Wednesday, November 21, 2012

लव शव ते चिकन खुराना


फिल्म समीक्षा

तड़केदार लव शव ते चिकन खुराना

धीरेन्द्र अस्थाना

जिस फिल्म में बतौर प्रोडय़ूसर या डायरेक्टर अनुराग कश्यप का नाम जुड़ा हो इसका अच्छा होना लाजिमी है। इसलिये बहुत उम्मीद के साथ यह फिल्म देखनी शुरू की थी। उम्मीद टूटी भी नहीं। कथा पटकथा, संवाद संपादन-संगीत- अभिनय-बैक ड्राप हर मोर्चे पर ‘लव शव ते चिकन खुराना‘ एक बेहतरीन अनुभव से गुजरती है। एक ताजा अनुभव दिलचस्प भी अर्थपूर्ण भी है। बिना स्टाकर कास्ट और बड़े वजट की हुए बिना एक मनोरंजक फिल्म जो अपने पंजाबी तड़के की वजह से चटपटी भी लगती है। कहानी बहुत साधारण सी लेकिन उत्सुकता से भरी हुई है। और माहौल एकदम घरेलू। पंजाब के किसी गली मोहल्ले में घटती कोई साझा परिवार की उथल पुथल भरी वास्तविकता जिंदगी जैसी। यहां सिनेमा का जादुई यथार्थवाद नहीं यथार्थवाद पर खड़ा जादुई सिनेमा है। जो सिर चढ़कर बोलता है। इस पर कुणाल कपूर और हुमा कुरैशी का महज और जीवंत अभिनय। कहानी अनुराग कश्यप वाले अंदाज में घटती हुई- फ्लैशबैक में आवाजाही। निदेॅशक भले ही समीर शर्मा हैं लेकिन कहानी कहने का अंदाज अनुराग वाला ही है। कुछ बनने का सपना लेकर कुणाल घर से पैसे चुराकर लंदन भाग जाता है। लंदन में असफल हो कर पूरे दस साल बाद पंजाब के अपने गांव आता है। लंदन के एक गैंगस्टर का चालीस हजार पाउंड का कर्जदार होकर। गांव आकर यह पता चलता है किदादा जी की याददाश्त जा चुकी है। और उनका खाने का ढाबा बंद पड़ गया है। दादा जी जो मशहूर चिकन खुराना बनाते थे और जिसके दम पर ढाबा सोना उगलता था इस चिकन खुराना का नुस्खा किसी को पता ही नहीं था। फिर दादा जी मर जाते हैं और विरासत में बंद ढाबा कुणाल के नाम कर गये हैं। कुणाल अपनी बचपन की दोस्त हुमा कीमदद से चिकन बनाने की कोशिश करता है लेकिन सफल नहीं हो पाता। एक दिन उसे दादा जी के दवाई के डिब्बे में से वह मसाला मिल जाता है जिससे चिकन खुराना बनता था। क्या था वह मसाला और कैसे पूरी फिल्म एकखुशनुमा मोड़ पर आकर विराम लेती है, यह जानने के लिये फिल्म देख आइये, मजा आयेगा। किरदारों से भरी हुई है फिल्म लेकिन हर चरित्र अपनी छाप छोड़ता है। अमित त्रिवेदी का संगीत सुंदर है। 

निर्देशक: समीर शर्मा
कलाकार: कुणाल कपूर, हुमा कुरेशी, राजेश शर्मा, विनोद नागपाल, डॉली अहलूवालिया, राहुल बग्गा, अनंगशा विस्वास।
संगीत: अमित त्रिवेदी।

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