्वेज‘ कैसी होती है उसे पाकिस्तानी कलाकार हुमांयू सईद से सीखा जा सकता है। वह हमारे पारंपरिक खलनायकों की तरह ‘शोर‘ नहीं मचाते। अभिनय से ‘नकारात्मकता का आलोक‘ रचते हैं।
फिल्म का गीत-संगीत पक्ष भी कर्णप्रिय और प्रभावशाली है। एक सिंगर के जीवन और ‘स्ट्रगल‘ पर बनने वाली फिल्म का गीत-संगीत अनिवार्यतः बेहतरीन होना चाहिए जो कि है। फिल्म के संवाद फिल्म को गति भी देते हैं और उपकथाओं की स्पष्ट व्याख्या भी करते हैं। गीतों के बोल भी हृदयस्पर्शी हैं। अगर आप अच्छी फिल्मे पसंद करते हैं तो पहली फुर्सत में ही ‘जश्न‘ में शामिल हो आयें।

निर्माता: मुकेश भट्ट
निर्देशक: राकेश मिस्त्री, हसनैन हैदराबादवाला
कलाकार: अध्ययन सुमन, अंजना सुखानी, शहाना गोस्वामी, हुमायूं सईद
संगीत: तोशी शाबरी, शारिब शाबरी

Saturday, July 11, 2009

शॉर्टकट

फिल्म समीक्षा

कॉमेडी का ट्रेजिक ‘शॉर्टकट‘

धीरेन्द्र अस्थाना

कॉमेडी कह कर प्रचारित की गयी अनिल कपूर प्रोडक्शन की फिल्म ‘शॉर्टकट‘ के साथ ढेर सारी ट्रेजेडी जुड़ी हुई हैं। सबसे पहली यह कि इस फिल्म के हीरो अक्षय खन्ना हैं जो बॉलीवुड में संजीदा और अर्थपूर्ण अभिनय करने के लिए जाने जाते हैं। फिल्म ‘गांधी माई फादर‘ में वह अपने सशक्त अभिनय की मिसाल पेश कर चुके हैं। पूरी फिल्म में उन्होंने गंभीर अभिनय किया है। एक सफल निर्देशक बनने का सपना जीने वाले फिल्मकार के संघर्ष और तड़प को उन्होंने उम्दा तरीके से व्यक्त किया है। फिल्म की दूसरी ट्रेजेडी यह है कि एक गंभीर विषय पर हास्य फिल्म बनाने की गलती की गयी है। तीसरी ट्रेजेडी यह कि सिनेमा के परिदृश्य और जीवन पर बनायी गयी फिल्म में सारी की सारी घटनाएं एकदम अविश्वसनीय और अतार्किक हैं। फिल्म का एक सार्थक संदेश है कि ‘सिनेमा का कोई शॉर्टकट नहीं होता।‘ जबकि खुद निर्देशक नीरज वोरा ने अपनी फिल्म ‘शॉर्टकट‘ को ‘शॉर्टकट स्टाइल‘ में निपटा दिया है। दर्शक तो दर्शक खुद सिनेमा के लोग भी नहीं मानेंगे कि सिनेमा की दुनिया इस कदर फरेबी और नकली होती है जैसी ‘शॉर्टकट‘ में दर्शायी गयी है।

अनीस बज्मी ने फिल्म की कहानी अच्छी और सरल-साफ लिखी है। उस पर एक सीधी और सार्थक फिल्म बनायी जा सकती थी। एक गंभीर कहानी को कॉमेडी की अंधी गली में धकेलने की कोई जरूरत ही नहीं थी। दर्शक अब समझदार हैं। पढ़े-लिखे हैं। विश्व सिनेमा के भी जानकार हैं। वे अच्छी फिल्में पसंद करते हैं फिर भले ही फिल्म कॉमेडी हो, ट्रेजेडी हो, आतंकवाद पर हो, लव स्टोरी हो या एक्शन हो। सिर्फ एक ही शर्त है कि फिल्म को अच्छा होना चाहिए। सिर्फ कॉमेडी फिल्में ही चलती हैं यह एक बहुत बड़ा भ्रम है जिससे निर्माता-निर्देशकों को अपना पिंड छुड़ा लेना चाहिए। पिछले दिनों की हिट लेकिन गंभीर फिल्में ‘न्यूयाॅर्क‘, ‘गुलाल‘, ‘देव डी‘, ‘दिल्ली-6‘ इसका उदाहरण हैं।

पता नहीं क्यों चंकी पांडे को ज्यादा फिल्में नहीं मिलतीं? ‘शॉर्टकट‘ में एक बेवकूफ सुपर स्टार के सेक्रेट्री की भूमिका में उन्होंने जान डाल दी है। गरीब लोगों की एक चाल के मालिक की संवेदनशील भूमिका का निर्वाह सिद्धार्थ रांदेरिया ने विश्वसनीय ढंग से किया है। एक असफल और स्ट्रगलर ही नहीं, फिल्म अभिनय का एबीसीडी भी न जानने वाला अरशद वारसी अक्षय खन्ना की फिल्म स्क्रिप्ट चुरा कर और उसमें एक्टिंग करके सुपर स्टार बन जाता है, यह पूरा प्रसंग बनावटी और अतार्किक है। ऐसे ही कई प्रसंगों पर यह फिल्म खड़ी हुई है। अंत में हम भी यही कहना चाहेंगे कि सिनेमा का कोई शॉर्टकट नहीं होता।

निर्माता: अनिल कपूर
निर्देशक: नीरज वोरा
कलाकार: अक्षय खन्ना, अरशद वारसी, अमृता राव, चंकी पांडे, सिद्धार्थ रांदेरिया
गीत: जावेद अख्तर
संगीत: शंकर-अहसान-लॉय

Saturday, July 4, 2009

कंबख्त इश्क

फिल्म समीक्षा

कंबख्त इश्क से कहानी नदारद

धीरेन्द्र अस्थाना

बड़े बजट, बड़े सितारों और बड़े दावों से भरी ‘कंबख्त इश्क‘ में निर्माता-निर्देशक एक अदद छोटी कहानी भी डाल देते तो शायद इस फिल्म का मुकद्दर कुछ और हो जाता। अक्षय कुमार, करीना कपूर, सिल्वेस्टर स्टेलोन, आफताब शिवदासानी और अमृता अरोड़ा जैसे सितारों से सजी यह फिल्म पूरी दुनिया के कुल 2030 (दो हजार तीस) सिनेमाघरों में रिलीज की गयी जो किसी भी हिंदी फिल्म के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। फिल्म का निर्माण बेहद भव्य और दिव्य पैमाने पर किया गया है। फिल्म से जुड़े प्रत्येक कलाकार ने अपना बेहतर देने का प्रयत्न किया है। लेकिन सिर्फ अभिनय क्या कर लेगा जब कहने के लिए कोई कहानी ही नहीं होगी। मजेदार बात यह है कि ‘कहानी‘ के साथ तीन लेखक जुड़े हुए हैं। पूरी फिल्म कुछ घटनाओं का ‘कोलाज‘ भर बन सकी है। इसी ‘कोलाज‘ से प्यार, इमोशन, ईगो, सेक्स, एक्शन और हास्य निचोड़ने की कोशिश की गयी है।
फिल्म को अच्छी ‘ओपनिंग‘ मिली है। मुंबई में भारी बारिश के बावजूद युवा दर्शकों की अच्छी खासी भीड़ फिल्म देखने पहुंची लेकिन आने वाले दिनों में यही संख्या बनी रहेगी, कहना मुश्किल है। फिल्म में कई स्थलों पर दर्शक हंस तो रहे थे लेकिन यह ‘सिचुएशनल हंसी‘ थी। एक ऑपरेशनके दौरान अक्षय कुमार के पेट में करीना कपूर की मंत्र वाली घड़ी छूट जाने से जुड़े हुए प्रसंग जरूर बेद दिलचस्प और मौलिक हैं। छोटी-मोटी मॉडलिंग करके अपनी डॉक्टरी की पढ़ाई की फीस अर्जित करने वाली करीना कपूर का अक्षय कुमार जैसे हॉलीवुड के स्टार स्टंटमैन से बेवजह चिढ़ना कहीं से भी तार्किक नहीं है। जबकि इसी चिढ़ को खींच कर पूरी फिल्म का ताना-बाना बुना गया है। फिर इसी चिढ़ को ‘अकारण‘ घोषित करके करीना को अहसास दिलाया गया है कि अक्षय का प्यार असली और करीना की चिढ़ नकली है। अक्षय-करीना के ‘लव ऐंड हेट‘ वाले इसी रिश्ते की रस्सी पर फिल्म के तमाम पात्र करतब दिखाते नजर आते हैं।
तो भी ‘कंबख्त इश्क‘ को कम से कम एक बार इन कारणों से देखा जा सकता है। अक्षय कुमार के एक्शन, इमोशन और कॉमेडी के लिए। करीना की खूबसूरती और बोल्ड दृश्यों के लिए। आफताब के बेहद सहज तथा जीवंत अभिनय के लिए। विदेशी लोकेशंस के लिए। कुछ अच्छे गानों और बेहतर संगीत के लिए। फिल्म में बरसते अक्षय-करीना के चुंबनों के लिए वह भी ‘लिप लॉक किसेस‘। सैफ और ट्विंकल आपने फिल्म देखी क्या?

निर्देशक: सब्बीर खान
निर्माता: साजिद नाडियाडवाला
कलाकार: अक्षय कुमार, करीना कपूर, आफताब शिवदासानी, सिल्वेस्टर स्टेलॉन, बोमन ईरानी, जावेद जाफरी।
संगीत: अनु मलिक
गीत: अन्विता दत्त गुप्ता