Monday, November 25, 2013

सिंह साब द ग्रेट

फिल्म समीक्षा

एक्शन, इमोशन, डायलॉग का कॉकटेल
सिंह साब द ग्रेट

धीरेन्द्र अस्थाना

अगर आप सनी देओल के जबर्दस्त प्रशंसक हैं तो उनके कुछ जानदार डायलॉग सुनने और कुछ दमदार एक्शन देखने के लिए फिल्म देख सकते हैं। निर्देशक अनिल शर्मा ने एक बहुत बार दिखाई गयी पुरानी कहानी को थोड़े बहुत हेर फेर के साथ बेहद थके हुए ढंग से पेश किया है। दारू बंद कल सेवाला गाना अपने बोल और फिल्मांकन की वजह से फिल्म की जान है वरना तो हर गाने पर दर्शक उठ कर हॉल से बाहर जाते रहे। एक सौ पचास मिनट की यह फिल्म बड़े आराम से काट-पीट कर एक सौ बीस मिनट की बनायी जा सकती थी। कुछ मिला कर सिंह साब द ग्रेटएक्शन, इमोशन और डायलॉगबाजी का एक साधारण सा कॉकटेल है जो थोड़ा भी सुरूर पैदा नहीं करता। इमोशन के कई दृश्यों को बेवजह बहुत लंबा खींचा गया है। क्लीन शेव्ड सनी देओल के चेहरे पर उतरा हुआ अधेड़पन साफ नजर आता है लेकिन सरदार के रोल में वह जंचते भी हैं और प्रभावित भी करते हैं। एक्शन और गुस्से के दृश्यों में वह खासा कमाल कर गये हैं। प्रकाश राज खलनायकी के अपने पुराने अवतार में हैं। वह दर्शकों को कुछ नया नहीं दे पा रहे हैं। इस बार उन्होंने अपनी कुटिलता में इमोशन का छौंक डाल कर एक नया रंग देने की कोशिश जरूर की है। बदले से शुरू हुई कथा बदलाव पर जोर देती हुई आगे बढ़ती है। काफी मारामारी और हिंसा के बाद फिल्म इस मोड़ पर आकर खत्म होती है कि प्रकाश राज के भीतर का दानव परास्त हो जाता है और वह सनी देओल के सामने हाथ जोड़ कर उनका शुक्रिया अदा करता है कि उन्होंने डॉक्टर को प्रकाश राज की घायल बेटी का ऑपरेशन करने के लिए मना लिया। सनी देओल अपनी ताकत, जन समर्थन तथा मीडिया सहयोग के बल पर पूरे प्रदेश में बदलाव की एक हवा को तेज करने वाले जन नेता के तौर पर पेश हुए हैं। उनकी पत्नी, नयी एक्ट्रेस उर्वशी रौतेला को कुछ खास करने का मौका नहीं मिला। वैसे भी वह फर्स्ट हाफ में ही मर जाती है। टीवी पत्रकार बनी अमृता राव बड़ी फनी लगती हैं। वह सीधी सादी नेक्सट डोर गर्ल के किरदारों में ही ज्यादा असरदार नजर आती हैं। जॉनी लीवर का काम उम्दा है। बहुत सारे गुंडों ने भी अच्छा काम किया है। फिल्म की यूएसपी उसके डायलॉग हैं।

निर्देशक: अनिल शर्मा
कलाकार: सनी देओल, अमृता राव, उर्वशी रौतेला, जॉनी लीवर, प्रकाश राज, यशपाल शर्मा
संगीत: सोनू निगम, आनंद राज आनंद


Tuesday, November 19, 2013

राम-लीला

फिल्म समीक्षा

भव्य और दिव्य राम-लीला 

धीरेन्द्र अस्थाना

प्यार के सौदागर संजय लीला भंसाली ने इस बार ‘राम-लीला‘ के नाम से रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोन की जो रासलीला बनायी है उसके बैकड्रॉप में नफरत, दुश्मनी, हत्याएं और गोलियों की तड़तड़ाहट है। बॉलीवुड में गैंगस्टर फिल्में बनाने वाले निर्देशक-निर्माताओं को संजय लीला भंसाली ने बताया और चेताया है कि संजय लीला चाहें तो कहीं ज्यादा खतरनाक और हिंसक गैंगस्टर फिल्म बना सकते हैं। फिल्म ‘राम-लीला‘ एक दुर्लभ और गैर पारंपरिक सिनेमाई अनुभव है। शेक्सपीयर के विश्व प्रसिद्ध नाटक ‘रोमियो जूलियट‘ से प्रेरित एक और हिंदी फिल्म लेकिन सबसे अलग और धारा के विरूद्ध। अगर हिंसा और कबीलाई दुश्मनी को एक तरफ रख दें तो यह संगीत प्रधान प्रेम कहानी भी है क्योंकि इस हिंसक प्रेम कहानी की आत्मा इसका गीत-संगीत और नृत्य है। यह गीत संगीत और नृत्य भी लीक से थोड़ा हटकर और अनूठा है। फिल्म इस फ्रेम से खुलती है कि पुलिस का एक अधिकारी गुजरात के एक कस्बे में बावला सा घूम रहा है। वह हैरान-परेशान है कि कस्बे में बंदूकों का कारोबार खुलेआम और धड़ल्ले से हो रहा है। वह पाता है कि कस्बा दो कबीलों में बंटा हुआ है। इन दोनों कबीलों की दुश्मनी पिछले पांच सौ सालों से चली आ रही है। इस कस्बे में गोलीबारी और खून खराबा एक आम घटना है जिसे बवाल जैसे मामूली शब्द से पुकारा जाता है। रजाड़ी और सनेड़ा नामक ये दोनों कबीले एक प्रकार के गैंगस्टर ही हैं। रजाड़ी गैंग का प्रतिनिधित्व रणवीर सिंह करते हैं और सनेड़ा गैंग से दीपिका पादुकोन आती हैं। एक होली में दीपिका और रणवीर एक दूसरे को दिल दे बैठते हैं। दुश्मनों में प्यार! इस प्यार की अभिव्यक्ति भी अजीबोगरीब है - गुस्सैल भी रोमानी भी। यह संभवतः रणवीर और दीपिका के अब तक के सबसे विस्मयकारी किरदार कहलाये जाएंगे। सनेड़ा गैंग की महिला डॉन का किरदार निभा कर सुप्रिया पाठक सिनेमा के अभिनय इतिहास में दर्ज हो गयी हैं। फिल्म में प्रियंका चोपड़ा का एक आइटम डांस है जिसे दिलचस्प नहीं जानलेवा कहा जा सकता है। कालांतर में रणवीर रजाड़ी गैंग के और दीपिका सनेड़ा गैंग के डॉन बनते हैं। फिल्म के अंत में दोनों प्रेमी एक दूसरे को गोली मार कर खत्म कर देते हैं। ताकि दोनों कबीले दुश्मनी भूल कर अमन चैन और प्यार मुहब्बत के साथ रह सकें। अब वहां दीवाली पर घर नहीं दीये जलते हैं। होली पर खून नहीं रंग उछलता है। एक अनिवार्य रूप से देखने लायक फिल्म। निर्देशन-अभिनय-गीत-संगीत हर मोर्चे पर एक लाजवाब अनुभव। 

निर्देशक:  संजय लीला भंसाली
कलाकार:  रणवीर सिंह, दीपिका पादुकोन, रिचा चड्ढा, सुप्रिया पाठक
संगीत:  संजय लीला भंसाली 

सत्या 2

फिल्म समीक्षा

दहशत के विचार की पटकथा ‘सत्या-2‘ 


धीरेन्द्र अस्थाना

यह रामगोपाल वर्मा की सुपरहिट फिल्म ‘सत्या‘ का सीक्वेल नहीं है। लेकिन फिल्म के अंत में हुई कुछ सूचनाओं के अनुसार जब ‘सत्या-3‘ बनेगी तो वह निश्चित तौर पर ‘सत्या-2‘ का सीक्वेल होगी। ‘सत्या-2‘ में रामगोपाल वर्मा एक नया विचार लेकर आये हैं। विचार यह कि दाउद, छोटा राजन, अबु सलेम वगैरह की गलती यह थी कि वह अपना नाम चमकाने के चक्कर में शासन-प्रशासन की नजरों में आ गये। ‘सत्या-2‘ का मास्टर माइंड सत्या (नया एक्टर पुनीत सिंह रत्न) नाम और चेहरा विहीन कंपनी बनाता है। इस कंपनी के सदस्यों में फायनेंस एक्सपर्ट, पुलिसकर्मी, सुरक्षाकर्मी, छात्र, भाजी बेचने वाले, फल बेचने वाले, शूटर, कुली आदि सब तरह के लोग शामिल हैं। किसी को नहीं पता कि वह किसके लिए काम कर रहे हैं मगर अपने काम का उन्हें जरूरत से ज्यादा मेहनताना मिल रहा है। सत्या का मानना है कि कंपनी एक सोच है और कंपनी का प्रोडक्ट ‘डर‘ है। अर्थात् फिल्म ‘सत्या-2‘ दहशत के विचार की पटकथा है। सत्या का मानना है कि ‘पावर‘ उसे दिखाने में नहीं छिपा कर रखने में है। वह एक नये किस्म का अंडरवर्ल्ड बनाना चाहता है जो दिमाग से चलेगा और जिसमें आम जनता की हिस्सेदारी होगी। उन तमाम लोगों की हिस्सेदारी जो किसी न किसी वजह से मौजूदा व्यवस्था के खिलाफ हैं या उससे नाराज हैं। सत्या अपने इस विचार को लेकर आगे बढ़ता है। उसके आर्थिक सहयोगी हैं मुंबई के चार पांच बड़े अरबपति। इन सबको सत्या ने अपने दिमाग से कुछ बड़े फायदे करवाये हैं। जब कंपनी का गठन हो जाता है तो सत्या एक साथ मुंबई के पुलिस कमिश्नर, बड़े उद्योगपति, एक तेज तर्रार नेता और एक बड़े टीवी चैनल के मालिक का मर्डर करवाता है। इसे वह अपनी कंपनी का उद्घाटन और ऐलान बताता है। इस चेहरा विहीन कंपनी से शहर और प्रशासन दहल जाता है। नये अंडरवर्ल्ड का यह विचार अगर रामू ने कुछ मंजे हुए कलाकारों को साथ लेकर पर्दे पर उतारा होता तो शायद सिनेमा में उनके करिश्मे की वापसी हो जाती। मगर अफसोस कि फिल्म में सहयोगी कलाकारों ने जितना अच्छा काम किया है उतना फिल्म के लीड आर्टिस्ट नहीं कर पाये हैं। पूरी फिल्म एक्टिंग के मोर्चे पर मार खा गयी है। मसलन फिल्म का हीरो पुनीत सिंह रत्न हमेशा अपने चेहरे पर नाराजगी का भाव ओढ़े रखता है तो हीरोईन हरदम चुलबुली बनी फुदकती रहती है। इन दोनों के प्रेम दृश्य और डांस सीक्वेंस बनावटी लगते हैं और रोमांस का अहसास नहीं जगा पाते। हीरो का लुक, बॉडी लैंग्वेज और शारीरिक गठन कहीं से भी ‘डॉन‘ का भान नहीं कराता। हां, फिल्म की कहानी और उसका फिल्मांकन औसत से अधिक है और इसे एक बार देखा जा सकता है। 
निर्देशक:  रामगोपाल वर्मा
कलाकार:  पुनीत सिंह रत्न, अनाईका सोटी, महेश ठाकुर, आराधना गुप्ता, राज प्रेमी
संगीत:  संजीव-दर्शन, नितिन रायकर, श्री डी



Thursday, November 7, 2013

क्रिश-3

फिल्म समीक्षा

मेहनत और प्रतिभा का विस्फोट क्रिश-3‘

धीरेन्द्र अस्थाना


पहले कोई मिल गयाफिर कृषऔर अब क्रिश-3‘। फिल्म के अंत में जिस तरह कृष्णा (रितिक रोशन) को अस्पताल की नर्स यह सूचना देती है कि बधाई हो बेटा हुआ हैउसे सुनते ही दर्शक लयबद्ध स्वर में चिल्ला उठे-क्रिश-4 भी बनेगी और इसमें हर्ज भी क्या है। क्रिश एक विचार है और शानदार फिल्म है। बुराई पर अच्छाई की विजय एक सनातन और शास्वत विचार है जो रामायण और महाभारत से निकलकर आधुनिक साहित्य और सिनेमा तक में उपस्थित है। इस विचार को लेखक और फिल्मकार अपने-अपने ढंग और शैली से दिखाते आ रहे हैं। इसलिये कोई गलत नहीं कि निर्माता निर्देशक राकेश रोशन क्रिश के विचार को ही नये-नये आयामों में पेशकर क्रिशके ही सीक्वेल बनाते रहें पहले ही बता दें कि क्रिश-3‘ मेहनत प्रतिभा और जुनून का एक महाविस्फोट है जो बड़े पर्दे पर मात्र ढाई घंटे में घटित हुआ है। हिंदी सिनेमा के दर्शकों में संभवतः पहली बार किसी हिंदी फिल्म में इतने खतरनाक और डरावने एक्शन दृश्य देखे होंगे जिनसे क्रिश-3‘ भरी पड़ी है। अगर कहें कि क्रिश-3‘ हिंदी सिनेमा में अब तक की सबसे जानदार और शानदार एक्शन फिल्म है तो गलत नहीं होगा। यकीनन राकेश रोशन ने फिल्म को अपनी मेहनत, ज्ञान और एक्टरों से उनका बेस्ट निकलवाने की अपनी क्षमता से हिंदी सिनेमा को एक आलादर्जे की तकनीक और अभिनय से लैस फिल्म सौंपने का काम किया है। सवाल यह नहीं कि भारतीय दर्शक जुरासिक पार्क‘, ‘मैन ऑफ स्टील‘, ‘पैसिस्फिक रिम अवतार‘, ‘हल्कऔर ‘2012‘ जैसी तकनीक से लवरेज विदेशी फिल्में देख चुके हैं। सवाल यह है कि भारतीय दर्शकों को पहली बार किसी भारतीय निर्देशक ने सुपर हीरो वाली पहली भारतीय फिल्म का उपहार दिया है। इस फिल्म में रितिक रोशन ने तीन किरदारों को जिया है और तीनों में कमाल कर दिया है। कंगना रानावत ब्रह्मांड के शैतान काल (विवेक ओबेराय की पैदाइश हैं) लेकिन फिल्मके इस दृश्य में जब इस खलनायिका को रितिक का चुंबन मिलता है तो उसके भीतर अच्छाई और संवेदना का अहसास जाग जाता है। वह दिल से क्रिश की हो जाती है। कंगना और रितिक का एक लव सांग भी इस फिल्म में है जो मनभावन और दर्शनीय है। इस गीत में निर्देशक ने कंगना की खूबसूरत देह यस्टि को शालीनता से पेश किया है। यह कहना शायद गलत नहीं होगा कि क्रिश-3‘ में रितिक रोशन, प्रियंका चोपड़ा, विवेक ओबरॉय और कंगना रानावत ने अपने अब तक के सिनेमाई करिअर का करिश्मा कर दिया है। फिल्म के संवाद सटीक और तथ्य को गति देने वाले हैं। विज्ञान और तकनीक का कमाल पसंद करने वाले दर्शकों के लिये तो यह अद्वितीय फिल्म है ही उन दर्शकों के लिये भी उपयोगी है जो एक्शन फिल्में पसंद करते हैं। फिल्म में इमोशन और एक्सप्रेशन को पर्याप्त स्पेश दिया गया है। अवश्य देखें क्योंकि ऐसी फिल्में कभी-कभी बनती हैं। 

निर्देशक:          राकेश रोशन 
कलाकार:         रितिक रोशन, प्रियंका चोपड़ा, कंगना रानावत, विवेक ओबरॉय 
संगीत:             राजेश रोशन 
सवांद:              संजय मासूम 


मिकी वायरस

फिल्म समीक्षा

दिलचस्प और समझदार मिकी वायरस

धीरेन्द्र अस्थाना

फिल्म के शुरुआती पलों में लगा था कि युवा पीढ़ी की कुछ बेतुकी हरकतों पर फोकस करने वाली कोई साधारण सी फिल्म देखने को मिलने वाली है, लेकिन जैसे-जैसे कहानी ने गति पकड़ी फिल्म ने बांधना शुरू कर दिया। और जब फिल्म समाप्त हो गयी तो दिल को बहुत तसल्ली मिली कि एक दिलचस्प, समझदार और आधुनिक फिल्म लंबे समय बाद सिनेमाई अनुभव का हिस्सा बनी। इसे समझने के लिए थोड़ा बहुत कम्प्यूटर की दुनिया का ज्ञान होना अनिवार्य है क्योंकि इसकी मूल कहानी हैकर्स (साइट चुराने वाले) और उनके कारनामों के इर्दगिर्द बुनी गयी है। यह इस बात का भी शानदार उदाहरण है कि नये लेकिन प्रतिभाशाली कलाकारों के साथ एकदम कम बजट की फिल्म बनायी जा सकती है। बशर्ते एक मौलिक किस्म की जेनुइन और जीनियस कहानी आपके पास हो। निर्देशक सौरभ वर्मा ने एक समझदारी वाला कदम यह उठाया कि फिल्म के अंत में कहानी को समझने वाला पासवर्ड डाल दिया। मतलब अपराध की व्याख्या करने वाला एक दृश्य डालकर फिल्म को सभी दर्शकों के लिये बोधगम्य और सरल बना दिया। अगर वह ऐसा नहीं करते तो शायद फिल्म के कॉमन दर्शकों को पूरी फिल्म अजीब सा गोरखधंधा लगती। फिल्म का मेन हीरो नया लड़का मनीष पाल है जो पूरी फिल्म को बेहद सफलता पूर्वक अपने अकेले कंधों पर उठा ले गया है। उसने आज की जेनरेशन के बिंदास, खिलंदड़े, आज में जीने वाले बेफिक्र युवक का किरदार अलमस्त अंदाज में जिया है। यही है मिकी वायरस जो अपने तीन और ऐसे ही युवाओं के साथ जीवन गुजार रहा है। ये चारों कंम्प्यूटर ज्ञान में महारत हासिल किये हुए हैं। दिल्ली शहर में दो विदेशी हैकर्स का खून हो जाता है। इस मर्डर की गुत्थी सुलझाने के लिये एसीपी सिद्धांत मिकी वायरस का चुनाव करता है। तभी मिकी के जीवन में एली एवराम नामक लड़की का प्रवेश होता है और मिकी एली से मोहब्बत करने लगता है। इसी बीच एली गलती से एक कस्टमर का सौ करोड़ रुपया गलत एकाउंट में ट्रांसफर कर देती है। एली मिकी से मदद मांगती है और मिकी उसके बैंक जाकर चुपके से उस पैसे को सही एकाउंट में वापस ले आता है। इसके बाद एली का भी उसी तरह सायनाइड के इंजेक्शन से मर्डर हो जाता है जैसे दो विदेशी हैकर्स का हुआ था। इस मर्डर में मिकी फंसता हुआ नजर आता है जबकि वह खूनी नहीं है। फिर कैसे मिकी बेदाग बच जाता है और असली अपराधी एसीपी सिद्धांत और मिकी के तीन दोस्त निकलते हैं इस रहस्य पर से पर्दा उठा दिया तो फिल्म का मजा ही जाता रहेगा। इसलिये जाइये और एक शानदार-जानदार फिल्म देख आइये। 

निर्देशक:          सौरभ वर्मा 
कलाकार:         मनीष पाल, एली एवराम, वरुण बडोला, मनीष चौधरी, पूजा गुप्ता 
संगीत:              हनीफ शेख