फिल्म समीक्षा
हंसने की चाह में 'दे दना दन'
धीरेन्द्र अस्थाना
हास्य सम्राट निर्देशक प्रियदर्शन का जादू देखने सिनेमा हॉल पहुंचने वाले दर्शक निराश हो सकते हैं। जैसी कि आमतौर पर कॉमेडी फिल्में होती हैं ’दे दना दन’ भी एक अतार्किक और शुद्ध हास्य फिल्म है। इंटरवल तक तो कोई कहानी या स्थिति बन ही नहीं पाती है। इंटरवल के बाद जरुर सब पात्र जब होटल में इकठ्ठा हो जाते हैं तब ढेर सारे कन्यूजन, गलत फहमी और सिचुएशन से हंसी का कुछ सामान जुटता है। फिल्म बहुत लंबी हो गयी है। तीन घंटे से भी कुछ मिनट ज्यादा लंबी। बहुत सारी उपकथाएं, पात्र और उलझनें मूल कहानी को दबा लेती हैं। कई जगह हंसी की जगह झुंझलाहट भी होती है क्योंकि अनेक दृश्यों को बहुत ज्यादा खींचा गया है। कई घटनाएं अनावश्यक भी हैं। मूलतरू यह घटनाओं की ही फिल्म है और इसीलिए फिल्म के सभी पात्रों ने अपने उपर घटती घटनाओं को लेकर दर्शकों को हंसाने की जी तोड़ कोशिश की है। इस कोशिश में सबसे ज्यादा कामयाब हुए हैं परेश रावल और जॉनी लीवर क्योंकि उनका हास्य एकदम जीवंत और स्वाभाविक लगता है। बाकी लोगों की कोशिश पकड़ में आती है। हंसने हंसाने वाली एक हल्की फुल्की ’मांइडलेस कॉमेडी’ है ’दे दना दन’। बहुत उंची उम्मीद लेकर देखने न जाएं। इससे बेहतरीन हास्य के पल प्रियद्रर्शन अपनी पुरानी फिल्मों में ज्यादा शानदार और जानदार ढंग से पेश कर चुके हैं।
फिल्म एक अरबपति स्त्री अर्चना पूरन सिंह के यहां बंधुआ मजदूर जैसा जीवन बिताने वाले अक्षय कुमार से आरंभ होती है। अक्षय संयोगवश बने दोस्त सुनील शेट्टी के साथ मिल कर अर्चना के कुत्ते का अपहरण करने का प्रयास करते हैं जो नाकाम होता है। एक गलतफहमी के चलते खबर अक्षय के अपहरण की फैल जाती है। पूरी फिल्म का ताना बाना इसी के इर्द-गिर्द बुना गया है। बीच बीच में परेश रावल के बेटे चंकी पांडे की शादी, नेहा धूपिया की बतौर कॉलगर्ल एंट्री, अक्षय और सुनील शेट्टी के प्रेम प्रसंग, जॉनी लीवर के सुपारी किलर वाले दृश्य रखे गये हैं। पूरी फिल्म का सबसे प्रभावशाली दृश्य होटल में हुए बम धमाके के कारण वाटर टैंक के फूटने से पैदा बाढ़ है। इसी बाढ़ में अर्चना से प्राप्त फिरौती का पैसा डूब कर फिर मिल जाता है। फिल्म के अंत में हंसी का वास्तविक ’दे दना दन’ है।
निर्देशक : प्रियदर्शन
कलाकार : अक्षय कुमार, कैटरीना कैफ, सुनील शेट्टी, परेश रावल, अर्चना पूरन सिंह, जॉनी लीवर, चंकी पांडे, नेहा धूपिया
संगीत : प्रीतम
Sunday, November 29, 2009
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हंसी में भी गंभीरता का पुट कहीं न कहीं होता है पर प्रियदर्शन जैसे लोग उसे कहां समझेंगे।
ReplyDeleteसमीक्षा पर प्रतिक्रिया भेजने के लिए धन्यवाद. कृपया लगातार पढ़ते रहें.
ReplyDeleteधीरेन्द्र अस्थाना