Monday, June 28, 2010

क्रांतिवीर

फिल्म समीक्षा

नेक इरादों की कमजोर क्रांतिवीर

धीरेन्द्र अस्थाना

नाना पाटेकर को लेकर ‘क्रांतिवीर‘ और ‘तिरंगा‘ जैसी यादगार तथा अर्थपूर्ण फिल्में बनाने वाले मेहुल कुमार ने अपनी बेटी जहान ब्लोच को लाॅंन्च करने के लिए ‘क्रांतिवीर‘ का सीक्वेल बनाया है। फिल्म का चुनाव अच्छा है और उनका इरादा भी नेक है। लेकिन केवल नेक इरादों भर से बेहतर फिल्में नहीं बन सकतीं। एक कमजोर तथा गए जमाने की पटकथा के चलते यह सीक्वेल प्रभावित करने में कामयाब नहीं हो पाया है। जहान ब्लोच इस फिल्म में नाना पाटेकर और डिंपल कपाड़िया की तेजतर्रार बेटी के रोल में है। समाज में फैली विसंगतियों और असमानताओं को लेकर वह जहां तहां भिड़ जाती है। अंततः वह फिल्म के हीरो समीर आफताब के साथ मिलकर टीवी मीडिया के जरिए सामाजिक क्रांति करने का उद्देश्य अपने सामने रखती है। इस उद्देश्य में उसका साथ देते हैं उसके दो और युवा दोस्त आदित्य सिंह राजपूत तथा हर्ष राजपूत। इन दोनों में से एक राज्य के भ्रष्ट मंत्री तथा दूसरा एक लालची बिल्डर का बेटा है। फिल्म के अंत में जहान ब्लोच अपने साथियों की मदद से इस उद्देश्य में उस समय सफल भी हो जाती है जब उसकी एक रिपोर्ट को देखकर आम जनता क्रोध में आ जाती है और भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ क्रांति का बिगुल बजा देती है। अपने आप में यह एक पवित्र लेकिन मासूम विचार है। क्योंकि इस तरह से क्रांतियां नहीं होती हैं। फिर, इस विचार को अमलीजामा पहनाने के वास्ते जिन चार युवा कलाकारों को चुना गया है उन्हें अभी अभिनय का ककहरा सीखना है। जहान ब्लोच ने ‘राष्ट्रीय सहारा‘ को दिए एक इंटरव्यू में माना है कि इस फिल्म के लिए उसने अपना तीस किलो वजन कम किया। लेकिन यह काफी नहीं है। अभी उसे और पतला होना पड़ेगा। संवाद अदायगी तथा भावाभिव्यक्ति में भी असर लाना होगा। उसके साथी कलाकार समीर आफताब ने ठीक ठाक काम किया है लेकिन बाकी दो हर्ष तथा आदित्य तो कैमरे का सामना भी आत्म विश्वास के साथ नहीं कर पाए हैं अभिनय क्या करते! पूरी फिल्म गोविंद नामदेव और मुकेश तिवारी जैसे समर्थ कलाकारों के दम पर खींची गई है लेकिन दोनों के ही चरित्र नकारात्मक और बेहद ‘लाउड‘ हैं इसलिए प्रभावित नहीं कर पाते हैं। पटकथा, फिल्मांकन, संपादन तीनों पक्ष इस फिल्म की कमजोर कड़ियां हैं। पर खुशी की बात है कि इस फिल्म का गीत-संगीत बेहतर है। खास तौर से एक युवक के जन्म दिन पर फिल्माया हुआ गीत। केवल एक मिनट के बेहद छोटे से दृश्य में दर्शन जरीवाला एक अविस्मरणीय पल सौंप जाते हैं। फरीदा जलाल जहान ब्लोच की नानी के रोल में हैं और उन्होंने अपनी भूमिका सहज ढंग से निभायी है। जिस तरह के समय में हम रह रहे हैं और जैसी क्षणजीवी तथा भौतिकवादी युवा पीढ़ी हमारे इर्द गिर्द है उसे देखते हुए चार आदर्शवादी युवाओं को रोल माॅडल के रूप में पेश करके मेहुल कुमार ने जरूर एक सराहनीय काम किया है।

निर्देशक: मेहुल कुमार
कलाकार: जहान ब्लोच, समीर आफताब, हर्ष राजपूत, आदित्य राजपूत, फरीदा जलाल, गोविंद नामदेव, मुकेश तिवारी, दर्शन जरीवाला।
गीत: समीर
संगीत: सचिन-जिगर

Saturday, June 19, 2010

रावण

फिल्म समीक्षा

ऐसे भी तो संभव है ‘रावण‘

धीरेन्द्र अस्थाना

मणि रत्नम नामवर निर्देशक हैं। अभिषेक बच्चन और ऐश्वर्या राय को लेकर उन्होंने ‘गुरू‘ बनायी, जो बाॅलीवुड और अभिषेक बच्चन के करियर में मील के पत्थर की तरह दर्ज रहेगी। फिल्म बाॅक्स आॅफिस पर भी हिट हुई थी। अब मणि रत्नम ‘रावण‘ लेकर आये हैं। इसमें भी अभिषेक-ऐश्वर्या की जोड़ी है। मीडिया में इस फिल्म की आए दिन चर्चा होती रही है। कभी इसकी मेकिंग को लेकर, कभी इसमें फिल्माए जंगलों को लेकर कभी ऐश्वर्या तथा अभिषेक के हैरतअंगेज स्टंट दृश्यों को लेकर तो कभी शूटिंग के दौरान होने वाली मुसीबतों के चलते। इन सब पैमानों पर ‘रावण‘ खरी उतरती है। अभिषेक और ऐश्वर्या ने इस फिल्म में सचमुच अपने जीवन के अब तक के सबसे कठिन, खतरनाक लेकिन यादगार दृश्यों को अंजाम दिया है। फिल्म की मेकिंग, एडीटिंग, सिनेमेटोग्राफी, बैकग्राउंड म्यूजिक, निर्देशन, अभिनय, गीत सब कुछ आला दर्जे का और अनूठा है। लेकिन कहानी के स्तर पर फिल्म में एक जबर्दस्त चूक हो गयी है। न तो इस फिल्म का नाम ‘रावण‘ होना चाहिए था न ही इसके प्रमुख पात्रों को ‘रामायण‘ के पात्रों की छाया जैसा दिखाना चाहिए था। हर क्षेत्र के दिग्गज लोग इस फिल्म के साथ जुड़े हुए हैं। यह सलाह मणि रत्नम को किसी ने नहीं दी कि ‘रावण‘ जैसे बुराई के आपादमस्तक प्रतीक से भारत की जनता स्वयं को सकारात्मक स्तर पर कभी जोड़ना पसंद नहीं करेगी। रावण, रामायण और रामायण के पात्रों के आ जाने से फिल्म की भावनात्मक और संवेदनात्मक अपील पर प्रतिकूल असर पड़ा है। बौद्धिक स्तर पर भी इसकी कोई विशेष क्या, कतई जरूरत नहीं थी। सीधी सादी बीरा की कहानी है जो अपनी बहन पर हुए जुल्म का बदला लेने के लिए पुलिस अधिकारी की पत्नी का अपहरण करता है। दोनों में जंग होती है और अंततः प्रशासन जीत जाता है। विद्रोह कुचल दिया जाता है। कबीलाई नेता बीरा पुलिस अधिकारी की पत्नी रागिनी के प्रति आसक्त होता है। रागिनी भी उसकी अच्छाई, उसकी निष्ठा, उसके समर्पित प्रेम के कारण अंत में उसे लेकर कहीं भावनात्मक स्तर पर कमजोर पड़ती है। यह स्थिति एकदम स्वाभाविक भी है लेकिन एक यथार्थवादी कहानी के धरातल पर बने रह कर। लेकिन जैसे ही दर्शक को अहसास होता है कि यह नयी व्याख्या एक पौराणिक ग्रंथ के मशहूर चरित्रों के संदर्भ में हो गयी है, वह उससे अपना सामंजस्य नहीं बिठा पाता। इतनी प्रचारित, महंगी, बड़ी स्टार कास्ट वाली अद्भुत फिल्म इसीलिए दर्शकों के मोर्चे पर परास्त होती दिखती है। फिर भी एक जोखिम उठाने के लिए फिल्म की टीम से जुड़े सभी लोगों को सलाम। विशेष कर भोजपुरी स्टार रवि किशन को।

निर्देशक: मणि रत्नम
कलाकार: अभिषेक बच्चन, ऐश्वर्या राय बच्चन, विक्रम, गोविंदा, निखिल द्विवेदी, रवि किशन, प्रिया मणि
गीत: गुलजार
संगीत: ए.आर.रहमान
सिनेमेटोग्राफी: संतोष सिवन

Saturday, June 5, 2010

राजनीति

फिल्म समीक्षा

विराट और भव्य ‘राजनीति‘

धीरेन्द्र अस्थाना

प्रकाश झा की नयी फिल्म ‘राजनीति‘ सब लोगों को देखनी चाहिए। उन्हें भी जो कहते हैं कि हमें राजनीति से कोई लेना देना नहीं। हम जो गेहूं का दाना घर में लाते हैं, वह भी राजनीति से अछूता नहीं है फिर कोई मनुष्य राजनीति से अलग कैसे रह सकता है। फिल्म ‘राजनीति‘ भी हमें यही संदेश देती है कि हम चाहें या न चाहें लेकिन राजनीति हमें पग-पग पर न सिर्फ संचालित करती है बल्कि भ्रष्ट भी करती है। राजनीति ने मनुष्य के कोमलतम रिश्तों में भी सेंध लगा दी है और मानवीयता तथा संवेदनशीलता जैसे पवित्र तथा अनिवार्य रूप से बेहतरीन गुणों को एक बड़े बाजार में धंधे पर बिठा दिया है। एक विराट और भव्य फिल्म बनाई है प्रकाश झा ने। यह उनके अब तक के जीवन का सबसे कामयाब, शानदार, जानदार काम है। अब तक की सबसे दिव्य, बौद्धिक उपलब्धि। यह फिल्म देख कर पता चलता है कि रणबीर कपूर, कैटरीना कैफ, मनोज बाजपेयी और अर्जुन रामपाल के भीतर जो प्रतिभा मौजूद है उसे अभी और और खोजा जाना बाकी है। अजय देवगन ने तो लीक से हट कर किए जीवंत अभिनय से अपने सामने ही चुनौती पेश कर दी है। नाना पाटेकटर और नसीरुद्दीन शाह मंजे हुए अभिनेता हैं। उनके होने ने फिल्म को गरिमा दी है। नाना पाटेकर का चरित्र पूरी फिल्म को अनवरत गति देने का काम भी करता है। इस बात को बहुत ज्यादा प्रचारित किया गया है कि ‘राजनीति‘ की प्रेरणा ‘महाभारत‘ से ली गयी है लेकिन ऐसा कुछ बहुत ठोस नहीं है। प्रकाश झा की फिल्म में महाभारत के कुछ चरित्रों की छायाएं जरूर दिखती हैं लेकिन उनका समय और संदर्भ वर्तमान यथार्थ से जुड़ा हुआ है। फिल्म के अंत में जब कैटरीना कैफ के व्यक्तित्व का राजनीतिकरण होता है तब हम उनके भीतर जरूर एक वर्तमान राजनैतिक व्यक्तित्व की छवियां तलाश सकते हैं लेकिन यह सब एक ‘सिनेमाई पाठ‘ की वजह से हुआ है। मनोज बाजपेयी ने करिश्माई काम किया है। कह सकते हैं कि ‘राजनीति‘ ने उन्हें नया जीवन दिया है। सत्ता की बनैली और दुर्दांत राजनीति में रिश्ते-नाते कैसे धू-धू कर के जल जाते हैं, इसका एक ठोस, अर्थपूर्ण और यथार्थवादी विमर्श पेश किया है प्रकाश झा ने। काॅमेडी के बाजार में एक सार्थक हस्तक्षेप। गीत-संगीत और संवाद भी रचनात्मक हैं।

निर्देशक: प्रकाश झा
कलाकार: नाना पाटेकर, नसीरुद्दीन शाह, अजय देवगन, रणबीर कपूर, कैटरीना कैफ, मनोज बाजपेयी, अर्जुन रामपाल आदि।
संगीत: प्रीतम चक्रवर्ती, आदेश श्रीवास्तव, शांतनु मोईत्रा।