Saturday, November 27, 2010

ब्रेक के बाद

फिल्म समीक्षा

जिंदगी ‘ब्रेक के बाद‘

धीरेन्द्र अस्थाना


नये समय की प्रोफेशनल, बिंदास, क्षण में जीने वाली खुशमिजाज युवा पीढ़ी को देखकर तो कतई नहीं लगता कि वह दीपिका पादुकोन की तरह उलझी हुई, कन्फ्यूज्ड और हताश है। निर्माता कुणाल कोहली की फिल्म ’ब्रेक के बाद‘ में आलिया (दीपिका पादुकोन) का चरित्र ऐसा ही है। दीपिका के बरक्स इमरान खान का चरित्र ज्यादा सहज, तार्किक और विश्वसनीय लगता है। फिल्म की कहानी चूंकि जीवन से नहीं उठायी गयी है इसलिए दर्शकों के गले से नीचे भी नहीं उतरती है। अनेक युवा दर्शक सिनेमा हाल में बैठे कह रहे थे-ऐसा नहीं होता बॉस। निर्देशक दानिश असलम की दुविधा पूरी फिल्म में पग-पग पर दिखाई पड़ती है। वह शायद खुद को ही यह नहीं समझा पाये कि फिल्म में वह कहना क्या चाहते हैं? इसलिए दर्शक भी नहीं समझ पाये कि वह कोई लव स्टोरी देख रहे हैं या संबंधों के विखंडन पर कुछ पढ़ रहे हैं? यह नयी पीढ़ी का प्यार को लेकर कोई असमंजस है या नया पाठ? यह रिश्तों से पलायन है या करियर को लेकर कन्फ्यूजन? ‘ब्रेक के बाद‘ में कुछ भी स्थापित और परिभाषित नहीं होता। फिल्म को केवल और केवल दीपिका पादुकोन के अभिनय और प्रसून जोशी के ताजगी भरे गीतों के लिए देखा जा सकता है। संगीत के दीवानों को प्रसून जोशी के रूप में नये समय का गुलजार मिला है। विशाल-शेखर का संगीत भी भावप्रवण है। इमरान खान अच्छे लगते हैं, लेकिन वह आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। उनकी संवाद अदायगी, हाव-भाव, बॉडी लैंग्वेज उनकी पहली फिल्म ’जाने तू या जाने ना‘ पर ही ठहरी हुई है। आगे जाना है तो उन्हें ग्रो करना होगा जैसे उनके कई समकालीन युवा सितारे कर रहे हैं। दीपिका पादुकोन जरूर अपनी प्रत्येक नयी फिल्म में कदम दर कदम आगे बढ़ रही हैं। जैसा चरित्र उन्हें दिया गया है उसके साथ उन्होंने न्याय किया है। वह दीपिका न रहकर आलिया खान ही हो जाती हैं। अभिनय के पाठ में इसे ही कायांतरण कहा जाता है। अपनी जिद और चाहत के सामने सब कुछ को तुच्छ और द्वितीय मानने वाली भ्रमित लड़की का रोल उन्होंने पूरी शिद्दत से अदा किया है। लेकिन रियल लाइफ में ऐसा नहीं होता कि ’ब्रेक के बाद‘ भी इतनी आसानी से रिश्ते विवाह में बदल जाएं। कहीं-कहीं पर फिल्म में ’लव आज कल‘ के चिराग भी टिमटिमाते हैं। उसमे भी दीपिका थी लेकिन वह ज्यादा विश्वसनीय और परिपक्व फिल्म थी। अगर ’ब्रेक के बाद‘ में फोकस सिर्फ करियर और प्यार के द्वंद पर केंद्रित रखा जाता तो कुछ अलग ही निकल कर आ सकता था- नये समय का सच।

निर्देशक: दानिश असलम
कलाकार: इमरान खान, दीपिका पादुकोन, शर्मीला टैगोर, नवीन निश्चल, शहाना गोस्वामी, युधिष्ठर उर्स
गीत: प्रसून जोशी, विशाल डडलानी
संगीत: विशाल-शेखर

Saturday, November 20, 2010

गुजारिश

फिल्म समीक्षा

जिंदगी से जंग की ’गुजारिश‘

धीरेन्द्र अस्थाना

अगर कोई सिने प्रेमी किसी कारणवश यह फिल्म नहीं देखता है तो वह एक अविस्मरणीय सिनेमाई अनुभव से वंचित रह जाएगा। संजय लीला भंसाली के अब तक के सिनेमाई करियर का यह सबसे मजबूत और चमकदार मील का पत्थर है। हर कलाकृति बाजार का भी ताज बने यह जरूरी नहीं है, लेकिन कोई कृति जब अपने क्षेत्र की मिसाल बन जाए तो अद्वितीय कहलाती है। ’गुजारिश‘ एक अद्वितीय फिल्म है और ऋतिक रोशन ने फिल्म में अपने बहुआयामी तथा संवेदनशील अभिनय से एक जादुई लोक का निर्माण कर दिया है। इतनी कम उम्र में ऋतिक ने इतना अधिक विस्मयकारी अभिनय कर हतप्रभ कर दिया है। अगर अमिताभ बच्चन अभिनय की पाठशाला हैं तो इस फिल्म के बाद ऋतिक रोशन अभिनय का अनिवार्य पाठ बन गये हैं। जादू ऐश्वर्या राय बच्चन ने भी जगाया है। सिर्फ अपनी आंखों और भाव भंगिमा से ऐश ने पूरी फिल्म को ही परिभाषित कर दिया है। अगर अगले वर्ष तमाम बड़े पुरस्कार ’गुजारिश‘ के लिए घोषित हों तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। अभिनय, तकनीक, सिनेमेटोग्राफी, गीत, संगीत, कोरियोग्राफी, पटकथा, कथा, संवाद, संपादन प्रत्येक मोर्चे पर ‘गुजारिश‘ एक सशक्त तथा मुकम्मल फिल्म है जो जिंदगी से टूटकर मोहब्बत करने की अपील करती है। अगर जिंदगी का नाम एक ’चौतरफा अंधकार‘ है तो यह फिल्म जिंदगी से जंग करने की ’गुजारिश‘ करती है। इसके बावजूद कि अपनी नारकीय बीमारी से त्रस्त होकर ऋतिक कोर्ट से इच्छा मृत्यु की अपील करता है, फिल्म का अंतिम संदेश यही है कि जिंदगी बहुत ही खूबसूरत है। इस जिंदगी से सिर्फ और सिर्फ प्यार करो। यह एक ऐसे अद्भुत जादूगर की कहानी है जो अपनी शोहरत और वैभव के शिखर पर एक षड्यंत्रकारी दुर्घटना का शिकार हो अपाहिज हो जाता है। अपनी दुखद जिंदगी के इस बोझिल समय में उसके साथ सिर्फ तीन चार लोग रह जाते हैं। एक नर्स ऐश्वर्या राय बच्चन, एक वकील शेरनाज पटेल, एक डॉक्टर सुहेल सेठ और बाद में जादू सीखने का इच्छुक एक शागिर्द आदित्य राय कपूर। इन चार लोगों के साथ एक चार बाई छह के बिस्तर पर बारह साल गुजारने वाले शख्स की कारुणिक कहानी को इतना विराट कैनवास देकर संजय लीला भंसाली ने करिश्मा कर दिया है। एक साफ सुथरी, तार्किक, मार्मिक और सहज फिल्म है ’गुजारिश‘ जो जिंदगी के साज पर प्यार का नगमा छेड़ती है। अवश्य देखें।

निर्देशन: संजय लीला भंसाली
कलाकार: ऋतिक रोशन, ऐश्वर्या राय, आदित्य राय कपूर, शेरनाज पटेल, सुहेल सेठ
गीत: एएम तुराज, विभु पुरी
संगीत: संजय लीला भंसाली

Monday, November 1, 2010

नक्षत्र

फिल्म समीक्षा

इस ‘नक्षत्र‘ के दर्शक चार

धीरेन्द्र अस्थाना

मल्टीप्लेक्स में जाकर फिल्म देखना बहुत महंगा शौक हो गया है इसलिए दर्शक अब कोई भी फिल्म नहीं देखते। मोहन सावलकर की फिल्म के साथ भी दर्शकों ने यही रवैया अपनाया। उनकी ‘नक्षत्र‘ को देखने दर्शक सिनेमाघरों में नहीं पहुंचे। लेखक ने यह फिल्म केवल तीन अन्य दर्शकों के साथ देखी। आठ करोड़ में बनी ‘नक्षत्र‘ के दर्शक चार। सवाल कम बजट का नहीं है। कम बजट में ‘भेजा फ्राई‘ और ‘देव डी‘ जैसी सुपर हिट तथा अर्थपूर्ण फिल्में भी बनती हैं। दो नये युवा कलाकारों शुभ तथा सबीना को इंट्रोड्यूस करने वाली ‘नक्षत्र‘ की कहानी बेजान, निर्देशन थका हुआ और पटकथा धीमी तथा लड़खड़ाती हुई है। दोनों नये कलाकार अपने अभिनय से कोई उम्मीद नहीं जगाते। लेकिन बहुत दिनों बाद पर्दे पर मिलिंद सोमन का ‘एक्शन‘ देखना अच्छा लगा। इस फिल्म से हो सकता है कि मिलिंद का पुनर्जन्म हो जाए। वह क्राइम ब्रांच के इंस्पेक्टर बने हैं जिसमें उनका साथ दिया है नीरज कुमार ने। अनुपम खेर विलेन के रोल में हैं। फिल्म में उनकी मौजूदगी यह घोषणा करती है कि एक समय के बाद शायद पैसा पाने के लिए कोई भी रोल करना मजबूरी बन जाता है। फिल्म की एकमात्र विशेषता उसका कला निर्देशन है। आर्ट डायरेक्टर संतोष प्रजापति के बनाए कुछ सेट कलात्मक और दिलचस्प हैं। विशेष रूप से चाईना क्रीक में बनाया गया जानवरों की एक डॉक्टर का आवास और अस्पताल। फिल्म का नायक एक दृश्य में बुरी तरह घायल हो कर यहां पहुंचता है। फिल्म के पहले हिस्से में लगता है कि यह शायद बॉलीवुड में ‘स्ट्रगल‘ कर रहे एक लेखक की कहानी है। इस स्ट्रगल के दौरान दो चार अच्छे प्रसंग जुटाये गये हैं लेकिन बाद में कहानी ‘यू टर्न‘ ले लेती है। अब मामला ये है कि चार फिल्म निर्माताओं ने लेखक से एक पटकथा लिखवा कर, उसके जरिए एक नायाब हीरों का हार चुरा लिया है। इस हार की चोरी के आरोप में फिल्म का हीरो फंस गया है। कुछ अविश्वसनीय सूत्रों के जरिए वह एक एक कर चारों प्रोड्यूसर तक पहुंचता है लेकिन क्रमशः चारों ही प्रोड्यूसर कत्ल कर दिए जाते हैं। चौथे प्रोड्यूसर के कत्ल होने से कुछ पहले यह राज खुल जाता है कि असली हीरो चोर तो खुद अनुपम खेर हैं जिनकी छवि एक दानवीर शहंशाह जैसी है। फिल्म मुंबई और बैंकॉक के बीच बेवजह आवाजाही करती रहती है। अनुपम खेर मुंबई में रहते हैं लेकिन उनका निवास बैंकॉक की लोकेशन पर है। इसी तरह फिल्म का हीरो दिल्ली से मुंबई आकर स्ट्रगल कर रहा है। लेकिन कई फिल्म कंपनियों की लोकेशन बैंकॉक में शूट हुई हैं। ‘नक्षत्र‘ सन् 2010 की फिल्म है लेकिन उसे फिल्माने का निर्देशकीय नजरिया 1950 के समय जैसा है। इस ‘नक्षत्र‘ से दूर रहने में ही समझदारी है।

निर्देशक: मोहन सावलकर
कलाकार: शुभ, सबीना, मिलिंद सोमन, अनुपम खेर
संगीत: डीजे शेजवुड, समीर सेन, हैरी आनंद