फिल्म समीक्षा
अद्भुत और यादगार ‘कहानी‘
धीरेन्द्र अस्थाना
लगातार नयी उंचाइयों को नाप रहे हैं विद्या बालन के कदम। ‘डर्टी पिक्चर‘ के बाद एक और यादगार फिल्म जो विद्या बालन के विलक्षण अभिनय के कारण हिंदी सिनेमा के इतिहास में दर्ज की जाएगी। निर्देशक सुजोय घोष की ‘कहानी‘ एक सस्पेंस थ्रिलर होने के बावजूद थोड़ी बौद्धिक जरुर हो गयी है लेकिन कसी हुई पटकथा और रोचक घटना क्रम के कारण बांध कर रखने में सफल है। फिल्म का अंत थोड़ा जटिल और सांकेतिक है जो दर्शकों को उलझा देता है। अगर अंत को थोड़ा स्पष्ट और सरल कर दिया जाता तो आम दर्शक फिल्म का मजा खुलकर ले सकते थे। यह बात आम दर्शक को जल्दी समझ में नहीं आएगी कि फिल्म की प्रमुख पात्र विद्या बागची (विद्या बालन) और उसका पति अरनब दोनों ही खुफिया ऑफिसर थे, कि मेट्रो ट्रेन के गैस हादसे में आम लोगों के साथ अरनब भी मारा गया था, कि इस हादसे को अंजाम देने वाले आतंकवादी को खोजने और उससे बदला लेने के लिए ही विद्या कोलकाता आयी थी, कि आतंकवादी मिलन दामजी का सफाया करने के लिए ही विद्या ने गर्भवती औरत का भेष धरा था कि मिलन दामजी तक पहुंचने के लिए खुफिया तंत्र विद्या का नहीं बल्कि विद्या ही खुफिया तंत्र का इस्तेमाल कर रही थी। इतने सारे पंेच समझने के लिए अगर दर्शकों को माथापच्ची न करनी पड़ती तो ‘कहानी‘ भी ‘डर्टी पिक्चर‘ की तरह हिट हो जाती। जो भी हो इस फिल्म में भी विद्या बालन ने साबित कर दिया है कि वह अपने अकेले के दम पर भी पूरी फिल्म चला सकती है। उसे किसी बड़े स्टार की बैसाखी नहीं चाहिए। हाव भाव, चाल-ढाल और मेकअप (साधारण स्त्री का रुप) से विद्या बालन ने एक गर्भवती स्त्री के किरदार को जितने सहज और प्रभावशाली ढंग से व्यक्त किया है, वह सचमुच अजब-गजब लगता है। फिल्म में विद्या का किरदार इतना विराट हो गया है कि बाकी के चरित्र ‘सपोर्टिंग एक्टर‘ जैसे हो गये हैं। ‘कहानी‘ की सबसे जबर्दस्त खूबी यह है कि फिल्म की असली कहानी अंत तक ‘लीक‘ नहीं होती इसीलिए अंत में जब विद्या बालन अपना भेष उतार कर मिलन दामजी की हत्या करती है तो दर्शक अवाक रह जाते हैं। तेज तर्रार ,बद्दिमाग और खतरनाक खुफिया ऑफिसर के रुप में नवाजुद्दीन सिद्दीकि ने विद्या की ताली से अपनी ताली मिलायी है। अवश्य ही देखने वाली अवार्ड बटोरु फिल्म है।
निर्देशकः सुजोय घोष
कलाकारः विद्या बालन, परमव्रत चट्टोपाध्याय, नवाजुद्दीन सिद्दीकि,दर्शन जरीवाला
संगीतः विशाल-शेखर
Thursday, March 22, 2012
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aapka najariya santulit hua karta hai . to kah sakta hoon ki film dekhne ke liye cinema haal tak jaroor jaunga...
ReplyDeleteधन्यवाद मेरे भाई
Deleteसर, कहानी, इस फिल्म ने मुझे उतना ही प्रभावित किया जितना रंग दे बसंती ने किया..इस फिल्म को मैं अपने जीवन में देखि गई टॉप पच्चीस फिल्मो में अवश्य ही रखना पसंद करुँगी...अंत काफी जटिल हैं और आसानी से आम लोगो की समझ नहीं आएगा यह बहुत सही मुद्दा हैं...
ReplyDeleteचूँकि इस फिल्म से मैं बहुत प्रभावित हुई इसलिए इसके बारे में कुछ लिखने की नाकाम सी कोशिश की हैं...कृपया देखे और अपना अमूल्य मार्गदर्शन देकर अनुग्रहित करे !!! http://ashitad.blogspot.in/2012/03/blog-post.html