Monday, April 16, 2012

बिट्टू बॉस

फिल्म समीक्षा

कहानी बिखर गयी ‘बिट्टू बॉस’

धीरेन्द्र अस्थाना

पंजाबी तड़का मार के, एक साधारण से शहर के, साधारण से युवक की मजेदार सी लव स्टोरी बनाने की कोशिश की थी निर्देशक सुपवित्र बाबुल ने। लेकिन इंटरवल के बाद फिल्म को अंजाम तक पहुंचाने में कन्फ्यूजन इस कदर बढ़ा कि कहानी बिखर ही तो गयी ‘बिट्टू बॉस’ की। अनुष्का शर्मा और रणवीर सिंह की हिट फिल्म ‘बैंड बाजा बारात’ की तर्ज पर बनायी गयी ‘बिट्टू बॉस’ भी सफल हो सकती थी अगर कहानी को कायदे से साध लिया जाता। बॉलीवुड के बहुत बड़े प्रोड्यूसर कुमार मंगत पाठक की फिल्म थी इसलिए नयी कास्ट होने के बावजूद इतने सारे थियेटर भी मिल गये वरना फिल्म को थियेटरों के लाले पड़ जाते। इसे कहते हैं एक बड़ा और सुनहरा मौका चूक जाना। पुलकित सम्राट और अमिता पाठक (प्रोड्यूसर की बेटी) ने भी अगर अनुष्का-रणवीर जैसा जानदार शानदार अभिनय कर दिखाया होता तो इन दोनों का भविष्य इनके लिए कोई दूसरी स्वर्णिम इबारत लिख रहा होता। फिलहाल तो यही लगता है कि रील लाइफ का स्ट्रगलर वीडियो शूटर बिट्टू (पुलकित सम्राट) रीयल लाइफ में स्ट्रगल से जल्दी पीछा नहीं छुड़ा सकेगा। अमिता पाठक को नयी फिल्म पकड़ने से पहले अभिनय के कई पाठ संजीदगी से पढ़ने होंगे। दोनों ही युवाओं को अपनी बॉडी लैंग्वेज पर मेहनत करनी होगी। असल में अभिनय से भी ज्यादा दोष कहानी का है। शादी ब्याह का स्टार फोटोग्राफर प्रेमिका की नजरों में बड़ा और सफल आदमी बनने के लिए जिस गंदी यात्रा पर निकलता है वह तार्किक नहीं है। ब्लू फिल्म बनाने के धंधे में उतरना उसके जमीर को रास नहीं आता, यह तार्किक था। पर अचानक जिस तरह वह एक ब्लू फिल्म रैकेट का पर्दाफाश कर ऊंचाई के रास्ते पर एक आदर्श छलांग लगाता है वह पूरी तरह अवास्तविक लगता है। इस मोड़ पर पहुंच कर एक सीधी सादी सी मध्यमवर्गीय प्रेम कहानी मामूली सी कॉमेडी में बदल जाती है। पुलकित और अमिता के बीच न तो प्रेम की गहराई ही स्थापित हो पाती है और न ही दोनों के बीच के तनाव की ही व्याख्या हो पाती है। पुलकित के सहयोगी के रूप में जिस नामालूम से टैक्सी ड्राइवर को फिल्म में जगह दी गयी है उसने अपने लाजवाब अभिनय से कमाल रच दिया है - शक्ल से ऐसा नहीं लगता न (यह उस मामूली से लड़के का तकिया कलाम है)। फिल्म की उपलब्धि यही लड़का है। फिल्म के आरंभ में कुछ अभद्र और अश्लील संवाद हैं जिनकी बिल्कुल भी जरूरत नहीं थी। सेंसर को क्या होता जा रहा है?

निर्देशक: सुपवित्र बाबुल
कलाकार: पुलकित सम्राट, अमिता पाठक
संगीत: राघव सच्चर

1 comment:

  1. अस्‍थाना जी नमस्‍कार. आपने अच्‍छी समीक्षा की है.बस दुख इस बात का है कि जिस नामालूम एक्‍टर ने अच्‍छा अभिनय कर पिफल्‍म को साध दिया उसके बारे में आपने अपने पाठकों को ज्‍यादा नहीं बताया. नए और उभरते हुए कलाकारों के बारे में जरूर पाठकों को जानकारी मिलनी चाहिए.मैने उस कलाकार के बारे में कुछ जानकारी जुटाई है. उसका नाम अशोक पाठक है. यह उसकी पहली पिफल्‍म थी.शंघाई नामकी एक अन्‍य पिफल्‍म में भी उसे काम मिला है.

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