Monday, January 26, 2015

बेबी

फिल्म समीक्षा
गहरी और अर्थपूर्ण: बेबी 
धीरेन्द्र अस्थाना

मुख्यधारा सिनेमा में काम करने की एक अजीब सी टेªजेडी यह है कि आतंकवाद जैसे गंभीर विषय पर फिल्म बनाते हुए भी निर्माता निर्देशक चटपटे मसालों से बच नहीं पाते। निर्देशक नीरज पांडे बाजार में बैठ कर भी बाजारू होने से बचे हुए हैं इसके लिए उन्हें दाद मिलनी चाहिए। उनकी नयी फिल्म भी मसालों से पूरी तरह दूर है। बेबी को उन्होंने अपनी परिकल्पना, सूझबूझ और मंशा के चलते आतकंवाद के खिलाफ एक सार्थक हस्तक्षेप के रूप में ढाल दिया है। यह फिल्म मनोरंजन से बहुत उपर उठकर अंधकार के विरूद्ध प्रकाश की लड़ाई में बदल जाती है। सिनेमा के आम दर्शकों को फिल्म निराश कर सकती है क्योंकि इसमें चालू फिल्मों की तरह हीरोपंती, मारधाड़, आइटम सांग, डबल  मीनिंग वाले डायलॉग वगैरह नहीं हैं। लेकिन सार्थक और गहरी फिल्मों के कद्रदानों के लिए बेबी 2015 का बेहतरीन तोहफा है। शायद इसीलिए हिंदी सिनेमा के अनेक सफल और स्थापित एक्टरों ने इस फिल्म में छोटे छोटे रोल करना स्वीकार किया है। असल में पूरी फिल्म ही अक्षय कुमार के कंधों और चरित्र पर टिकी हुई है। बाकी तमाम कलाकारों को फिल्म के सपोर्टिव एक्टर कहा जा सकता है जो फिल्म को गति देने का काम करते हैं। फिल्म में ईशा गुप्ता का एक आइटम सांग भी है लेकिन जब उसकी बारी आती है तब तक दर्शक थियेटर से निकल रहे होते हैं और पर्दे पर नामावली चल रही होती है। इसलिए उसके होने का भी कोई मतलब नहीं हर जाता है। मधुरिमा तुली कोई बहुत जाना पहचाना नाम नहीं है और उसके करने के लिए भी फिल्म में कुछ खास नहीं था तो भी अक्षय की पत्नी के रोल में वह याद रह जाती है। ऐसी पत्नी जिसे यह भी नहीं पता कि उसका पति करता क्या है और हर समय गायब क्यूं रहता है। वह अक्षय को जब भी फोन करती है बस एक डायलॉग बोलती है: मरना मत। यह निवेदन दर्शकों के अंतःकरण को स्पर्श करता है। फिल्म की हीरोइन साउथ की स्टार तापसी पन्नु है जो फिल्म में अक्षय के साथ होते हुए भी उनका लव इंटरेस्ट नहीं है। वह खुद एक खुफिया अधिकारी हैं जो एक खास मिशन मंे अक्षय को सपोर्ट करती हैं। अपने एक्शन सीन्स में वह प्रभावित करती हैं। बेबी किसी लड़की का नहीं एक मिशन का नाम है जिसे अक्षय कुमार लीड करता है। इस टीम में भारत के बारह खुफिया ऐजेंट होते हैं जिनमें अलग अलग मिशन को अन्जाम देने के दौरान आठ शहीद हो जाते हैं। बचते हैं केवल चार: अक्षय कुमार, अनुपम खेर, तापसी पन्नु और राणा दग्गूबत्ती। के. के. मेनन और सुशांत सिंह जैसे समर्थ अभिनेता छोटे छोटे रोल में आतंकवादी बने हैं। लेकिन दोनों ही अपनी मौजूदगी को प्रभावशाली बना सके हैं। के. के. जैसे एक्टर के खाते में तो एक भी संवाद नहीं आया तो भी वह अपनी बॉडी लैंग्वेज से कमाल रच देते हैं। डैनी डैगंजोग्पा मुंबई एटीएस की चीफ हैं और अपनी भंगीमाओं से फिल्म को विस्तार देते हैं। सबसे अंत में हम अक्षय कुमार को याद करेंगे जिन्होंने बता दिया है कि वह केवल एक्शन या कॉमिक फिल्मों के ही बादशाह नहीं हैं बल्कि अर्थपूर्ण और गहरी फिल्मों को भी अपने दमदार अभिनय से नयी उचांईयां दिला सकते हैं। एक बेहतरीन और कसी हुयी सार्थक फिल्म है। दिमाग को साथ लेकर देखने जाइए।

निर्देशक: नीरज पांडे 
कलाकारः अक्षय कुमार, तापसी पन्नु, अनुपम खेर, के के मेनन, राणा दग्गूबत्ती, मधुरिमा तुली, सुशांत सिंह
संगीत: मीत ब्रदर्स, अनजान 





Monday, January 19, 2015

अलोन


फिल्म समीक्षा
अजब भूत की भ्रमित दास्तान: अलोन 
धीरेन्द्र अस्थाना
जब हम अपने बचपन के दिनों में रहते थे तब कोहरा, महल, बीस साल बाद, वह कौन थी, गुमनाम जैसी रहस्यमय और रोमांचक फिल्में देखा करते थे। ये फिल्में अपनी रोचकता के कारण हिट भी होती थीं। इन सब फिल्मों का एक कॉमन, प्रगतिशील तथ्य यह होता था कि आत्मा की चहलकदमी मानव निर्मित साजिश सिद्ध हो जाती थी। यह छठे सातवें दशक का सिनेमाई यर्थाथ था। वक्त बदला। हम कंप्यूटर युग में उतरे मगर सिनेमा इस मोर्चे पर पिछड़ गया। उसने डर का कारोबार करते करते आत्मा या भूत को सही साबित कर दिया। डर के इस व्यापार को राम गोपाल वर्मा ने अपनी फिल्म भूत से उंचाई पर पहंुचाया और इसके बाद तो भूतों को लेकर उटपटांग फिल्मों का सिलसिला ही चल निकला। अलोन इसी सिलसिले की नयी कडी है जो दर्शकों को डराने के बजाय बेजार और बोर करती है। एक समय था जब बिपाशा बसु की गिनती बॉलीवुड की टॉप टेन अभिनेत्रियों में होने लगी थी लेकिन उन्होंने जिस तरह की थकी और बेतुकी फिल्मों का चुनाव किया उसके चलते उन्हें अलोन जैसी ढीली ढाली और कमजोर फिल्मों का हिस्सा बनना पड़ रहा है। इस फिल्म में वह डबल रोल में हैं। अंजना और संजना नाम की दो जुडवां बहने अपनी किशोर उम्र में करण सिंह से प्यार करती हैं। करण संजना से प्यार करता है जबकि अंजना करण से। करण दस साल बाद लंदन से लौट रहा है। करण को रिसीव करने के लिए संजना एयरपोर्ट जाना चाहती है जबकि अंजना इसमें बाधक बन रही है। संजना अंजना को मार देती है और सर्जरी के जरिए अपना बदन अंजना से अलग कर लेती है। अंजना की लाश घर के आउट हाउस में गाड़ दी जाती है। संजना का विवाह करण के साथ हो जाता है। दोनों मुंबई में रहते हैं जबकि संजना का मायका केरल में है। मां बीमार पड़ती है और संजना तथा करण को वापस केरल जाना पड़ता है जहां से संजना भाग कर आयी थी क्योंकि वहां अंजना की ढेर सारी यादें है। केरल प्रवास में संजना के पीछे अंजना की आत्मा पड़ जाती है। आवाजों और दृश्यों से निर्देशक ने दर्शकों को डराने की बहुत कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो पाये। दर्शक डर के दृश्यों में हंस रहे थे। फिर अंजना का भूत संजना के जिस्म में प्रवेश कर जाता है और करण के साथ अपनी हवस को शांत करता है। करण समझता है कि यह उसकी बीबी संजना है जबकि होती वह अंजना है। फिर एक तांत्रिक संजना के जिस्म से अंजना का भूत तो उतार देेता है लेकिन उस भूत को नष्ट नहीं कर पाता। फिल्म के अंत में जब इस भूत को नष्ट कर दिया जाता है तब यह रहस्योद्घाटन होता है कि संजना ने अंजना को नहीं बल्कि अंजना ने संजना को मारा था और संजना बन कर करण से विवाह किया था। करण अंजना के साथ रहने से मना कर देता है क्योंकि उसने तो संजना से प्यार किया था। अंजना करण को मारने के लिए चाकू निकाल लेेती है। संजना की आत्मा अंजना को आग में जला देती है और करण को बचा लेती है। यह सवाल अनुत्तरित है कि अगर अंजना जिंदा रह गयी थी तो बुरे काम क्या संजना जैसी अच्छी आत्मा कर रही थी? फिल्म देखनी है या नहीं यह दर्शकों के अपने विवके पर है।

निर्देशक: भूषण पटेल
कलाकारः करण सिंह ग्रोवर, बिपाशा बसु, जाकिर हुसैन
संगीत: अंकित तिवारी, जीत गांगुली




तेवर

फिल्म समीक्षा
मसालों का फ्लेवर: तेवर
धीरेन्द्र अस्थाना
आखिर अर्जुन कपूर जैसा संभावनाशील और प्रतिभाशाली एक्टर भी कमर्शियल सिनेमा के दुश्चक्र में फंस ही गया। बिना मसालों वाली लीक से हट कर बनी बीसियों फिल्में हिट हो चुकी हैं, हिट हो रही हैं तो भी निर्माता निर्देशक बार बार महाशियां दी हट्टी, एमडीएच मसाले में घुस जाते हैं। मसालों के फ्लेवर के बावजूद बहुत चलने वाली फिल्म नहीं है तेवर। इसे सिर्फ कुछ लोगों के उम्दा काम की वजह से देखा जा सकता है या फिर इसके गानों की वजह से जो पहले से ही सुपर हिट की केटेगरी में शामिल हो चुके हैं। सोनाक्षी सिन्हा लगातार सिढ़ियां चढ़ रही हैं और हर तरह के किरदार में अपनी छाप छोड़ रही है। अर्जुुन इस फिल्म से पूरी तरह सलमान खान के नक्शे कदम पर चल पड़े हैं। उन्हें डायलॉग भी उसी तरह के दिये गये हैं जैसे डायलॉग बोल कर सिनेमा हॉल में सलमान खान तालियां बटोरा करते हैं। एक्टिंग और लोकेशन केे मोर्चे पर इस फिल्म की यूएसपी हैं अभिनेता मनोज बाजपेयी और आगरा मथुरा की गलियां। मनोज बाजपेयी के लेफ्ट हेंड बने अभिनेता सुब्रत दत्ता के रूप में बॉलीवुड को एक नये तेवर वाला खलनायक मिला है। उसने किसी स्थापित एक्टर की नकल करने के बजाय अपना खुद का अंदाज विकसित किया है। लेकिन आने वाली फिल्मों में उसे सोनू सूद और प्रकाश राज जैसे स्वतंत्र खलनायकों वाले किरदारों को प्राथमिकता देनी चाहिए ना कि खलनायक के सहायक की भूमिका। मथुरा के वहशी गुंडे के किरदार में मनोेज बाजपेयी ने पूरी फिल्म में समां बांध दिया है। सत्या के बाद उनकी तेवर को दर्ज किया जाएगा। सेंसर बोर्ड आजकल काफी उदार हो गया लगता है। एकदम अश्लील संवादों को धडल्ले से ओके कर रहा है। फिल्म कुल मिला कर गुंडागर्दी और मोहब्बत का कॉकटेल है। अर्जुन कपूर आगरा का बिंदास और तेवर वाला लड़का है जो कहीं भी कुछ गलत होते देख उससे भिड़ जाता है। फिर चाहे उसका नतीजा कुछ भी हो। हालांकि वह आगरा के एसपी राजबब्बर का बेटा है लेकिन उसके अंदाज टपोरियों जैसे ही हैं। सोनाक्षी मथुरा की मिडिल क्लास फैमिली से है। उसे डांस वगैरह बहुत पसंद है। ऐसे ही एक डांस के कार्यक्रम में मथुरा का बाहुबली मनोेेेेेेेेेेेेेेेेज बाजपेयी उस पर फिदा हो जाता है और उससे शादी का निवेदन तक कर आता है। सोनक्षी का भाई टीवी रिपोर्टर इस शादी में बाधा खड़ी करता है तो मनोज उसकी हत्या कर देता है। सोनक्षी मथुरा छोड़ दिल्ली भाग रही होती है और वहां से अमेरिका लेकिन तभी स्टेशन पर मनोज उसे पकड़ लेता है। दूसरों के पंगों में टांग अड़ाने वाला अर्जुन स्टेशन पर मनोज की जम कर धुनायी करता है और सोनाक्षी को भगा ले जाता है। इसके बाद की पूरी फिल्म सोनक्षी और अर्जुन के लगातार भागते रहने, गुंडों से लड़ने और गाने बजाने में बीतती जाती है। पर्दे पर दिखने के लिए राज बब्बर जैसे बड़े एक्टर ने मामूली पुलिस कर्मी का रोल निभा लिया यह देख कर दुख हुआ। सचमुच बहुत क्रूर है हिंदी सिनेमा। कमल हासन जैसे महान एक्टर की बेटी ने फिल्म में आइटम डांस किया है, यह भी एक खबर है। नये साल की पहली साधारण फिल्म।

निर्देशक: अमित रविन्द्रनाथ शर्मा
कलाकारः अर्जुप कपूर, सोनाक्षी सिन्हा, मनोज बाजपेयी, श्रुति हासन, राजेश शर्मा 
संगीत: साजिद वाजिद