फिल्म समीक्षा
स्पीडी और स्टाइलिश एजेंट विनोद
धीरेन्द्र अस्थाना
कई बार रुक-रुककर बनी सैफ अली खान की महत्वपूर्ण और महत्वाकांक्षी फिल्म ‘एजेंट विनोद’ सिर्फ स्टाइलिश और स्पीडी है। जासूसी और आतंकवादी विरोधी विषय पर पहले भी बहुत सारी फिल्में बनी हैं। यह एक और ऐसी ही फिल्म है। लगभग तीन घंटे लंबी यह फिल्म दर्शकों को बोर नहीं होने देती, यही इसकी खूबी है। वरना तो इतनी महंगी फिल्म बनना ही निरर्थक हो जाता। श्रीराम राघवन की निर्देशन पर शुरू से ही पकड़ बनी रहती है और पटकथा भी ढीली नहीं पड़ने पाती। सैफ अली खान का एक्शन रोचक, रोमांचक और तेज रफ्तार बाइक जैसा है। करीना कपूर ने भी एक्शन दृश्यों में अपनी तरफ से भरपूर मेहनत की है। लेकिन सैफ और करीना दोनों ही इमोशनल फिल्मों में ज्यादा प्रभावशाली और जीवंत लगते हैं। यह ठीक है कि सैफ ने सलमान, आमिर, शाहरुख और अक्षय कुमार से कमतर एक्शन नहीं किया है लेकिन न जाने क्यों सैफ के चेहरे और चरित्र पर ‘हम तुम’ या ‘लव आजकल’ जैसा किरदार ही ज्यादा भाता है। करीना को तो खुद को भावना प्रधान या चरित्र प्रधान किरदारों पर ही केंद्रित करना चाहिए। उसी के लिए वह जानी और पहचानी जाती हैं और वही उनका अपना ठप्पा भी है। अभिनय और निर्देशन के बाद तीसरी खूबी फिल्म की यह है कि ढेर सारे चरित्रों से भरी होने के बावजूद फिल्म का प्रत्येक एक्टर न सिर्फ परिभाषित है बल्कि अपनी ‘जर्नी’ भी पूरी करता है। फिर चाहे वह माफिया डॉन के रूप में प्रेम चोपड़ा हों, या कर्नल के रूप में आदिल हुसैन। सैफ एक भारतीय खुफिया अधिकारी है और करीना पाकिस्तानी जासूस। सैफ एक न्यूक्लीयर बम का पीछा करने के मिशन पर है। वह अपने मिशन में कामयाब भी होता है लेकिन इस दौरान गोलीबारी में, अपनी प्रेमिका बन चुकी, करीना कपूर को खो देता है। पता नहीं हीरोइन की मृत्यु को दर्शक पसंद करेंगे या नहीं लेकिन करीना का मरना कहानी में अनिवार्य नहीं था। जो भी हो ‘एजेंट विनोद’ एक दिलचस्प फिल्म तो है ही, यह अलग बात है कि वह हमारे ज्ञान या संवेदना में कोई इजाफा नहीं करती।
निर्देशक: श्रीराम राघवन
कलाकार: सैफ अली खान, करीना कपूर, प्रेम चोपड़ा, मरयम जकारिया, आदिल हुसैन, गुलशन ग्रोवर, रवि किशन
संगीत: प्रीतम चक्रवर्ती
Monday, March 26, 2012
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