Saturday, June 25, 2011

बिन भेजे की डबल धमाल

धीरेन्द्र अस्थाना

जिसे माइंडलेस कॉमेडी कहते हैं उसकी सवरेत्तम मिसाल है ‘डबल धमाल’। इन्द्र कुमार की मूल फिल्म ‘धमाल’ का यह सीक्वेल पहले जितना कमाल का तो नहीं है लेकिन हंसने हंसाने, मौज, मजा, नाच, गाना, मस्ती का तगड़ा इंतजाम किया गया है ‘डबल धमाल’ में। इन्द्र कुमार ने फिल्म में कहीं भी झोल नहीं आने दिया है। ढाई घंटे की फिल्म बांधे रखती है यह इसका सबसे बड़ा कमाल है। मुन्नी और शीला के बाद अब जलेबी की बारी है। मल्लिका शेरावत का आइटम सांग जलेबी बाई पूरी तरह पैसा वसूल है जिसे अगली बेंच के दर्शक झूम कर देखेंगे। अगर आप शुद्ध मनोरंजन के हिमायती हैं तो फिल्म देखने जरूर जाएं लेकिन अपना दिमाग घर छोड़ दें क्योकि इस फिल्म की कुछ कहानी यह है कि अरशद वारसी, जावेद जाफरी, रितेश देशमुख और आशीष चौधरी की चौकड़ी पाती है कि संजय दत्त तो बहुत पैसे वाला है, जबकि उसने भी उन लोगों की तरह अपना सारा पैसा डोनेट कर दिया था। सच का पता लगाने चारों पहले उसके दफ्तर फिर उसके घर में सेंध लगाते हैं और संजय को ब्लैकमेल कर उसकी कंपनी के पार्टनर बनने में सफल हो जाते हैं। इन चारों को बेवकूफ बना कर संजय इनके जरिए बाटा भाई (सतीश कौशिक)का 250 करोड़ अपनी फर्जी तेल कंपनी में लगवाता है और पैसा लेकर कंगना रानावत तथा मल्लिका शेरावत के साथ मकाऊ के लिए उड़ जाता है। ये चारों संजय को फाइनेंशियली और इमोशनली बर्बाद कर देने की शपथ लेकर मकाऊ पहुंचते हैं। चारों भेस बदल कर संजय के कैसीनो और जीवन में सेंध लगाते हैं और फिश टैंक में रखा एक हजार करोड़ रुपया लेकर चंपत होने की फिराक में धर लिए जाते हैं। बाद में पर्दाफाश होता है कि संजय दत्त को चारों की योजना का पहले से पता था और वह इनको बेवकूफ बना रहा था। यह है डबल धमाल। फिल्म में सिचुएशन से हास्य पैदा किया गया है। सभी पात्रों ने अभिनय से फिल्म को ज्यादा कॉमिक बनाने का प्रयत्न किया है। बॉलीवुड में असुरक्षा का आलम यह है कि कंगना रानावत जैसी प्रतिभाशाली हीरोईन को बहन के रोल में उतरना पड़ा। यह भी लगता है कि आइटम डांस फिर से फिल्मों का अनिवार्य हिस्सा बनता जा रहा है। फिल्म की यूएसजी उसका गीत संगीत और आइटम डांस ही है।
निर्देशक : इन्द्र कुमार कलाकार : सं जय दत्त, अरशद वारसी, जावेद जाफरी, रितेश देशमुख, आशीष चौधरी, सतीश कौशिक, कंगना रानावत, मल्लिका शेरावत। संगीत : आनंद राज आनंद

Saturday, June 18, 2011

भेजा फ्राई

भेजा फ्राई से भेजा गायब
धीरेन्द्र अस्थाना

जिन दर्शकों ने कुछ वर्ष पहले सागर बेल्लारी द्वारा निर्देशित फिल्म ‘भेजा फ्राई’ देखी होगी, भेजा फ्राई-टू देखकर उनका भेजा तड़क जाएगा। पहली बात तो यह कि यह फिल्म ‘भेजा फ्राई’का सीक्वेंस नहीं है इसलिए इसका नाम ‘भेजा फ्राई-टू’ ही गलत है। पिछली फिल्म की अपार लोकप्रियता का लाभ उठाने के लिए नाम दोहराया गया है। शुरू के दिनों में दर्शक नाम के झांसे में आ भी सकते हैं। दूसरी बात यह कि ‘भेजा फ्राई’ में एक छोटी सी, प्यारी सी ऐसी कहानी थी जिसे लिखने में दिमाग का इस्तेमाल हुआ था। लेकिन ‘भेजा फ्राई-टू’ से भेजा ही गायब है। यह एक ऐसी कॉमेडी फिल्म हैजिस पर निरंतर रोते रहने का मन करता है। पता नहीं क्या सोचकर सागर बेल्लारी की टीम ने इस फिल्म पर काम किया। केके मेनन अतीत में बेहद शानदार फिल्में कर चुके हैं। कॉमेडी उनका क्षेत्र नहीं है क्योकि एक स्वाभाविक संजीदगी उनके व्यक्तित्व का स्थायी भाव है। कह सकते हैं कि कॉमेडी उनकी बॉडी लैंग्वेज के साथ छत्तीस का रिश्ता रखती है। विनय पाठक अपने फॉर्म में थे और पूरी फिल्म का केन्द्र बिंदु भी वही हैं लेकिन अकेला आदमी दर्शकों को कितनी देर तक उलझाये रख सकता है वह भी एक ऐसी फिल्म में जिसमे कथा के नाम भर लगभग शून्य हों। रियल लाइफ में कौन बिजनेस टायकून किसी इनकम टैक्स इंस्पेक्टर से इतना डरता है जितना केके को विनय पाठक से डरता दिखाया गया है। रियलिटी शो ‘आओ गेस करें’
में विनर बन कर विनय पाठक एक क्रूज पर पहुंचते हैं जहां केके ऐंड पार्टी का जश्न हो रहा है। विनय पाठक चूंकि पेशे से इनकम टैक्स इंस्पेक्टर हैं इसलिए केके उन्हें क्रूज से धक्का देने के प्रयत्न में खुद समुद्र में गिर जाते हैं। बाद में केके का सिक्युरिटी पर्सन विनय को भी समुद्र में फेंक देता है। दोनों एक निर्जन टापू पर साथ साथ हैं जहां संवादों के जरिए दर्शकों को हंसाने का प्रयत्न किया जाता है। टापू पर उन्हें अमोल गुप्ते का घर मिल जाता है। जो एकाकी जीवन जी रहा है। यहां भी कुछ बेतुकी घटनाओं के जरिए हास्य पैदा करने की कोशिश की गयी है जो बोर करती है। एक लम्बे, बोझिल घटनाक्रम के बाद अमोल के घरमेंबम फटता है और सब बेहोश हो जाते हैं। होश में आने पर पहले केके अपने लोगों के साथ और बाद में विनय पाठक अपने सहयोगी इंस्पेक्टर सुरेश मेनन के साथ टापू से विदा लेते हैं और मिनीषा लांबा? वह इस पिक्चर में क्यो थीं, वह खुद उन्हें ही समझ नहीं आया होगा।
निर्देशक : सागर बेल्लारी कलाकार : विनय पाठक, केके मेनन, अमोल गुप्ते, सुरेश मेनन, मिनीषा लांबा, वीरेन्द्र सक्सेना संगीत : इश्क बेक्टर, स्नेहा खान वालकर, सागर देसाई संवाद : शरद करारिया

Saturday, June 11, 2011

’शैतान‘

फिल्म समीक्षा

’शैतान‘ यानी खोई हुई दिशाएं

धीरेन्द्र अस्थाना
अनुराग कश्यप प्रोडक्शन की फिल्म ‘शैतान’ का निर्देशन भले ही बिजोय नंबियार ने किया है लेकिन यह एकदम अनुराग छाप फिल्म है। समय, समाज, कहानी, चरित्र एकदम यथार्थवादी लेकिन कहने का अंदाज फंतासी में लिपटा हुआ। बिल्कुल ‘जादुई यथार्थवाद’ जैसा। इसीलिए थोड़ा पेचीदा, थोड़ा अजीबो गरीब लेकिन अपने भीतर एक ऐंद्रजालिक उपस्थिति लिए हुए। मौजूदा उत्तर आधुनिक समय की जमीन पर खड़ी फिल्म ‘शैतान’ उन युवाओं की नीच ट्रेजेडी का बखान करती है जिनकी दिशाएं खो गयी हैं। राजीव खंडेलवाल और कलकी कोचलिन के अलावा बाकी नये लोगों को लेकर कम बजट में बनायी गयी ‘शैतान’ सिनेमा में रचनात्मकता को संभव करती है। यह नया सिनेमा है जो मनोरंजन के साथ-साथ दर्शकों की चेतना को संपन्न और सक्रिय करने की जिम्मेदारी भी उठाना चाहता है। कम से कम सार्थक सिनेमा के पैरोकारों को इस किस्म के सिनेमा का स्वागत करना ही चाहिए। इस फिल्म में राजीव खंडेलवाल एक ऐसे गुस्सैल पुलिस ऑफीसर के रोल में है जो कुछ भी गलत बर्दाश्त नहीं कर पाता। एक भ्रष्ट नेता को पहले माले से नीचे फेंक देने के जुर्म में वह सस्पेंड चल रहा है। एक कलकी कोचलिन है जिसकी मां ने तब आत्महत्या कर ली थी जब कलकी छोटी थी। पिता की नयी पत्नी के सामने वह खुद को कंफर्ट फील नहीं करती और फ्रस्ट्रेट रहती है। एक पार्टी में उसे गुलशन उर्फ केसी मिलता है जिससे आकर्षित हो कर वह उसके बाकी दोस्तों से मिलती है। इस प्रकार कुल पांच युवक- युवतियों का गैंग तैयार होता है जो मौज मस्ती को जीने का मंत्र मानता है। सब के सब बिगड़े दिल शहजादे टाइप के हैं। एक रात इनकी तेज गाड़ी के नीचे दो लोग आकर कुचल जाते हैं। ये लोग छुप जाते हैं लेकिन एक पुलिस वाला इन्हें खोज लेता है। वह केस दबाने के लिए इनसे पच्चीस लाख रुपये मांगता है। कलकी का बाप चूंकि सबसे ज्यादा अमीर है इसलिए ये लोग कलकी के अपहरण का ड्रामा करते हैं और उसके पिता से पचास लाख मांगते हैं। बाप पैसे देने के बजाय पुलिस में चला जाता है और होम मिनिस्ट्री की सोर्स ले आता है। कमिश्नर दबाव में आ जाता है और इस केस को हल करने के लिए सस्पेंड हो चुके राजीव खंडेलवाल को काम पर लगाता है। लड़के एक से दूसरे ट्रैप में उलझते जाते हैं और अंततः उनकी दिशाएं खो जाती हैं। मोटे तौर पर युवा फ्रस्ट्रेशन, फन, फिलॉसफी और अराजकता को इस फिल्म में इस स्लोगन से परिभाषित किया गया है- अपने भीतर के शैतान से सामना कीजिए। फिल्म को देखना चाहिए। एक्सपेरीमेंट को सपोर्ट करें।


निर्देशकः बिजोय नंबियार
कलाकारः राजीव खंडेलवाल, कलकी कोचलिन, शिव पंडित, रजित कपूर, गुलशन, कीर्ति
संगीतः प्रशांत पिल्लई, अमर मोहिले, रंजीत बारोट
संवादः अभिजीत देशपांडे