Tuesday, April 29, 2014

रिवॉल्वर रानी

फिल्म समीक्षा

शानदार जानदार रिवॉल्वर रानी 

धीरेन्द्र अस्थाना

यह सोचते हुए फिल्म देखने गया था कि कंगना रनौत ने इस तरह की फिल्म क्यों की होगी? आज के समय में डाकुओं पर बनी फिल्म में क्या और कितना करने को होगा जबकि इस विषय पर हम ‘शोले‘ जैसी नायाब फिल्म देख चुके हैं। हाल फिलहाल ही ‘क्वीन‘ में कंगना अपने अभिनय का जलवा दिखा चुकी हैं फिर यह सी ग्रेड टाइप फिल्म क्या सोच कर साइन की होगी? लेकिन ‘रिवॉल्वर रानी‘ में तो कंगना ने करिश्मा ही कर दिया। मूलतः पूरी फिल्म कंगना की ही है लेकिन तीन अन्य कलाकारों जाकिर हुसैन, पीयूष मिश्रा और वीर दास के होने से फिल्म को एक गति और कुछ नये आयाम तथा विस्तार मिल गये हैं। इंटरवल तक फिल्म में गति, एक्शन और कंगना की ढांय ढांय है लेकिन इंटरवल के बाद कहानी इमोशनल ट्रैक पर पहुंच जाती है। डकैत कंगना के अपने कुछ भावनात्मक उसूल हैं जिनमें वह वह किसी को भी सेंध नहीं लगाने देती। अपने मामा पीयूष मिश्रा को भी नहीं जो उसकी मां भी हैं और पिता भी। डकैत कंगना के जीवन की पटकथा लिखने वाले उसके मामा पीयूष मिश्रा ही हैं। दूसरा है वीर दास जिसने बदसूरत, बदजबान और बीहड़ कंगना के भीतर खोजा है एक सुंदर, विनम्र और कोमल स्त्री को, जिसे वह प्यार करने लगा है। कंगना जैसी खूंखार डकैत इस प्यार के सामने समर्पण कर देती है और वीर दास उसके जीवन में बतौर प्रेमी उपस्थित हो जाता है। मगर कंगना प्रेम भी काफी आक्रामक ढंग से और अपनी ही शर्तों पर करती है। कंगना के जीवन का तीसरा कोण है भानु भइया यानी जाकिर हुसैन। यह कंगना का राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी है। कंगना राजनीति में भी शामिल है। वह पांच साल तक क्षेत्र की विधायक रहने के बाद नये चुनाव में भानु भइया से हार गयी है। अपने राजनैतिक रूप से बलशाली समय में वह भानु भइया के बड़े भाई को मरवा चुकी है। इस बात को भानु भइया का गुस्सैल परिवार पचा नहीं पा रहा है और उसके अंत के षड्यंत्र रचता रहता है। इंटरवल के बाद कहानी नया मोड़ लेती है। कंगना गर्भवती है जबकि वह बांझ औरत के रूप में प्रचारित थी। यह बच्चा वीर दास का है क्योंकि मूल पति को तो कंगना बहुत पहले मार चुकी थी, उसी बेवफाई के चलते। खोट पति में ही था मगर बांझ के रूप में प्रचारित हुई कंगना। अब उसे मां बन कर इस झूठ को रद्द करना है। यही नहीं अब उसे ‘हाउस वाइफ‘ बन कर बाकी का जीवन जीना है। मामा और पति को यह मंजूर नहीं क्योंकि पति (वीर दास) को तो बॉलीवुड का एक्टर बनना है और मामा को दबंग राजनेता। मामा दुश्मन कैंप से मिल जाता है और कंगना को मरवाने की इजाजत दे देता है। वीर दास इमोशनल ब्लैकमेल कर दस करोड़ रूपये के साथ कंगना के साथ इटली के लिए निकल पड़ता है। रात बिताने के लिए जिस गेस्ट हाउस में दोनों रुकते हैं वहां दुश्मन का सशस्त्र हमला हो जाता है। हमले में कंगना घायल होती है लेकिन वह पूरी दुश्मन फौज को खदेड़ देती है। फिर वह वीर दास से कहती है - चलो। मगर वीर दास कंगना को तीन गोली मार रुपयों से भरा ब्रीफकेस ले भाग जाता है। दरअसल सबके सब कंगना का इस्तेमाल कर रहे थे। फिल्म इस ‘नोट‘ पर खत्म होती है कि घायल कंगना को बागी कैंप के लोग उठा ले जाते हैं। वहां कंगना की एक आंख खुल जाती है और फिल्म समाप्त हो जाती है। यह अंत फिल्म के सीक्वेल बनने का भी संकेत है। दिलचस्प फिल्म है। देखी जा सकती है। गीत-संगीत लीक से हट कर है। 
निर्देशक - साईं कबीर
कलाकार - कंगना रनौत, वीर दास, पीयूष मिश्रा, जाकिर हुसैन
संगीत - संजीव श्रीवास्तव

1 comment:

  1. आप फिल्म की समीक्षा के नाम पे पूरी कहानी लिख दिए हैं !

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