क्या सुपर कूल हैं हम
जानदार दुकान का बेजान पकवान
धीरेन्द अस्थाना
सोचा था कि एकता कपूर की कंपनी से निकली है तो यकीनन
फिल्म एकदम अनूठी और नायाब होगी। इस विश्वास का कारण था एकता की कंपनी से निकली पिछली
तमाम सफल और शानदार फिल्में। लेकिन श्क्या सुपर कूल हैं हमश् ने यह भरोसा तोड़ दिया।
इस फिल्म का नाम हो सकता था- श्कितने अश्लील हैं हम।श् कॉमेडी के नाम पर फूहड़ और अश्लील
फिकरे, गंदी और नंगी गालियां, शर्मनाक हरकतें और बोर कर
देने वाली एक्टिंग। एक जानदार दुकान से यह कैसा बेजान पकवान निकल कर आ गया। फिल्म की
क्वालिटी से कोई समझौता न कर पाने का एकता का अपना मौलिक अंदाज कहां चला गया? लेखक निर्देशक सचिन याडरे
ने कुछ ऊटपटांग स्थितियों को जोड़-जाड़कर एक ऐसी कमजोर फिल्म खड़ी की है, जिसमें न कोई कहानी है और
न ही कोई ड्रामा। रितेश देशमुख और तुषार कपूर अच्छे एक्टर हैं, लेकिन एक बेजान पटकथा के
भीतर रह कर वे भी कितना संभाल सकते थे। अश्लील संवादों के दोहरान से थोड़े ही फिल्म
चला करती है। सेंसर के लोग सो रहे थे क्या? ऐसे संवाद और ऐसी हरकतें जिनके बारे में लिखा भी नहीं जा सकता।
इंजीनियरिंग, एमबीए, एमबीबीएस या बीएमएम करने
वाले आज के युवा क्या इसी तरह की सेक्स कॉमेडी देखना पसंद करते सो हैं? लगता तो नहीं है। तुषार और
रितेश दो बेकार युवक हैं। दोनों बिना किसी कारण के दोस्त हैं। एक को एक्टर बनना है, दूसरे को डीजे। दोनों की
जिंदगी में एक-एक लड़की है। ये दोनों लड़कियां बिना किसी कारण के दोनों लड़कों से दूर
भागती हैं। अनुपम खेर एक अमीरजादे हैं जो थोड़े बहुत पागल जैसे हैं। वह एक कुतिया को
अपनी मां समझते हैं और रितेश के कुत्ते को अपना बाप। फिल्म का असली हीरो तो रितेश का
कुत्ता ही है। ज्यादा हंसाने का काम तो उसी ने किया है। उस कुत्ते में सेक्स की सुपर
पावर है। उसी सुपर पावर के जरिये फिल्म को खींचने की कोशिश की गयी है। फिल्म के अंत
में जैसा कि होता है, तुषार
को अपनी और रितेश को अपनी प्रेमिका मिल जाती है।
प्रोड्यूसर:
एकता कपूर
डायरेक्टर: सचिन यार्डी
कलाकार: तुषार कपूर, रितेश देशमुख, अनुपम खेर, सारा जेन डायस, नेहा शर्मा
संगीत: अंजान मीत ब्रदर्स एवं अन्य
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