Monday, December 5, 2011

द डर्टी पिक्चर

फिल्म समीक्षा

बोल्ड एंड ब्यूटीफुल ‘द डर्टी पिक्चर’

धीरेन्द्र अस्थाना


कथा, पटकथा, संवाद और गीत के लिए 2011 के तमाम महत्वपूर्ण एवॉर्ड रजत अरोड़ा को मिलने वाले हैं। क्या संयोग है कि वर्ष की शुरुआत 7 जनवरी को रिलीज विद्या बालन की फिल्म ‘नो वन किल्ड जेसिका’ से हुई और लगभग अंत भी 2 दिसम्बर को रिलीज विद्या बालन की फिल्म ‘द डर्टी पिक्चर’ से हुआ। यकीनन इस वर्ष के कई एवॉर्ड की हकदार विद्या बालन भी हैं। इस फिल्म के माध्यम से विद्या बालन ने साबित कर दिया है कि वह एक प्रतिभाशाली, संवेदनशील और बहुआयामी अभिनेत्री हैं। आठवें दशक में साउथ की सुपरस्टार हीरोइन सिल्क स्मिता की रियल लाइफ पर आधारित इस चुनौतीपूर्ण किरदार को निभाने का साहस बॉलीवुड की कई मशहूर अभिनेत्रियां नहीं कर पायी थीं। ऐसे में विद्या बालन आगे आयीं और उन्होंने बता दिया कि वह ब्यूटीफुल तो हैं ही बोल्ड भी हैं। निर्माता एकता कपूर की यह विशेषता बनती जा रही है कि वह आरंभ तो किरदारों से करती हैं लेकिन अंततः परिवेश और समय को ही फिल्म का विमर्श और चरित्र बना देती हैं। यह फिल्म भी सिल्क स्मिता के बहाने तत्कालीन दक्षिण भारतीय सिनेमाई परिवेश और समय के साथ-साथ रोशनी के पीछे अंधकार के अस्तित्व को रेखांकित करती है। और चूंकि फिल्म हिन्दी में है, इसलिए यह पूरे हिन्दी सिनेमा वह वाला उदास और गर्दिश में डूबा चेहरा बन जाती है, जो जगमग उजालों के पीछे खड़ा थरथराता रहता है। निर्देशक मिलन लूथरिया ने सभी कलाकारों का श्रेष्ठ निकलवाने में कामयाबी पायी है लेकिन इंटरवल के बाद वह थोड़ा लड़खड़ा गये हैं। रियल लाइफ को ज्यादा से ज्यादा दर्शाने के मोह में उन्होंने फिल्म को बेवजह लंबा कर दिया है। इंटरवल के बाद वाले हिस्से को बड़ी सहजता से 15 से 20 मिनट छोटा किया जा सकता था। इससे फिल्म और कस जाती और ‘मेरा इश्क सूफियाना’ जैसे बेहतरीन गीत पर दर्शक हॉल से बाहर नहीं जाते। इसी गीत में विद्या बालन गजब की दिलकश और मोहक लगती हैं। बाकी फिल्म में तो उनका सेक्सी अवतार है। तुषार कपूर बहेतरीन काम कर गये हैं तो इमरान हाशमी ने भी बताया है कि वह केवल सीरियल किसर ही नहीं हैं, बल्कि अभिनय भी कर सकते हैं। फिल्म के अंत में सिल्क को लेकर अपने भीतर उमड़ते आवेग को इमरान ने खूबसूरत अभिव्यक्ति दी है। जब तक सिनेमा है, तब तक शायद ऐसी फिल्में बीच-बीच में बनती रहेंगी कि सिनेमा में हीरोइनों का किस कदर शोषण होता है। चमकदार सिनेमा के दारुण यथार्थ को मर्मांतक चीख की तरह अनुभव करने के लिए फिल्म जरूर देखनी चाहिए।

निर्देशक: मिलन लूथरिया
कलाकार: नसीरुद्दीन शाह, विद्या बालन, तुषार कपूर, इमरान हाशमी, अंजु महेन्द्रू
लेखक: रजत अरोड़ा
संगीत: विशाल-शेखर

3 comments:

  1. बेहतर समीक्षा कार्य

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  2. बंधुवर, आपकी टिप्पणी देखने के बाद अब पिक्चर देखने का मन कर रहा है.परसों मतलब ७/१२/११ को माल रोड जाना होगा तभी सी.डी.लाने की कोशिश होगी.

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  3. mere kai dosto ne kaha ki film bakwas hai..film dekhne ke bad maine unse kaha ki aap sirf interval se pahle bold daioulge ko he dekhte hai ..film ka sabase bada point hai jab silk ka saath sab chor dete hai aur jab wo road per bhaag rahi aur use apne bimb dekhea deta hai..last line koi nahi mila jo sir per haath rakhe.. film me sabkuch hai ..ye darshak per depend karta hai ki wo kya leta hai..

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