Saturday, April 12, 2014

शादी के साइड इफेक्ट्स

फिल्म समीक्षा

शादी के साइड इफेक्ट्सः कुछ खट्टे कुछ मीठे ’’’

धीरेन्द्र अस्थाना

फरहान अख्तर अब अपने अकेले के कंधे पर पूरी फिल्म निभा ले जाने में माहिर हो गये हैं। भाग मिल्खा भाग के बाद यह उनकी दूसरी सोलो फिल्म है जो हिट है। अब उनके अपने दर्शक बन रहे हैं। उनके अपोजिट विद्या बालन जैसी बड़ी स्टार है लेकिन पूरी फिल्म में अपने हाव भाव, अपने आचरण, अपने सुख दुख और अपने फ्रस्टेªशन के साथ केवल फरहान अख्तर छाये हुए हैं। विद्या बालन ठीक ठाक ढंग से मोटी हो गयी हैं। हालांकि फिल्म में इस मोटे पन की तार्किक परिस्थिति दर्शायी गयी है मगर लंबे समय तक विद्या बालन जैसी प्रतिभाशाली अभिनेत्री को पर्दे पर केंद्रीय भूमिका में बने रहना है तो अपने बढते वजन पर ध्यान देना ही होगा। फरहान के रुम पार्टनर बने वीर दास कमाल के अभिनेता हैं। उन्होंने आज की पीढ़ी के बेफिक्र और आत्मकेंद्रित युवा के किरदार को प्रातिनिधिक मिसाल बना दिया है। रुमपार्टनर इसलिए क्यों कि रिश्तेदार राम कपूर की सलाह पर फरहान अपना खुद का घर परिवार होने के बावजूद वीरदास के साथ बतौर पेईंग गेस्ट भी रहते हैं। राम कपूर चूंकि पैसे वाले हैं इसलिए वह इस प्रयोग को लग्जरी होटल में रह कर करते हैं। प्रयोग यह कि काम का बहाना बना कर पंद्रह दिन में एक बार तीन दिन के लिए घर से बाहर रहो ताकि पत्नी आपको मिस करे। इस प्रयोग से वैवाहिक जीवन में खटास नहीं आने पाती। लेकिन फरहान अख्तर जब यह प्रयोग करता है तो खाली और एकाकी विद्या बालन किसी शेखर नाम के पड़ोसी की दोस्ती में उलझ जाती है। इससे फरहान की दुश्वारियां और ज्यादा बढ़ जाती हैं। फिल्म इंटरवल तक अत्यंत दिलचस्प, हास्यप्रद और संवेदनशील है। सुगठित भी। लेकिन इंटरवल के बाद एकाएक निर्देशक की पकड़ फिल्म पर से छूट जाती है और फिल्म लड़खड़ाने लगती है। शादी की खटपट के बीच जो संवाद मौजूद हैं उनमें से कुछ तो अत्यंत ही मौलिक हैं। ऐसे संवादों को आज तक किसी हिंदी फिल्म में नहीं सुना गया। मसलन ́मिली (बेटी) को तौलिये की गलत साइड से मत पोछो। तुम बिस्तर से जमीन पर थोड़ा धीरे से नहीं गिर सकते थे। मिली जाग जाती तो।́ वगैरह वगैरह। पूरी फिल्म में दर्शक बार बार हंसते रहते हैं। खास कर वे दर्शक जो भविष्य के पति पत्नी हैं। शादी शुदा जिंदगी को सुखमय बनाने के लिए फरहान तमाम तरह की तरकीबें आजमाता है लेकिन एक भी तरकीब कामयाब नहीं होती। दरअसल सुखी दांपत्य कोई तरकीब या रणनीति नहीं है। सुखी वैवाहिक जीवन के सूत्र आपसी समझदारी, आपसी विश्वास और एक दूसरे की देखभाल से जुड़े हैं। इसे ही फिल्म का संदेश समझा जा सकता है और सार्थकता भी। ठीकठाक, मनोरंजक और पैसा वसूल फिल्म है जिसे एक बार देख लेना चाहिए। फिल्म के गानों का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। वह केवल फिल्म की परिस्थितियों को परिभाषित करने का काम करते हैं। संवाद फिल्म की यूएसपी हैं। 


निर्देशकः साकेेेत चौधरी
कलाकारः फरहान अख्तर ् विद्या बालन, राम कपूर, वीर दास
संगीतः प्रीतम चक्रवर्ती

’बेकार ’’ साधारण ’’’ अच्छी ’’’’ बहुत अच्छी ’’’’’ अद्वितीय

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