Saturday, January 30, 2010

रण

फिल्म समीक्षा

मीडिया के भीतर का ‘रण‘

धीरेन्द्र अस्थाना

रामगोपाल वर्मा धंधा करने के लिए आमतौर पर फिल्में नहीं बनाते। कुछ अपवादों को छोड़ दें जैसे ‘सत्या‘, ‘भूत‘, ‘कंपनी‘, ‘सरकार‘ तो उनकी फिल्में बड़ा धंधा करती भी नहीं हैं। बाॅलीवुड में रामू का अपना एक अलग अंदाज और मुहावरा है। हां, धंधे का समर्थन करने में उन्हें कोई ऐतरात नहीं है। याद करें यह गीत -‘गंदा है पर धंधा है।‘
लेकिन अपनी नयी फिल्म ‘रण‘ में उन्होंने पूरी ताकत से यह संदेश देना चाहा है कि मीडिया एक मिशन है। उसे धंधा बनने से बचाओ। शायद पहली बार रामू ने मीडिया विमर्श पर केंद्रित फिल्म बनायी है और बहुत दिनों बाद वह एक विचारोत्तेजक तथा सरोकारों वाला विषय लेकर आए हैं। वरना तो उनकी छवि माफियाओं और भूतों वाले फिल्मकार की होने लगी थी। पहले विचार कर लें कि मीडिया से आम जनता का नाता कितना है? इसलिए मीडिया के भीतर चल रही मारकाट, स्पर्धा, षड्यंत्र और चालबाजी को आम आदमी कितना और क्यों आत्मसात करेगा? स्पष्ट कर दें कि सिनेमा आम आदमी का माध्यम है और मीडिया खास आदमी का। खास आदमी के माध्यम के भीतर चल रही साजिशों में आम आदमी क्यों दिलचस्पी लेगा? यही कारण है कि एक सार्थक, महत्वपूर्ण और सरोकारों से जुड़ी होने के बावजूद रामू की ‘रण‘ बाॅक्स आॅफिस पर लड़खड़ा गयी है। विमर्श के मोर्चे पर ‘रण‘ सफल है लेकिन व्यवसाय के मोर्चे पर असफल। काश, ऐसी फिल्में धंधे के मोर्चे पर भी सफल होतीं तो आज बाॅलीवुड का चेहरा कुछ और ही होता। अभिनय के स्तर पर ‘रण‘ कुल मिला कर अमिताभ बच्चन और परेश रावल की फिल्म है। एक सच्चे और खरे चैनल के प्रमुख की भूमिका में अमिताभ ने प्रभावशाली तथा जीवंत अभिनय किया है। उनके बरक्स एक भ्रष्ट और चालबाज नेता के रोल में परेश रावल ने फिल्म को दमदार बना दिया है। लंबे समय बाद राजपाल यादव को एक बेहतर किरदार निभाने को मिला जिसे उन्होंने बेहतरीन ढंग से निभाया। उनका शिष्ट हास्य फिल्म को ‘काॅमिक रिलीफ‘ देता है। एक युवा रिपोर्टर के रूप में रितेश देशमुख की सादगी और पवित्रता भली भली सी लगती है लेकिन एकाध जगह उनका जासूस जैसा चरित्र खटकता है। पात्रों के चयन के संबंध में यह बात तो खुद रामू ही बता सकते हैं कि अमिताभ के वारिस, युवा चैनल मालिक के इतने लंबे और महत्वपूर्ण रोल के लिए उन्हें सुदीप क्यों मिले? और अगर दक्षिण के इस सितारे को लेना ही था तो उनसे ऐसे दृश्य क्यों नहीं करवाये जिनमें वह अपनी अभिनय प्रतिभा दिखा सकते? फिल्म में स्त्री पात्रों के लिए उचित ‘स्पेस‘ नहीं रखा गया है। मीडिया पर केंद्रित फिल्म के लिए अगर रामू ‘लार्जर दैन लाइफ‘ वाला फार्मूला इस्तेमाल नहीं करते तो ‘रण‘ ज्यादा प्रामाणिक, सहज और तार्किक हो सकती थी। फिल्म देख लें।

निर्देशक: राम गोपाल वर्मा
कलाकार: अमिताभ बच्चन, परेश रावल, रितेश देशमुख, सुदीप, सुचित्रा कृष्णमूर्ति, नीतू चंद्रा, राजपाल यादव, गुल पनाग

1 comment:

  1. namaskar! aapki sameeksha padhkar zaroor dekhne ki ichchha ho rahi hai ,nahi toh...
    dhananjay kumar

    ReplyDelete