Saturday, January 31, 2009

फ़िल्म विक्ट्री की समीक्षा

‘विक्ट्री‘ को मिली दुखद पराजय

धीरेन्द्र अस्थाना

बहुत मेहनत, लगन, संवेदनशीलता और समझदारी के साथ बनायी गयी फिल्म ‘विक्ट्री‘ को बाॅक्स आॅफिस पर बेहद खराब ‘ओपनिंग‘ मिली है। इस दुखद पराजय का संभवतः एकमात्र कारण यही हो सकता है कि दर्शकों ने ‘क्रिकेट का रिपीट शो‘ देखना मंजूर नहीं किया। क्रिकेट पर दर्शक ‘लगान‘ और ‘इकबाल‘ जैसी बेहतरीन फिल्में देख चुके हैं। इसी वजह से क्रिकेट पर आधारित ‘हैट्रिक‘ और ‘मीरा बाई नाॅट आउट‘ भी लाॅप हो गयी थीं। लेकिन यह उम्मीद किसी को नहीं थी कि दर्शक ‘विक्ट्री‘ को भी नकार देंगे। निर्देशक अजीत पाल मंगत ने ‘विक्ट्री‘ बनाते समय बहुत तैयारी की थी। सबसे पहले उन्होंने एक साफ सुथरी, समझ में आने लायक आसान सी कहानी चुनी। फिर उसे सधे ढंग से भावनात्मक स्तर पर फिल्माने का भी अच्छा प्रयास किया।
विजय शेखावत (हरमन बावेजा) जैसलमेर जैसे छोटे से राजस्थानी शहर का युवा खिलाड़ी है जो ‘क्रिकेटर चयन‘ में व्याप्त ‘गंदी राजनीति‘ के कारण हमेशा चुने जाने से रह जाता है। अंततः उसे मौका मिलता है और वह चैके-छक्के जड़ता हुआ शहर तथा प्रदेश की सीमा से निकल अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टार बन जाता है। उसकी सफलता को भुनाने के लिए एक ईवेन्ट मैनेजमेंट कंपनी का डायरेक्टर गुलशन ग्रोवर विजय को पैसों का लालच दिखा विज्ञापनों के जगमग संसार में धकेल देता है। शराब और शबाब से घिरी रंगीन दुनिया विजय का क्रिकेट छीन लेती है। स्टार क्रिकेटर पिता-प्रेमिका-मित्रों को खोकर गुमनामी के अंधेरों में फिसल जाता है। अपनी गलतियों का प्रायश्चित कर, प्रेमिका (अमृता राव) की मदद से वह फिर उठ कर खड़ा होता है और देश का नाम रौशन करता है। जो लोग उसका घर जला देते हैं वे उसे फिर से सिर-आंखों पर बिठा लेते हैं। संदेश केवल एक पंक्ति का है - सफलता के नशे में अपना लक्ष्य मत भूलो। यह संदेश निर्देशक ने अच्छे ढंग से दिया है। यह पहली फिल्म है जिसमें कई देशों के लगभग चालीस क्रिकेटरों से फिल्म में वास्तविक अभिनय कराया गया है। अपने चरित्र पर हरमन बावेजा ने जबर्दस्त मेहनत की है। वह हीरो के बजाय सचमुच के क्रिकेटर नजर आते हैं। उन्होंने छह महीने तक बाकायदा क्रिकेेट खेलने का प्रशिक्षण भी लिया था। यह प्रशिक्षण फिल्म में साफ नजर आता भी है। एक क्रिकेटर के उल्लास, हर्ष, निराशा और उपलब्धियों का तेज लगातार उनके व्यक्तित्व से झरता है। इस फिल्म में वह अपनी पहली फिल्म ‘लव स्टोरी 2050‘ से बहुत आगे निकल आये हैं। हो सकता है कि आने वाले दिनों में फिल्म को दर्शक मिलने लगें। मूलतः यह फिल्म हरमन बावेजा और अनुपम खेर के पिता-पुत्र रिश्तों की धूप-छांव का ही बखान करती है। बाकी चरित्र, अभिनेत्री भी, कहानी को आगे बढ़ाने भर के काम आते हैं। फिल्म के इकलौते संगीतकार अनु मलिक के निर्देशन में कुल चैदह गायकों ने अपनी आवाज दी है। फिल्म को देखना तो चाहिए।

निर्देशक: अजीत पाल मंगत
कलाकार: हरमन बावेजा, अमृता राव, अनुपम खेर, गुलशन ग्रोवर, दिलीप ताहिल।
संगीतकार: अनु मलिक