Saturday, November 21, 2009

कुर्बान

फिल्म समीक्षा

प्रेम से परास्त होता आतंक: कुर्बान

धीरेन्द्र अस्थाना

एकबारगी ऐसा लगा था कि सैफ अली खान का चरित्र आतंकवाद के अक्स में जाकर घुलने ही वाला है। उस वक्त चिंता हुई थी कि ‘बुराई पर अच्छाई की विजय‘ के विरूद्ध जाकर करण जौहर यह कैसा नाकारात्मक पाठ्यक्रम तैयार कर रहे हैं? लेकिन अंत में ऐसा नहीं हुआ। प्रेम के विराट और स्नेहिल संसार के सामने आतंक का दुर्दांत लेकिन बौना विश्व परास्त हो गया। आतंकवाद की काली पृष्ठभूमि पर करण जौहर प्रेम और भविष्य की उजली पटकथा लिखने में कामयाब हुए हैं। यों पटकथा रेंसिल डिसिल्वा की है जो फिल्म ‘कुर्बान‘ के निर्देशक भी हैं। कहानी जरूर करण जौहर की है जो उन्होंने सन् 2000 में सोची थी जब अमेरिका के वल्र्ड ट्रेड सेंटर पर हमला नहीं हुआ था। यह प्रसंग पटकथा में शामिल किया गया है। बतौर निर्देशक रेंसिल की यह पहली फिल्म है और इसकी तुलना स्वभावतः ‘न्यूयॉर्क‘ से की जाएगी। ‘न्यूयॉर्क‘ आतंकवाद के दुष्प्रभावों पर फोकस करती थी, ‘कुर्बान‘ आतंकवादी की राह में प्यार आ जाने के बाद उसकी बदली हुई सोच पर फोकस करती है। रेंसिल की तारीफ करनी होगी कि पूरी फिल्म में उन्होंने जबर्दस्त तनाव बनाए रखा है। कहानी में कहीं कोई झोल नहीं है। लेकिन यह पूरी तरह से सैफ अली खान की फिल्म है। करीना कपूर जैसी प्रतिभाशाली अभिनेत्री के लिए इसमें कुछ कर दिखाने की कोई गुंजाइश नहीं रखी गयी। सैफ के साथ करीना के अंतरंग रिश्तों को दर्शाने भर के लिए करीना का इस्तेमाल किया गया है। और किसी हीरो के साथ करीना इन दृश्यों को फिल्माने से परहेज कर सकती थीं।
एक और बात। यह एक गंभीर फिल्म है जो देखे जाने से लेकर समझे जाने तक समझदारी की उम्मीद रखती है। मौज-मजा चाहने वाले दर्शक इस फिल्म से निराश होंगे। शायद हुए भी हैं। सिनेमा हाॅल में आम दर्शकों के चालू फिकरे बता रहे थे कि ‘कुर्बान‘ उनके सिर के ऊपर से गुजर रही है। यह करण जौहर कैंप की भी अब तक की सबसे परिपक्व और महत्वपूर्ण फिल्म है। साधन संपन्न फिल्मकारों का फर्ज बनता है कि यदा-कदा वे सिनेमा जैसे शक्तिशाली माध्यम का इस्तेमाल ‘संदेश‘ देने के लिए करें। निर्माण के स्तर पर फिल्म दिव्य, भव्य और संपूर्ण है। गीत-संगीत फिल्म के अनुकूल है। सैफ अली खान अभिनय की नयी ऊंचाइयां तय कर रहे हैं। किरण खेर ने अभिनय का अलग ही आस्वाद दिया है। वह आतंकवादी बनी हैं तो भी उन्हें लेकर गुस्सा नहीं पनपता। ऐसा उनके जानदार और तार्किक अभिनय के कारण है। फिल्म देखें।

निर्माता: करण जौहर
निर्देशक: रेंसिल डिसिल्वा
कलाकार: सैफ अली खान, करीना कपूर, ओम पुरी, किरण खेर, विवेक ओबेरॉय, दिया मिर्जा
संगीत: सलीम-सुलेमान

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