Monday, April 9, 2012

हाउसफुल-टू

फिल्म समीक्षा

हाउसफुल-टू भी मस्ती से फुल

धीरेंद्र अस्थाना

जो लोग सिनेमा के जरिये सामाजिक बदलाव लाने में यकीन रखते हैं और इस यकीन को मजबूत करने के लिए सिनेमा बनाते रहते हैं, निर्देशक साजिद खान उनमें से नहीं हैं। वह लोगों को खुश रखने के लिए, उन्हें हंसाने के लिए, उन्हें दो तीन घंटे शुद्ध मनोरंजन के साये में बिठाए रखने के लिए फिल्में बनाते हैं। अपने इस मकसद में वह कामयाब भी होते हैं। आम जनता खुश होकर उनकी फिल्में देखने जाती है और हंसते मुस्कराते बाहर निकलती है। आलोचक भले ही उनके सिनेमा को यथार्थ से पलायन कहें पर उनका सिनेमा कामयाब सिनेमा है। ‘हाउसफुल’ की तरह साजिद खान की ‘हाउसफुल-टू’ भी सौ प्रतिशत मनोरंजन का खजाना है, जिसमें नाच-गाना, हंसना-हंसाना, मार-धाड़, कॉमेडी-एक्शन-इमोशन सब कुछ भरपूर मात्रा में है। सिचुएशन से लेकर संवादों तक में इतना हास्य है कि सिनेमा हॉल के भीतर चारों तरफ से हंसी के फव्वारे छूटते रहते हैं। जब बाहर की दुनिया दुर्घटनाओं, दुखों और त्रास से भरी हुई हो तब हॉल के भीतर की खुशनुमा और मौज-मस्ती की दुनिया भला किसे सुकून नहीं देगी। यही वजह है कि पहले ही दिन ‘हाउसफुल-टू’ दिखा रहे थियेटर सचमुच हाउसफुल थे। पहली फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार के आसपास घूमती थी लेकिन यह वाली फिल्म कुल मिलाकर दस चरित्रों के जरिए साकार होती है। चार हीरो की चार हीरोइनें और उनके मां-बाप यानी कलाकारों का एक बड़ा संसार दर्शकों का दिल जीतने में कामयाब हुआ है। ऊपर से पहले ही हिट हो चुका ‘अनारकली डिस्को चली’ वाला आइटम नंबर, दर्शक झूम ही तो उठे। शुद्ध रूप से ‘माइंडलेस कॉमेडी’ का उम्दा उदाहरण है यह फिल्म। मिथुन चक्रवर्ती और बोमन ईरानी के थोड़ा अलग ढंग के किरदार प्रभावित करते हैं। फिल्म को हिट कराने में जॉनी लीवर का योगदान भी माना जाएगा। ऋषी और रणधीर कपूर की कॉमेडी भी उल्लेखनीय है।

निर्देशक: साजिद खान
कलाकार: अक्षय कुमार, जॉन अब्राहम, रितेश देशमुख, श्रेयस तलपदे, असिन, जैकलीन फर्नाडिस, जरीन खान, शहजहान पद्मसी, बोमन ईरानी, ऋषी कपूर, रणधीर कपूर, मिथुन चक्रवर्ती
संगीत: साजिद-वाजिद

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