Monday, January 27, 2014

जय हो

फिल्म समीक्षा

सलमान का नया करिश्मा जय हो

धीरेन्द्र अस्थाना

यह जानते हुए भी कि पर्दे पर सचमुच का जीवन नहीं बल्कि एक काल्पनिक फिल्म चल रही है, दर्शक सलमान खान के एंट्री लेते ही चीखने चिल्लाने और सीटियां बजाने लगते हैं। फिल्मों में सलमान की एंट्री होती भी बड़े नाटकीय तरीके से है। जैसा कि होता है सलमान की नयी फिल्म भी एक करिश्मा है। दर्शकों का क्रेज देख लगता है कि अभी कुछ वर्षों तक सलमान का जादू छाया रहेगा। वांटेडऔर दबंगकी ही श्रृंखला में जय होभी एक कड़ी है लेकिन कुछ अलग अंदाज, नये तेवर और संदेशपरक फंडे के साथ। इस बार सलमान आम आदमी की खातिर गुंडों की तोड़ा ताड़ी कर रहे हैं। ऐसे गुंडे जिन्हें राजनैतिक संरक्षण मिला हुआ है। फिल्म में उनका नारा है -आम आदमी सोता हुआ शेर है। उंगली मत करो वरना सब चीर फाड़ देगा।उनका संदेश है - थैंक्यू मत बोलो। किन्हीं तीन लोगों की मदद करो। उन तीन लोगों से बोलो कि वे अगले तीन तीन लोगों की मदद करें। इससे जो चेन बनेगी वो करोड़ों लोगों की होगी। संदेशपरक होने के बावजूद फिल्म पूरी तरह कमर्शियल मसालों से भरी हुई है मगर इन मसालों से एसीडिटी नहीं होती। राहत मिलती है कि एक पूरी तरह मनोरंजक और इमोशनल फिल्म देखने को मिली। फिल्म की एक उल्लेखनीय बात यह है कि इसमें सलमान बहुत सारे गुम हो चुके कलाकारों को लाए हैं। यह एक तरह से उन गुम कलाकारों के करिअर का चमकदार अवतार है। सलमान की फिल्म आम तौर पर केवल सलमान की फिल्म होती है लेकिन जय होमें बहुत सारे लोगों को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिला है। फिल्म में नादिरा बब्बर, तब्बू, मुकुल देव, डैनी, रेशम टिपणिस, अश्मित पटेल, यश टोंक, सना खान, मोहनीश बहल, आदित्य पंचोली, शरद कपूर, नौहीद आदि को काम करता देख सलमान की उदारता और साथी भाव पर दुलार उमड़ता है। लेकिन भरपूर मौका मिलने के बावजूद सलमान के अपोजिट अभिनेत्री डेजी शाह ने खुद को प्रमाणित नहीं किया। दरअसल सलमान के अपोजिट कोई आक्रामक तेवरों वाली हीरोईन ही जंचती है। जैसे कैटरीना कैफ, करीना कपूर और सोनाक्षी सिन्हा आदि। सुनील शेट्टी आर्मी ऑफीसर के किरदार में अपनी छाप छोड़ते हैं तो ऑटो वाले के रूप में महेश मांजरेकर और क्रूर गृहमंत्री के किरदार में डैनी डेनजोंग्पा याद रह जाते हैं। फिल्म के तीन गाने सुपरहिट रहेंगे। इतनी मारधाड़ वाली फिल्म में गुजराती तड़के वाली कॉमेडी रिलीफलेकर आती है। सोहेल खान ने एक पल के लिए भी निर्देशन पर अपनी पकड़ ढीली नहीं पड़ने दी है। वर्ष की पहली सुंदर, सार्थक और मनोरंजक फिल्म। अवश्य देखें। 

निर्देशक: सोहेल खान
कलाकार: सलमान खान, तब्बू, डैनी, जेनेलिया डीसूजा, डेजी शाह, सुनील शेट्टी आदि। 

संगीत: साजिद-वाजिद

Monday, January 20, 2014

कर ले प्यार कर ले

फिल्म समीक्षा

कर ले प्यार कर ले

ऐसी पिक्चर का क्या करें

धीरेन्द्र अस्थाना

            बड़े फिल्म निर्माता की संतान होने का एक फायदा यह हो जाता है कि सिनेमा में संघर्ष आसान हो जाता है। लेकिन यह कतई जरूरी नहीं है कि बड़े अभिनेता, निर्माता या लेखक का बेटा भी वही बने जो उसका पिता है। समझदार लोग संतान मोह में नहीं फंसते। वह अपनी संतानों के लिए उनकी प्रतिभा, परिश्रम और व्यक्तित्व के अनुरूप उनके करिअर का चुनाव करते-करवाते हैं। लेकिन कुछ लोग संतान मोह में फंस कर संतान को अभिनेता या अभिनेत्री बनाने के लिए फिल्म लांच कर देते हैं। निर्माता सुनील दर्शन ने भी यही किया है। बेटे को लेकर एक एक्शन लव स्टोरी कर ले प्यार कर लेबना डाली। कुल फिल्म का हासिल शून्य है। फिल्म में अगर किसी के काम की तारीफ की जा सकती है तो हीरोईन की मां अमनदीप कौर और विलेन के बेटे अहम शर्मा की। एक-दो लोगों को छोड़ कर फिल्म के सभी कलाकार नये हैं लेकिन उन्होंने ठीक-ठाक काम करने की पूरी कोशिश की है। फिल्म के हीरो शिव दर्शन और हीरोईन हसलीन कौर के भीतर एक्टिंग मैटीरियलहै ही नहीं। जिम जा कर बॉडी बना लेने से एक्टर बन जाने वाले दिन अब लद गये। अब एक्टर बनने के लिए अभिनय का ज्ञान होना भी लाजिमी है। यह बात सुनील दर्शन के बेटे शिव दर्शन को समझनी होगी। बेहतर होगा कि वह कुछ समय का गैप लेकर अभिनय की बारीकियों को समझें। सलमान, शाहरुख, आमिर के अभिनय को गौर से देखें। और उसके बाद पूरी तैयारी से दूसरी पारी में उतरें। पहली पारी में तो दर्शकों ने उन्हें सिरे से नकार दिया है। फिल्म आलोचकों की नजर में ही नहीं बॉक्स ऑफिस पर भी औंधे मुंह गिर पड़ी है। गलती सुनील दर्शन की नहीं है। वह पैसा लगा सकते थे, लगाया लेकिन उनका चुनाव गड़बड़ा गया। उन्होंने निर्देशक भी ऐसा चुना जो फिल्म को संभाल ही नहीं पाया। पटकथा लेखकों ने केवल पटरहने दिया और कथाको नष्ट कर दिया। एक बेहद थकी हुई पटकथा में तो नसीरुद्दीन शाह जैसे कलाकार भी कोई करिश्मा नहीं कर सकते। यहां तो कलाकार भी नौसिखिये थे। नये खलनायक रूमी खान ने प्रख्यात खलनायक प्रकाश राज को कॉपी करने की काफी कोशिश की है मगर उनकी आवाज में वह दम नहीं है जिसके लिए प्रकाश राज जाने जाते हैं। फिल्म का जो उदास गाना बेहद पॉपुलर चल रहा है उसका फिल्मांकन बेहद अनर्गल है और गायिकी फटे बांस जैसी है। फिल्म देखने का एक भी कारण फिल्म में मौजूद नहीं है। बेहतर है कि इस हफ्ते के फिल्मी बजट की चाट खा लें। 

निर्देशक:          राजेश पांडे
कलाकार:         शिव दर्शन, हसलीन कौर, अहमद शर्मा, अमनदीप कौर, रूमी खान, महेश ठाकुर
सगीत:            रेयान अमीन, राशिद खान आदि।





Monday, January 13, 2014

डेढ़ इश्किया

फिल्म समीक्षा

लंपट ठगों का मोहब्बतनामा

डेढ़ इश्किया

धीरेन्द्र अस्थाना

अपने एक साक्षात्कार में नसीरुद्दीन शाह ने कहा है - डेढ़ इश्किया इश्किया से ज्यादा बेहतर फिल्म है। फिल्म देख कर निकले तो मानना पड़ा कि नसीर की बात में दम है। दोनों फिल्मों की कहानी अलग है। मगर डेढ़ इश्कियाको बड़े पर्दे पर उतारने का अंदाज निराला है। एक बात और रेखांकित कर दें कि अरशद वारसी के जिस किरदार को सबसे जुदा और बेमिसाल माना जाता है वह है सरकिट का किरदार, फिल्म मुन्ना भाई एमबीबीएस में। उसी कड़ी में डेढ़ इश्कियाका बब्बन भी खड़ा हुआ है। निर्देशक अभिषेक चौबे ने इस फिल्म में अरशद को एक अनूठे, दिलचस्प और जमीन से जुड़े चरित्र के तौर पर पेश किया है। बब्बन एक लंपट सर्वहारा है। मोहब्बत उसके भीतर एक जुनूनी इबादत भर देती है। वह ठग और बदमाश होने के बावजूद मोहब्बत के पवित्र आलोक से भर उठता है। चोरी उसका पेशा था तो हुमा कुरैशी उसका मकसद है। फिल्म में हुमा कुरैशी ने भी जान लगा दी है। इस अभिनेत्री ने बहुत जल्दी खुद को साबित कर दिया है। अब हम इसे भविष्य की उम्मीद के तमगे से नवाज सकते हैं। माधुरी दीक्षित और नसीर तो मंजे हुए, तपे हुए कलाकार हैं। यहां उनके अभिनय का एक नया ही आयाम देखने को मिलता है। यूं तो नसीर का चरित्र भी एक लंपट ठग का ही है लेकिन उनके किरदार को निर्देशक ने थोड़ी पाकीजगी और थोड़ी रूमानियत भी बख्शी है। वह चोर हैं लेकिन इस बार वह मोहब्बत में गिरफ्तार एक शायर के अवतार में हैं। जो बात शुरू में बतानी चाहिए थी वह अब बता रहे हैं कि यह फिल्म आम आदमी के लिए नहीं है। इस फिल्म को देखने के लिए दिमाग को घर पर छोड़ कर नहीं आना है बल्कि साथ लेकर आना है। यह मनोरंजक नहीं मेधावी फिल्म है जिसे ठीक से समझ कर ही इसका लुत्फ उठाया जा सकता है। 30 नवंबर 2007 को रिलीज माधुरी दीक्षित की फिल्म आजा नच लेको माधुरी की कमबैक फिल्म कहा गया था जो वह फ्लॉप होने के कारण सिद्ध नहीं हो सकी थी। लेकिन डेढ़ इश्कियाको हम पूरे विश्वास के साथ माधुरी की वापसी फिल्म कह सकते हैं। इस वापसी पर ठप्पा लगाने आ रही है उनकी एक और फिल्म गुलाब गैंगजिसमें माधुरी का एक अलग ही रूप नजर आने वाला है। डेढ़ इश्कियाढाई घंटे की फिल्म है। इसे बहुत आसानी से पूरे दो घंटे की किया जा सकता था। तब शायद यह आम पब्लिक को भी हजम हो जाती। चोरी, ठगी, मोहब्बत, प्रतिशोध, शायरी, एक्शन और मारधाड़ से भरपूर इस फिल्म में शायराना इश्क का चेप्टर कुछ ज्यादा लंबा हो गया है। इसे छोटा किया जा सकता था। फिल्म के अंत में इस फिल्म का सीक्वेल बनाने की गुंजाईश को खुला रखा गया है। पैसा वसूल तो माधुरी दीक्षित के डांस से ही हो जाता है। बाकी सब तो बोनस है। फिल्म का गीत-संगीत भी उम्दा और यादगार है। 

निर्देशक: अभिषेक चौबे
कलाकार: नसीरुद्दीन शाह, माधुरी दीक्षित, अरशद वारसी, हुमा कुरैशी, विजय राज
संगीत: विशाल भारद्वाज
गीत: गुलजार 



Monday, January 6, 2014

मिस्टर जो. बी. करवाल्हो

फिल्म समीक्षा

मिस्टर जो. बी. करवाल्हो

ऐसे भी तो संभव है बुरा सिनेमा

धीरेन्द्र अस्थाना

            थियेटर में घुसने से पहले यह अंदाजा तो था कि मिस्टर जो. बी. करवाल्होएक साधारण फिल्म होगी। लेकिन यह भरोसा भी था कि फिल्म में अरशद वारसी, सोहा अली खान, जावेद जाफरी, विजय राज, वीरेन्द्र सक्सेना और शक्ति कपूर जैसे जांचे-परखे अभिनेता काम कर रहे हैैं तो फिल्म का टाइमपास होना लाजिमी है। मगर यह क्या? इस भरोसे का तो कत्ल हो गया। यहां तो सारे कलाकार इस तरह बर्ताव कर रहे थे कि पैसे के लिए जो भी करवा लो। यह अंदाजा बिल्कुल नहीं था कि साल की शुरुआत में साल की सबसे बुरी फिल्म से पाला पड़ जाएगा। स्टार देने का नियम है इसलिए खराब फिल्म वाला एक स्टार दिया है वरना असल में तो यह एक स्टारलेस मूवी है जिसने खराब फिल्म का वर्ल्ड रिकॉर्ड अपने नाम पर कर लिया है। फिल्म देखने के बाद यह पड़ताल जरूरी थी कि क्यों बॉलीवुड में अनुराग कश्यप की अदभुत फिल्म ब्लैक फ्रायडेको पूरे आठ साल तक प्रोड्यूसर और थियेटर नहीं मिले और क्यों इस फिल्म को देश भर में इतने सारे थियेटर मिल गये? पता चला, मामला इमोशनल अत्याचार का है। फिल्म के प्रोड्यूसर भोलाराम मालवीय अमिनेता अरशद वारसी के लंबे समय से सेक्रेट्री हैं। अब सेक्रेट्री निर्माता बनेगा तो रिश्ते के इमोशन में फंसना ही होगा न। बेचारे अरशद वारसी भी हो गये इमोशनल अत्याचार के शिकार। इन्हीं अरशद वारसी की अगले शुक्रवार डेढ़ इश्कियाजैसी अजब-गजब फिल्म प्रदर्शित होने जा रही है। अनुमान लगाया जा सकता है कि फिल्म के बाकी कलाकारों ने भी किसी न किसी इमोशनल ब्लैकमेल के तहत फिल्म की होगी। वरना यूं ही कोई घटिया सिनेमा में नहीं उतर जाता। फिल्म देखने का कोई कारण नहीं है इसलिए इस हफ्ते की फिल्म के टिकट के पैसों का खाने-पीने में सदुपयोग कर लें तो ज्यादा बेहतर होगा। रिवाज है इसलिए कुछ तो फिल्म के बारे में भी बताना ही होगा। फिल्म को कॉमेडी जोनर की बताया गया है मगर यह ऐसी कॉमेडी है जिस पर रोना ही आ सकता है। अरशद वारसी एक प्राइवेट जासूस है जिसे घर से भागी, एक अमीर सौतेले बाप की बेटी का प्रेम विवाह रुकवाने का महंगी फीस वाला केस मिलता है। जावेद जाफरी एक इंटरनेशनल हत्यारा है जिसे पकड़ने के लिए सोहा अली खान को तैनात किया जाता है। सोहा एक पुलिस अधिकारी है जो बचपन से अरशद से प्यार करती आयी है मगर अरशद को ही इंटरनेशनल किलर समझ उससे नफरत करने लगी है। परंपरा के अनुसार फिल्म की हैप्पी एंडिंग हो जाती है और खलनायक नदारद हो जाते हैं।
निर्देशक:      समीर तिवारी
कलाकार:     अरशद वारसी, जावेद जाफरी, सोहा अली खान, विजय राज, शक्ति कपूर, वीरेन्द्र सक्सेना

संगीत:             अमर्त्य राहत