Monday, December 26, 2011

डॉन टू

फिल्म समीक्षा

सिर्फ स्टाइलिश है:डॉन टू‘

धीरेन्द्र अस्थाना

निर्देशक फरहान अख्तर अपनी जिस संवेदनशीलता के लिए जाने जाते हैं, ’डॉन-टू‘ उससे एकदम अलग, तकनीक प्रधान फिल्म है। शाहरुख खान की फिल्म ‘रा डॉट वन‘ भी तकनीक प्रधान फिल्म थी, इसलिए उसने भी दर्शकों के दिल को नहीं छुआ था। ’डॉन टू‘ भी लगभग उसी कड़ी की फिल्म है, जो यह तो बता सकती है कि मारधाड़, विस्फोट, डकैती, जेल तोड़ना, सिक्योरिटी सिस्टम फेल कर देना, ऊंची बिल्डिंगों से कूदना आदि आदि के स्तर पर सिनेमा कितना आगे पहुंच गया है पर एक तार्किक, दमदार और भावप्रवण कहानी कहने से चूक जाती है। शाहरुख खान की जितनी भी यादगार और बेहतरीन फिल्में हैं, वे सब की सब अपनी मर्मस्पर्शी कहानियों के कारण उल्लेखनीय हैं। इसमें शक नहीं कि ’डॉन-टू‘ एक भव्य और महंगी फिल्म है, जिसकी विदेशी लोकेशन मन को बांधती हैं। इसमें भी शक नहीं कि इसमें शाहरुख खान का वह निराला अंदाज भी मौजूद है, जिसकी वजह से वह किंग खान हैं लेकिन एक उम्दा कथा-पटकथा के अभाव के चलते ’डॉन-टू‘ सिर्फ एक स्टाइलिश फिल्म बनकर रह गयी है। फिल्म के एक और खतरनाक डॉन बोमन ईरानी के आदेश के बावजूद जब प्रियंका चोपड़ा खुद गोली खा लेती है लेकिन शाहरुख खान पर गोली नहीं चला पाती, पूरी फिल्म में केवल यही एक दृश्य ऐसा है जो दर्शकों को भावना के स्तर पर स्पर्श करता है। प्रियंका चोपड़ा एक सीनियर पुलिस अधिकारी है, जो शाहरुख खान को जेल की सलाखों के पीछे देखने की तमन्ना में पूरी दुनिया में मारी-मारी घूम रही है। तो भी ऐन मौके पर वह कमजोर पड़ जाती है और खुद गोली खा लेती है। इससे जाहिर होता है कि शाहरुख खान को लेकर रागात्मकता का कोई बारीक सा तार प्रियंका के भीतर झनझना रहा है। बाकी तो पूरी फिल्म एक अंतरराष्ट्रीय बैंक की नोट छापने की मशीन हड़पने की कोशिशों पर केंद्रित है। नोटों की इन प्लेटों को अंत में शाहरुख खान हासिल करने में कामयाब भी हो जाता है और पुलिस के चंगुल से आजाद भी हो जाता है, इस मशहूर डायलॉग के साथ, ’डॉन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।‘ अंतिम सीन में शाहरुख जिस बाइक से आता है, उसकी नंबर प्लेट पर लिखा है- ’डॉन-3‘ यानी पिक्चर अभी बाकी है दोस्त।
निर्देशक: फरहान अख्तर
कलाकार: शाहरुख खान, प्रियंका चोपड़ा, लारा दत्ता, ओम पुरी, कुणाल कपूर, बोमन ईरानी
संगीत: शंकर-अहसान-लॉय

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