Friday, October 18, 2013

बॉस

फिल्म समीक्षा

इस बॉसमें जान है

धीरेन्द्र अस्थाना

इसे कहते हैं फुल एंटरटेनमेंट या पैसा वसूल फिल्म। एक्शन, इमोशन, डांस, कॉमेडी, म्यूजिक, डायलॉग और लोकेशन का मुकम्मल पैकेज। कहीं कोई झोल नहीं, ढीला ढाला पन नहीं। ढाई घंटे की रोचक और मसाला फिल्म दर्शकों ने पूरे मजे लेकर और डूब कर देखी। थियेटर छोड़ कर एक बार भी बाहर नहीं गये। छुट्टी का दिन था। फिर क्या हुआ कि दर्शकों की संख्या संतोषजनक नहीं थी। शायद कहानी का पुरानापन। इस संपूर्ण पैकेज के साथ शायद दर्शकों को कहानी में भी ताजगी चाहिए। मां-बेटे के रिश्ते पर तो सैकड़ों फिल्में बनी हैं। बॉसपिता-पुत्र के द्वंद्व, नासमझी, लगाव और जुड़ाव पर बनी है। एक्टर भी छोटे-मोटे नहीं हैं। महत्वाकांक्षी मंत्री के रूप में गोविंद नामदेव हैं। ग्लैमरस अदिति राव हैदरी हैं। सोनाक्षी सिन्हा और प्रभुदेवा का आइटम नंबर है। अक्षय कुमार की हैरतअंगेज फाइट और मर्मस्पर्शी इमोशन है। जॉनी लीवर की कॉमेडी है, अमिताभ बच्चन की आवाज है और रोनित राय की खलनायकी है। मशहूर टीवी एक्टर रोनित राय के रूप में बॉलीवुड को प्रकाश राज के बाद एक और दमदार विलेन मिल गया है। फिल्म के संवाद सड़क छाप हैं लेकिन ताली बटोरते हैं। फिल्म को मिला हरयाणवी टचभाषा को चटपटा बनाता है। हो सकता है कि आने वाले दिनों में फिल्म के दर्शक बढ़ जाएं। आंटी पुलिस बुला लेगीवाला गाना युवा दर्शकों के बीच बहुत लोकप्रिय हो सकता है। बाकी तड़कते भड़कते गीतों में भी युवा भावनाओं को पकड़ने का सफल प्रयास है। फिल्म की शुरुआत बहुत नाटकीय अंदाज में होती है जहां युवा अक्षय कुमार इलाके के डॉन बिग बॉस डैनी डेनजोंग्पा को गुंडों से बचाता है। डैनी इस घर से भागे या भगाये गये बच्चे को अपना वारिस बना कर उसे बॉसकी पदवी देता है। इसके बाद वही पुराना फार्मूला है - कहानी फ्लैशबैक में जाती है और वर्तमान में लौटती है। अक्षय कुमार से इलाका थर्राता है लेकिन मिथुन चक्रवर्ती अपने इस बेटे से नफरत करते हैं क्योंकि वह उसे खूनी समझते हैं। असल बात यह है कि एक घटनाक्रम के तहत वह खून अनजाने में खुद मिथुन से ही हुआ था। जिसका इल्जाम अपने सिर लेकर युवा अक्षय जेल की सजा काटता है। अदिति राव हैदरी इसमें अक्षय के छोटे भाई बने शिव पंडित की प्रेमिका बनी हैं। खुद अक्षय के अपोजिट फिल्म में कोई हीरोईन नहीं है। फिल्म की सबसे अच्छी बात यह है कि यह किसी अकेले की नहीं बल्कि थोड़ी थोड़ी सबकी फिल्म है। स्टारडम में भी लोकतंत्र का इतना स्पेस तो बनता है बॉस। जब इतने सारे लोगों को लिया है तो सबको काम करने का मौका भी तो दो। मजेदर मसाला है। देख आएं।
निर्देशक:          एंथोनी डिसूजा 
कलाकार:     अक्षय कुमार, मिथुन चक्रवर्ती, अदिति राव हैदरी, शिव पंडित, डैनी डेनजोंग्पा, जॉनी लीवररोनित राय, परिक्षित साहनी।
संगीत:             मीत ब्रदर्स, अंजान, हनी सिंह, चिरंतन भट्ट।


Tuesday, October 15, 2013

वार छोड़ ना यार

फिल्म समीक्षा

वार छोड़ ना यार: बात बनी नहीं यार

धीरेन्द्र अस्थाना

युद्ध एक भयावह शब्द है जो अगर सचमुच घट जाए तो मुल्कों की लाखों लाख आबादी पर बरबादी का कहर ढा सकता है। युद्ध में सिर्फ लोग ही नहीं मरते विश्वास और आशाएं भी मर जाती हैं। सिर्फ जिस्म ही लहुलुहान नहीं होते आत्माओं पर भी दाग लग जाते हैं। युद्ध एक गंभीर विषय है। इसे कॉमेडी बना कर पेश करना एक नया विचार हो सकता है लेकिन सार्थक विचार नहीं है। इसीलिए फिल्म ‘वार छोड़ न यार‘ के पास न तो दर्शक थे न समर्थक। फिल्म बनाने की मंशा जरूर पाक-साफ है कि एक युद्ध विरोधी संदेश दिया जाए। मगर फिल्म की बुनावट और कॉमेडी वाला जोनर जमा नहीं। बात शुरू से ही बन नहीं पायी। निर्देशक अपनी मंशा को अंजाम तक नहीं पहुंचा सका और कॉमेडी फिल्म अपने आप में ही कॉमेडी बन गयी। निर्देशक को युद्ध संबंधी कुछ देशी-विदेशी फिल्में देख लेनी चाहिए थीं। इस फिल्म का सबसे कमजोर पहलू इसकी अस्त व्यस्त और बचकानी पटकथा है। पूरी फिल्म में एक भी जगह हंसी नहीं आती, यह इस फिल्म की ट्रेजेडी है। वरना कलाकार कोई मामूली नहीं हैं इसमें। जावेद जाफरी हैं जो हंसाने के काम में माहिर हैं। संजय मिश्रा हैं जो कॉमेडी उस्ताद हैं। शरमन जोशी हैं जो खुद को सफल एक्टर साबित कर चुके हैं। सोहा अली खान हैं जिन्होंने एक संवेदनशील अभिनेत्री होने का दर्जा हासिल कर लिया है। मगर ये सब लोग मिल कर क्या कर लेते जब पटकथा और संवादों में न दम था न तालमेल। ऊपर से एक पाकिस्तानी जनरल द्वारा टॉयलेट कॉमेडी करवाना तो हद दर्जे का बेहूदापन रहा। फिल्म का एकमात्र सकारात्मक पक्ष यह है कि यह युद्ध को मनुष्य विरोधी, मुल्क विरोधी साबित करने की कोशिश करती है और इस तथ्य की तरफ उंगली उठाना चाहती है कि युद्ध दो देशों की अनिवार्यता नहीं है। युद्ध भी एक राजनैतिक कदम है जो देश की जनता का बुनियादी समस्याओं की तरफ से ध्यान हटाने के लिए कराया जाता है। कितना सार्थक संदेश था यह! इसे कॉमेडी के चोले में पेश करने की क्या वजह थी? गंभीरता से फिल्माते, फिर देखते इसका असर। लोग फिल्म देखने के लिए टूट पड़ते। कॉमेडी हर मर्ज का इलाज थोड़े ही है। अंत में यह कि ‘कौन बनेगा करोड़पति‘ गेम शो में सात करोड़ रुपये के दाम वाला सवाल यह हो सकता है कि इस फिल्म में पूरे 23 गायक क्या कर रहे हैं? इस हफ्ते फिल्म देखना टाल सकते हैं। 

निर्देशक :  फराज हैदर
कलाकार:  शरमन जोशी, सोहा अली खान, जावेद जाफरी, संजय मिश्रा, मुकुल देव, मनोज पाहवा
संगीत: असलम केई

Friday, October 4, 2013

बेशरम

फिल्म समीक्षा

बड़ा एंटरटेनर है बेशरम

धीरेन्द्र अस्थाना

सबसे पहले बता दें कि रणबीर कपूर की इस फिल्म से बहुत बड़ी उम्मीदें मत लगा लेना। बॉलीवुड में जिस तरह की मसाला और एंटरटेनर फिल्में बनती हैं ठीक वैसी ही है बेशरम। देखो, हंसो, मजे लो और फिर भूल जाओ। भाषा, संवाद और संस्कृति के स्तर पर फिल्म हरियाणवी स्पर्श लिये हुए है। लोकेल दिल्ली और चंडीगढ़ का है लेकिन कई गानों और दृश्यों में पता चलता रहता है कि यह मुंबई की फिल्मसिटी में लगा हुआ सेट है। दूसरी बात यह कि बेशरमरणबीर कपूर की सबसे कमजोर फिल्म है। कहानी के मामले में रणबीर को सतर्क रहना होगा। सांवरियासे लेकर ये जवानी है दीवानीतक वह साबित कर चुके हैं कि उनके भीतर एक बड़ा और संवदेनशील एक्टर रहता है। बर्फीसे तो वह पूरे संसार का दिल जीत चुके हैं। तो फिर ऐसी चालू फिल्म क्यों जो कहीं नहीं पहुंचाती। हां, इतना जरूर है कि बेशरमदर्शकों का फुल मनोरंजन करती है। इसमें रणबीर की चिरपरिचित दिलकश मस्ती भी है, रोमांस भी है, कॉमेडी भी है और चटपटे संवाद भी हैं। और हां, पंद्रह-बीस हथियार बंद लोगों को अकेले और निहत्थे ही निपटा देने वाली दबंग मारामारी भी। इस लिहाज से यह एक वही बारह मसालों वाली चाट है जिस पर मुख्यधारा सिनेमा के निर्देशक पूरा भरोसा करते हैं। फिल्म से जुड़े लोग खुश हो सकते हैं कि रिलीज के पहले दिन बेशरमके सभी शो हाउसफुल रहे। फिल्म की एक विशेषता यह भी है कि इसमें मां नीतू सिंह, पिता ऋषी कपूर और बेटा रणबीर कपूर पहली पर एक साथ अभिनय कर रहे हैं। मां और पिता पुलिस वाले हैं और बेटा कार चुराने वाला नामी चोर। फिल्म में एक एक्टर और है जिसने बहुत ऊंचे दर्ज की खलनायकी की है। यह हैं जावेद जाफरी जो फिल्म की सफलता के एक मजबूत खंभे बने हैं। हीरोईन पल्लवी शारदा का काम अच्छा है लेकिन वह रणबीर के सामने थोड़ी सी बड़ी लगती हैं। कार चुराते चुराते रणबीर पल्लवी शारदा द्वारा चुरा लिये जाते हैं। इसके बाद वह जल्दबाजी में पल्लवी की ही कार चुरा कर चंडीगढ़ के डॉन जावेद जाफरी को बेच देते हैं। गलती का अहसास होने पर वह पल्लवी के साथ चंडीगढ़ जाते हैं जहां उनका टकराव डॉन और उसके गुंडों से होता है। वह डॉन के गैंग का सफाया कर देते हैं। नखरेबाज पल्लवी टपोरी रणबीर से पट जाती है और निःसंतान पुलिस दंपति ऋषी-नीतू रणबीर को अपना बेटा बना कर गोद ले लेते हैं। लो हो गया सुखांत। ढाई घंटे की मजेदार फिल्म टाइमपास के लिए देख लें। 
निर्देशक:          अभिनव कश्यप
कलाकार:     रणबीर कपूर, पल्लवी शारदा, ऋषी कपूर, नीतू सिंह, जावेद जाफरी
संगीत:              इश्क बेक्टर, श्रीडी, ललित पंडित