Monday, December 29, 2014

अगली

फिल्म समीक्षा

काले तंत्र की क्रूर कथा : अगली

धीरेन्द्र अस्थाना

अनुराग कश्यप का एक और बेहतरीन प्रोजेक्ट : अगली। क्रूर तंत्र की काली कथा बयां करने का एक नया अंदाज और सिनेमा का एक नया पाठ। कितना कठिन संधर्ष किया है इस बंदे ने तब जा कर कहीं यह बॉलीवुड में अपनी खुद की लकीर खींच पाया है। अगली समाज के धुले पुछे लोगों के कुरूप चेहरों की पड़ताल करती है। इस फिल्म के हीरो हीरोइन इसकी कहानी है और उस कहानी को विमर्श में ढाल देने का अंदाज उसका क्राफ्ट है। इस फिल्म को इसलिए भी देखा जाना चाहिए ताकि पता चले कि अच्छा सिनेमा कैसे बुना और रचा जाता है। यह सौ करोड़ के क्लब में शामिल होने वाली फिल्म भले ही ना हो लेकिन सौ बरस के बेहतरीन सिनेमा की एक फिल्म अवश्य है। रोनित रॉय, राहुल भट्ट, तेजस्वनी कोल्हापुरे, सुरवीन चावला इन सभी कलाकारों ने अपने किरदार में जान लड़ा दी है। ये सब समय के हाथों पिटे हुए चरित्र हैं। राहुल एक स्ट्रगलर एक्टर है जिसे अब तक किसी भी फिल्म में मौका नहीं मिला है। उसका अपनी बीबी तेजस्वनी से तलाक हो चुका है और वह हर शनिवार अपनी बेटी कली को अपने साथ ले जाता है। तेजस्वनी ने राहुल को छोड़ एक कठोर, निर्मम पुलिस ऑफिसर रोनित रॉय से शादी कर ली है लेकिन इस रिश्ते में भी उसके हाथ हताशा और वंचना ही आयी है। इस दौरान तेजस्वनी और राहुल की बेटी कली को एक उचक्का उठा ले जाता है। कली को बांध कर छुपाने के बाद वह उच्चका एक सड़क दुर्घटना में मारा जाता है। राहुल कली के किडनेप की खबर लिखाने पुलिस के पास जाता है और खुद ही अपहरण के शक में घर लिया जाता है। अनुराग ने यह बताने की कोशिश की है कि बच्ची के अपहरण की सही खोज कोई नहीं करता। सब इस अपहरण के नाम पर अपनी निजी कुंठाएं और दुश्मनी तथा फायदे सिद्ध करना चाहते हैं। रोनित को राहुल को फंसा कर अपने कॉलेज के दिनों की दुश्मनी निकालनी है। तेेजस्वनी का भाई बहन से फिरौती की रकम मांग कर ऐश करना चाहता है। राहुल का दोस्त रोनित से पैसे एेंठना चाहता है। तेजस्वनी अपने पति के कू्रर और ठंडे व्यवहार से आहत और दुखी है। सब अपने अपने हिस्से की एक थकी हुयी लड़ाई लड़ रहे हैं जबकि वह बच्ची जिसका अपहरण हुआ था एक गली में बंघी सड़ रही है। जिस जगह से बच्ची का अपहरण हुआ था अगर उस जगह के आस पास की पुलिस महकमा तलाशी लेता तो शायद लड़की को बचा लिया जाता। अपहरण कर्ता की जिस बुआ के साथ पुलिस अंत में सख्ती बरतती है उसके साथ अगर शुरू में ही सख्ती से पेश आती तो शायद बंघक लड़की तक पहुंचा जा सकता था। यही तो है अनुराग कश्यप का अंदाज। उन काले कोनों को उजागर करना जहां किसी की नजर नहीं जा पाती। अवश्य देख लें। कहानी, एक्टिंग, निमार्ण सब कुछ बेमिसाल है।

निर्देशक : अनुराग कश्यप
कलाकारः रोनित रॉय, राहुल भट्ट, तेजस्वनी कोल्हापुरे, सुरवीन चावला
संगीत : जीवी प्रकाशराव




Sunday, December 21, 2014

पी के

फिल्म समीक्षा

एलियन की प्रेम कहानी: पी के

धीरेन्द्र अस्थाना

जब यह खबर बाहर आयी कि इस बार आमिर की फिल्म में कोई संदेश नहीं है। कि वह शुद्ध कॉमेडी फिल्म है जो दर्शकों को हंसा हंसा कर लोटपोट कर देगी। फिल्म के ट्रेलर से भी कोई अंदाजा नहीं लगा पा रहा था और आमिर खान के इंटरव्यूज से भी इस बात का खुलासा नहीं हो रहा था कि आखिर पीके नाम की इस फिल्म की कहानी क्या है। जो भी हो दिल यह मानने को तैयार नहीं था कि आमिर खान जैसा मिस्टर परफैक्शनिस्ट सिर्फ कॉमेडी करके दर्शकों का दिल बहलाएगा। इस काम के लिए तो बॉलीवुड में एक्टरों की कतारें लगी हुयी हैं। तो क्या आमिर भी उसी कतार में? लेकिन फिल्म ने आंखों में पड़े सारे धुंधलके साफ कर दिये। फिल्म में न सिर्फ संदेश है बल्कि बड़ा करारा संदेश है। ऐसा संदेश कि जिसके लिए लोहे का कलेजा चाहिए। धर्म चाहे जो भी हो यह फिल्म हर धर्म के भगवान के मैनेजरों के खिलाफ युद्ध का ऐलान करती है। धर्म के ठकेदारों से टकराते टकराते यह फिल्म एक एलियन की खामोश प्रेम कहानी में ढल जाती है। इस एलियन और उसकी मासूमियत के माध्यम से निर्देशक राजकुमार हिरानी ने समाज के कई ज्वलंत मुद्दों को बेधक सवालों से बेपर्दा किया है। यह एलियन है आमिर खान जो अपने ग्रह से पृथ्वी पर आया है यह जानने के लिए कि क्या उनके ग्रह जैसा जीवन किसी और ग्रह पर भी है। उसके गले में एक लॉकेट है जो दरअसल उसका रिमोट कंट्रोल है। इसके जरिए वह अपने यान को बुलाकर वापस अपने ग्रह लौट सकता है। उसके ग्रह पर लोग नंगे रहते हैं इसलिए वह भी पृथ्वी पर नंगा ही उतरता है। लेकिन राजस्थान के जिस गांव में वह उतरता है वहां एक चोर उसका रिमोट छीन कर भाग जाता है। अब पृथ्वी की भाषा बोली आचरण व्यवहार और पोशाकों से कतई अनजान एक एलियन कैसे सर्वाइव करे। कुल मिला कर फिल्म का यही संघर्ष है और इस संघर्ष की प्रक्रिया में एलियन टकराता है खुदा के विभिन्न सौदागरों से। इसी दौरान उसकी मुलाकात टीवी रिपोर्टर अनुष्का शर्मा से होती है जो सरफराज नामक प्रेमी से धोखा खाए बैठी है। एलियन अनुष्का की तरफ आकर्षित होने लगता है और अंततः उसे प्यार कर बैठता है। चोर ने एलियन का रिमोट कंट्रोल देश के एक बहुत बड़े स्वामीजी को चालीस हजार में बेच दिया था। अनुष्का एलियन और स्वामीजी के बीच में एक टीवी शो करवा कर वह रिमोट वापस पाने का चक्कर चलाती है। ताकि एलियन फिर से अपने घर अपने ग्रह लौट सके। जब एलियन अपने ग्रह लौट रहा होता है तब उजागर होती है एलियन यानी पीके की खामोश प्रेम कहानीे। लेकिन तब तक तो दोनों के जीवन में बहुत कुछ बुनियादी रूप से बदल चुका होता है। जिसे अनहुआ नहीं किया जा सकता। फिल्म शब्द और उसके अर्थ का एक नया पाठ भी आपके सामने रखती है जिससे गुजरते समय आप आवाक रह जाएंगें।सुंदर, मार्मिक, बेहतरीन और अर्थपूर्ण फिल्म है जिसमें मनोरंजन का भी भरपूर ध्यान रखा गया है। अनुष्का और आमिर दोनों ही अब तक के नये लुक में हैं। एक करिश्माई फिल्म जिसका जादू सिर पर देर तक चढ़ा रहता है। अवश्य देखें। 

निर्देशक: राज कुमार हिरानी
कलाकारः आमिर खान, अनुष्का शर्मा, बोमन ईरानी, सुशांत सिेह राजपूत, संजय दत्त, सौरभ शुक्ला
संगीत: शांतनु मौइ़त्रा



Thursday, December 18, 2014

एक्शन जैक्सन

फिल्म समीक्षा
एक्शन जैक्सन केवल एक्शन
धीरेन्द्र अस्थाना
पता नहीं दर्शकों को कैसे पता लग जाता है कि कौन सी फिल्म देखनी है और कौन सी नहीं। वरना तो जितना इस फिल्म का प्रचार हुआ है उसे देख कर लग रहा था कि अजय की यह फिल्म कहीं उनकी ही सुपर हिट फिल्म सिंघम का रिकॉर्ड न तोड़ दे। मगर अजय देवगन जैसा आजमाया हुआ एक्शन स्टार, सुपर हिट सोनाक्षी और प्रभु देवा जैसे हिट निर्देशक के बावजूद दर्शकों ने फिल्म को ठुकरा दिया। कुल तीस चालीस लोग अपने साथ यह एक्शन पैक्ड नाटक देखने पहुंचे थे। दरअसल दिक्कत यह है कि बार बार यह लिखने के बावजूद कि सिनेमा की सफलता के लिए एक अदद अच्छी और तार्किक कहानी का होना बहुत जरूरी है, निर्माता निर्देशक बस कहानी पर ही ध्यान नहीं देते। उनकी लोकेशन लाजवाब, उनका बजट बेमिसाल, उनका गीत संगीत धमाल। गायब है तो सिर्फ एक अच्छी और थोड़ी सी नयी कहानी। एक्शन जैक्शन में तो नयी या अच्छी क्या कहानी ही नहीं है। पूरी फिल्म आरंभ से अंत तक सिर्फ मारधाड से भरी है। इंटरवल के बाद थोड़ा सा कॉमिक रिलीफ दिया गया है जो बहुत बेतुका है और फिल्म की थोड़ी बहुत लय को भी गड़बड़ा देता है। फिल्म की सबसे बड़ी विशेषता उसके गाने और हिमेश रेशमिया का संगीत है। सभी गाने बहुत पहले ही हिट हो चुके हैं। हिमेश को सिर्फ संगीत में ही रहना चाहिए। वही उनका असली मुकाम है। बड़े ही अजीबो गरीब चेहरों वाले खलनायकों को तो सिनेमा वाले पकड़ ही लाते हैं लेकिन इस बार मनस्वी ममगांई नाम की जिस लड़की को खलनायिका के रूप में उतारा गया है वह काबिले तारीफ है। वह अपने लुक से ही नहीं अपने पूरे हाव भाव से भी वैंप लगती है। डर है कि कहीं इस नयी लड़की को अब सिर्फ ऐसे ही रोल ना ऑफर होने लगें। सोनाक्षी सिन्हा को देखकर अजय देवगन का यह कहना कि जब जब पैंट उतारता हूं, सामने आ जाती है, बहुत भद्दा और अश्लील लगता है। इस डायलॉग को एवॉइड किया जा सकता था लेकिन सिनेमा जो ना कराए। सोनाक्षी ने अपने हिसाब से मनोरंजक काम किया है लेकिन वह फिर से मोटापे की तरफ बढ़ रही है। यमी गौतम के लिए ज्यादा स्पेस नहीं था। जितना था उसमें उसने अपना होना जस्टीफाई किया। अब बचे अजय देवगन। वह डबल रोल में हैं। दोनों गुंडे हैं। एक लोकल एक इंटरनेशनल। दोनों की जिंदगी में एक अदद लड़की आती है और दोनों अपराध की दुनियां से निकल कर साफ सुथरी जिंदगी बिताना चाहतें हैं। मगर ऐसा होता थोड़े ही है। एक बार जो अंधेरी गलियों में उतर गया उसका रौशन सड़क पर लौटना संभव ही नहीं है। एक अजय मुंबई का लोकल गुंडा है दूसरा अजय एशिया के सबसे बड़े डॉन का राइट हैंड है। दोनो को अपनी अपनी प्रेमिकाओं के लिए अच्छा आदमी बनना है लेकिन भाई लोग बनने ही नहीं देते। अब क्या करें। एक ही रास्ता है कि येन केन प्रकारेण जुर्म और जुल्म के सरदारों का सत्यानाश करो और फिल्म की हैप्पी एंडिंग को अंजाम दो। यही रास्ता इस फिल्म के लिए भी आजमाया गया है। डॉन का अंत होता है और दोनों देवगन अपनी अपनी प्रेमिकाओं के साथ प्यार की खुशनुमा गली में उतर जाते हैं। जो मारधाड और मारकाट के शौकीन हैं उनके लिए यह फिल्म टकाटक है। बाजार के खिलाफ जाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। 

निर्देशक: प्रभु देवा
कलाकारः अजय देवगन, यमी गौेतम, सोनाक्षी सिन्हा, मनस्वी ममगांई
संगीत: हिमेश रेशमिया