Monday, May 26, 2014

हीरोपंती

फिल्म समीक्षा

हीरोपंती : लोगों को आती नहीं 

धीरेन्द्र अस्थाना

रोमांस और एक्शन के जोनर तले बनी, जैकी श्रॉफ के बेटे टाइगर को लांच करने वाली फिल्म है ‘हीरोपंती‘। फिल्म इंडस्ट्री में ऐसे ढेर सारे उदाहरण हैं कि स्टार एक्टर का बेटा एक्टिंग के क्षेत्र में नहीं चल पाया या फिर दोयम दर्जे का एक्टर बना रहा। टाइगर को बड़े पैमाने पर लांच किया गया था। उसकी छवि बतौर एक्शन हीरो प्रोजेक्ट की गयी थी। फिल्म में उसने अपने एक्शन के कमाल भी दिखाए, जिन पर युवा दर्शकों ने सीटियां भी बजाईं। लेकिन सिर्फ इतने भर से कुछ होता जाता नहीं है। एक बड़े घटिया से डायलॉग को पूरी फिल्म की यूएसपी बना कर पेश किया गया है। जब जब कोई टाइगर की हीरोपंती पर कमेंट करता है वह बोलता है - क्या करूं लोगों को आती नहीं, मेरी जाती नहीं। टाइगर के चेहरे पर कोई भाव हरकत ही नहीं करता है। उसका जिस्म बोलता है चेहरा नहीं। इसमें शक नहीं कि उसने अपनी बॉडी पर जम कर मेहनत की है मगर एक्टिंग के खाते में भी तो थोड़ी मेहनत ट्रांस्फर करनी चाहिए थी। उसके अपोजिट जो नयी लड़की कृति सेनन इंट्रोड्यूस की गयी है उसमें भी अनुष्का, कंगना, आलिया, इलियाना, परिणिति जैसी चमक, ऊर्जा और विस्फोट नहीं है। नहीं लगता है कि आगे चल कर दोनों का कुछ खास होने वाला है। हां, यदि दोनों आर्टिस्ट सब कुछ भूल कर कुछ समय खुद को एक्टिंग के विभिन्न आयाम सीखने में बिताएं तो युवा पीढ़ी के दिलों में जगह बना सकते हैं। टाइगर को तो कहीं जाने की भी जरूरत नहीं है। उनके पिता जैकी कमाल के एक्टर हैं। टाइगर को जैकी से सीखना चाहिए। फिल्म की सबसे बड़ी उपलब्धि है इसमें प्रकाश राज का नये अवतार में मौजूद होना। उन्हें हम अभी तक एक क्रूर खलनायक के रूप में देखते आये थे। यहां तो उन्होंने एक विलेन के भीतर रहने वाले संवेदनशील बाप के भी दर्शन करा दिए। कमाल की एक्टिंग की है प्रकाश राज ने। पहली बार किसी विलेन के किरदार ने रुलाने का काम किया है। फिल्म की बुनियाद खाप पंचायतों के नियमों से प्रेरित बताई गयी है। एक जाट लैंड है जहां प्यार के लिए कोई जगह नहीं। दो बच्चे पैदा होने के बाद तो लड़की से उसका नाम पूछा जाता है। ऐसा फिल्म में कहा गया है। तो ऐसे जाट लैंड से प्रकाश राज की बड़ी बेटी को उसका प्रेमी भगा ले जाता है। भगाने में सहायक हैं टाइगर और उसके दोस्त। प्रकाश के लोग इन सबको उठा लेते हैं और जम कर ठुकाई करते हैं। टाइगर का दिल प्रकाश राज की छोटी बेटी पर आ जाता है। यहीं से शुरू होता है रोमांस और एक्शन का तड़का। छोटी बेटी यानी कृति सेनन को टाइगर विद्रोह का पाठ पढ़ाता है और उसे उसकी शादी के मंडप से भगा ले जाने के लिए पहुंचता है। लेकिन प्रकाश राज के भीतर के टूटे बाप को देख वह अपना इरादा बदल देता है। प्रकाश राज के भीतर का बाप भी जाट लैंड के नियमों को बाय बाय बोल टाइगर को अपनी बेटी ले जाने की इजाजत दे देता है। इतनी जरा सी बात पर इतनी खर्चीली फिल्म बना डाली। जबकि बेहतरीन फिल्मों को थियेटर तक नसीब नहीं होते। कमाल है अपना बॉलीवुड और उसका मायावी संसार।
निर्देशक : सब्बीर खान
कलाकार : टाइगर श्राफ, कृति सेनन, प्रकाश राज
संगीत : साजिद-वाजिद

Monday, May 19, 2014

द एक्सपोज

फिल्म समीक्षा

छठे दशक का लव, सेक्स और धोखा: द एक्सपोज 

धीरेन्द्र अस्थाना

गायक और संगीतकार तो हिमेश रेशमिया शुरू से बेहतर रहे हैं लेकिन बतौर एक्टर दर्शकों और फिल्म समीक्षकों ने उन्हें अब तक स्वीकार नहीं किया था। मगर एक्टर बनने की उनकी जिद ने अंततः कामयाबी का दामन थाम ही लिया। फिल्म भले ही सौ करोड़ क्लब में शामिल न हो मगर हिमेश ने इस फिल्म के जरिए यह साबित कर दिया कि वह एक्टिंग कर सकते हैं। इस फिल्म में वह अपने जमाने के मशहूर एक्टर राजकुमार से प्रेरित हैं। वैसा ही अंदाज, वही एरोगेंस और वैसा ही आत्मविश्वास। फिल्म साठ के दशक के फिल्मी माहौल में घटती है। हिमेश साउथ के सुपर स्टार हैं जिन्हें लेकर हिंदी का सुपरहिट निर्देशक फिल्म बनाता है। मुख्य धारा सिनेमा के उसके प्रतिद्वंद्वी निर्देशक की उसी दिन रिलीज फिल्म सुपरहिट हो जाती है जबकि हिमेश और जारा (सोनाली राउत) की फिल्म अनेक षड्यंत्रों के चलते फ्लॉप हो जाती है। इरफान खान फिल्म के सूत्रधार हैं और फिल्म में उन्होंने टिकटों को ब्लैक में बेचने वाले व्यक्ति का किरदार भी निभाया है। इस फिल्म से पता चलता है कि कैसे साठ के दशक में ब्लैकियों को खरीद लिया जाता था और वे पांच का टिकट तीन में बेचने का नाटक कर फिल्म को फ्लॉप करवा देते थे। फिल्म की दो हीरोइनें जोया अफरोज (चांदनी) और सोनाली राउत (जारा) एक दूसरे के साथ प्रोफेशनल जेलेसी का शिकार हैं। हिमेश मन ही मन चांदनी से प्यार करता है जबकि चांदनी एक अन्य एक्टर की गर्लफ्रेंड है। फिल्म के सेट पर आग लग जाती है तो हिमेश चांदनी को बचा लाता है। हिमेश का सौतेला भाई डॉन है। संगीतकार यो यो हनी सिंह ने भ्रष्ट संगीतकार के डी का किरदार निभाया है। फिल्म के निर्देशक अनंत महादेवन निर्देशक के ही किरदार में हैं। हिमेश एक्टर बनने से पहले पुलिस इंस्पेक्टर थे। उनसे एक मंत्री का मर्डर हो जाता है तो उन्हें सजा हो जाती है। सजा काटने के बाद वह एक्टर बनते हैं। चांदनी पर बनी फिल्म की सक्सेस पार्टी में सब लोग एक साथ हैं। यहां चांदनी और जारा में झगड़ा होता है। मार पीट भी। इसके बाद जारा टैरेस पर जाती है जहां से गिर कर उसकी मौत हो जाती है। यहां से फिल्म मर्डर मिस्ट्री में बदल जाती है। कम से कम छह किरदारों से इस रात जारा के पंगे हुए थे इसलिए मर्डर का शक छहों पर है। लेकिन असली हत्यारा कौन है, यही इस फिल्म का रहस्य और रोमांच है। फिल्म के सारे गाने पहले ही हिट हो चुके हैं। बहुत दिनों बाद ऐसे संवाद सुनने को मिले जिस पर थिएटर के भीतर बैठे दर्शक तालियां बजा रहे थे। फिल्म साधारण है लेकिन भरपूर मनोरंजन करती है और दर्शकों को एक पल के लिए भी बोर नहीं होने देती। देख सकते हैं। निराश नहीं होंगे।
निर्देशक: अनंत महादेवन
कलाकार: हिमेश रेशमिया, जोया अफरोज, सोनाली राउत, इरफान खान, यो यो हनी सिंह, आदिल हुसैन
संगीत: हिमेश रेशमिया



हवा हवाई

फिल्म समीक्षा

खुली आंखों का सपना: हवा हवाई

धीरेन्द्र अस्थाना

दूसरों का मालूम नहीं मैंने मकरंद देशपांडे को जीवन में पहली बार बिना दाढ़ी और बिना लंबे बालों के देखा। मुश्किल से कुल मिला कर दो मिनट का रोल और दिल जीत लिया दर्शकों का। फिल्म के मेन हीरो चाइल्ड आर्टिस्ट पार्थो गुप्ते के पिता के रोल में हैं मकरंद और एक गाने के जरिए संदेश देते हैं कि अंगारों पर चलना ही है जीवन का मंत्र। वह एक कपास उगाने वाले किसान हैं जिनकी फसल को पाला मार जाता है। वह हार्ट अटैक से मर जाते हैं। लेकिन यह घटना फ्लैश बैक में खुलती है। चाइल्ड हीरो पार्थो गुप्ते निर्देशक अमोल गुप्ते का बेटा है और उसने साबित कर दिया है कि साधारण शक्ल सूरत के बावजूद वह बहुत दूर जाने वाला है। ये बॉलीवुड में कैसे कैसे कमाल के लोग बसे हुए हैं तो फिर घटिया लोगों की लॉटरी क्यों निकल आती है? फिल्म के पांच चाइल्ड आर्टिस्ट ने जो काम किया है उसकी सीडी बना कर कई स्टार पुत्रों को दिन में पांच बार देखनी चाहिए। इस बार अमोल गुप्ते ने कोई रिस्क नहीं लिया। कहानी भी खुद लिखी, निर्देशन भी खुद किया और प्रोड्यूस भी खुद ही कर दी। और उनका यह निर्णय अच्छा ही हुआ। उनके काम का क्रेडिट कोई और तो नहीं ले गया। बहुत गजब फिल्म है ‘हवा हवाई‘। खुली आंखों से देखे हुए सपने का नतीजा है यह कृति जिसे किसी स्टार की दरकार नहीं थी। फिल्म के मूल किरदार पांच बच्चे तलछट से उठते हुए नायक हैं। पिता के मरने के बाद पार्थो को एक चाय की दुकान पर नौकरी करनी पड़ती है। इस दुकान के बाहर शाम 7 बजे के बाद अमीर घरों के बच्चे स्केटिंग सीखने आते हैं। नौकरी के पहले दिन पार्थो इस ट्रेनिंग को कौतुहल से देखता है। वह एक सपने को अपने भीतर जगह देता है कि वह भी स्केटिंग का चैंपियन बने। उसके चार दोस्त भंगार से सामान बटोर कर उसे स्केट बना कर देते हैं। इन दोस्तों में एक कचरा बीनता है, एक जरदोरी का काम करता है, एक कार गैराज में है और एक फूल बेचता है। तलछट का जीवन। वहां से चैंपियन बनने की छलांग। इस सपने को पालता पोसता है कोच साकिब सलीम। इसके बाद तमाम बाधाएं हैं जिन्हें पार करते हुए साकिब सलीम और पार्थो गुप्ते का सपना पूरा होता है और महाराष्ट्र स्टेट स्केट चैंपियनशिप प्रतियोगिता में पार्थो विजेता घोषित होता है। ‘चक दे इंडिया‘ और ‘भाग मिल्खा भाग‘ के बाद खेल और उसके संघर्ष पर बनी एक और अनूठी फिल्म। लेकिन यह इस मायने में अलग कि इसका कैनवास उन दो फिल्मों से छोटा जरूर है मगर जज्बा और जुनून लगभग वही है। यह तलछट से छलांग लगाने की फिल्म है। एक अनिवार्य रूप से देखी जाने वाली फिल्म।
निर्देशक: अमोल गुप्ते
कलाकार: पार्थो गुप्ते, साकिब सलीम, प्रज्ञा यादव, मकरंद देशपांडे, नेहा जोशी, दिव्या जगदाले
संगीत: हितेश सोनिक

पुरानी जीन्स

फिल्म समीक्षा

दोस्ती और प्यार की थकी कहानी: पुरानी जीन्स 

धीरेन्द्र अस्थाना


तीन, चार या पांच दोस्त। उनका एक दूसरे पर जान छिड़कना। उनके बीच तनाव का पसरना। उनका बिछड़ना। फिर मिलना। गलतफहमियों का दूर होना। दोस्ती का फिर लौट आना। एक लड़की। उस पर दो दोस्तों का एक साथ फिदा हो जाना। रिश्ते का उजागर होना। दोस्ती की खातिर किसी एक दोस्त का पांव पीछे खींच लेना। प्रेमी-प्रेमिका का मिल जाना। हिंदी सिनेमा में यह कहानी इतनी बार फिल्मायी गयी है कि अगर कोई नया कोण या विशेष अंदाज न हो तो फिल्म कोई थ्रिल नहीं जगा पाती। उस पर तुर्रा यह कि कलाकारों की एक्टिंग में भी कोई दम नहीं। ऐसा लगता है कि किसी छोटे शहर के अनुभवहीन नाट्यकर्मियों द्वारा कोई नाटक पेश किया जा रहा हो। सारिका जैसी प्रतिभाशाली और मंजी हुई अभिनेत्री को भी पूरी तरह बर्बाद कर दिया गया है। रति अग्निहोत्री के काम में जरूर कुछ चमक और ऊर्जा दिखाई देती है वरना तो पूरी फिल्म स्लोमोशन वाली बुझी बुझी यात्रा जैसी हो गयी है। रति अग्निहोत्री फिल्म के हीरो तनुज वीरवानी की मां के किरदार में हैं। हीरो समेत फिल्म में पांच दोस्तों की कहानी है। ये पांचों हिमाचल प्रदेश के एक छोटे से पहाड़ी शहर कसौली में रहते हैं। इन पांचों को लीड करता है नया एक्टर आदित्य सील। इसके चेहरे से जॉन अब्राहम के शेड्स कौंधते रहते हैं इसलिए यह एक्टिंग के स्तर पर भी जॉन की छाया के नीचे चलता नजर आता है। हालांकि यही एक्टर पूरी फिल्म में सबसे ज्यादा जीवंत और सक्रिय भी दिखाई देता है। मूल कहानी भी इसी के इर्द-गिर्द बुनी गयी है। यह पैसे वाली रानी सारिका का बेटा है जो हर समय शराब के नशे में धुत्त रहती है। आदित्य का पिता एक विदेशी लड़की के साथ तब भाग गया था जब आदित्य छह सात साल का था। उसे बाप का प्यार मिला ही नहीं। मां ने भी उसे हॉस्टल आदि में भेज अपने से दूर ही रखा। उसने दोस्तों के ग्रुप में अपने इमोशंस अर्जित किए। फिर उसने जिस लड़की इजाबेल को चाहा वह उसके बेस्ट फ्रेंड तनुज वीरवानी की चाहत में गिरफ्तार दिखी। आदित्य सील आत्महत्या कर लेता है। मन में अपराध बोध लिए तनुज विदेश में जाकर बस जाता है - पीछे सबको छोड़। फिर मां के मरने के बाद वह प्रॉपर्टी बेचने कसौली लौटता है। वहां पुराने दोस्त एक एक कर मिलते हैं, प्रेमिका भी। फिर वह आदित्य की मां सारिका से मिलता है उसे सॉरी बोलने के लिए कि आदित्य उसके कारण मरा। सारिका उस रात की असली कहानी बताता है कि आदित्य  सारिका की वजह से मरा क्योंकि जब जब आदित्य को मां की जरूरत थी सारिका तब तब वहां नहीं थी। तनुज का अपराध बोध जाता रहता है। वह और इजाबेल शादी कर लेते हैं। तनुज विदेश नहीं जाता। फिर से कसौली में बस जाता है। फिल्म के दो-तीन गाने अच्छे हैं। कसौली की फोटोग्राफी भी ध्यान खींचती है। क्या करना है खुद निर्णय लें। 
निर्देशक: तनुश्री चटर्जी बासु
कलाकार: तनुज वीरवानी, आदित्य सील, इजाबेल, सारिका, रति अग्निहोत्री
संगीत: राम संपत