Saturday, December 5, 2009

पा

फिल्म समीक्षा

नये से अनुभवों की मर्मस्पर्शी ‘पा‘

धीरेन्द्र अस्थाना


एक बार फिर निर्देशक आर. बालकी ने साबित किया कि वह एक बेहतर तथा मंजे हुए फिल्मकार हैं। वह कहानी को खूबसूरत और सधे हुए ढंग से पर्दे पर उतारना जानते हैं। ‘चीनी कम‘ में जहां उन्होंने बुजुर्ग अमिताभ की परिपक्व प्रेम कहानी संवेदना के स्तर पर बुनी थी वहीं ‘पा‘ में बाल अमिताभ की ‘बुजुर्ग त्रासदी‘ को अत्यंत ही मर्मस्पर्शी स्पर्श देने में सफलता पायी है। यह कहना गलत नहीं है कि अमिताभ बच्चन अभिनय का आश्चर्यलोक हैं। ‘ब्लैक‘ फिल्म में उन्होंने अभिनय का एक शिखर छुआ था तो ‘पा‘ में दूसरा शिखर छू लिया। ‘प्रोजेरिया‘ नामक अत्यंत विरल तथा त्रासद बीमारी के शिकार एक बारह-तेरह साल के बुजुर्ग दिखते बच्चे का हैरतअंगेज किरदार निभा कर बिग बी ने सचमुच अभिनय का एक नया ही ‘ककहरा‘ लिख दिया है। इतने विश्वसनीय, जीवंत और विस्मित कर देने वाले अंदाज में अमिताभ ने आॅरो (बच्चे) का चरित्र अदा किया है जिसकी मिसाल हिंदी सिनेमा के इतिहास में हमेशा दी जाया करेगी।

यह एक गंभीर विमर्श है जो दर्शकों से अतिरिक्त समझदारी और संवदेनशीलता की उम्मीद रखता है। मुख्यधारा की फिल्म होने के बावजूद ‘पा‘ उन साधारण फिल्मों से अलग है जो ‘मौज मजे‘ के लिए देखी जाती हैं। इस फिल्म में दर्शक लगातार कुछ नये से अनुभवों से गुजरता रहता है। वह ऐसा कुछ घटते देखता है जो अब तक उसके ‘देखे जाने सत्य‘ से बाहर का है। इसके बावजूद कथा के प्रति उसका कौतुक बना रहता है। अनेक मार्मिक प्रसंग ऐसे हैं जहां फिल्म विचलित करती है। ‘गुरू‘ के बाद अभिषेक बच्चन की भी यह एक महत्वपूर्ण फिल्म कही जाएगी। अपने पिता का पिता बनना पर्दे पर भी कठिन होता है। अभिषेक ने यह चुनौती सशक्त और सहज ढंग से निभायी है। मूल रूप से पिता-पुत्र के एक गैर पारंपरिक रिश्ते की व्याख्या करने वाली ‘पा‘ में आर. बालकी ने फिल्म की हीरोईन विद्या बालन के लिए भी भरपूर ‘स्पेस‘ छोड़ा है। विद्या ने अपने लिए छोड़े गये ‘स्पेस‘ को व्यर्थ नहीं जाने दिया है। उन्होंने अपने अभिनय की एक दमदार छाप छोड़ी है। अनेक स्थलों पर उन्होंने शब्दों की जगह भंगिमाओं से अपने चरित्र को अभिव्यक्त किया है। परेश रावल को दर्शक ‘हास्य अवतार‘ में देखने के अभ्यस्त हो गये हैं। इस फिल्म में उनका अलग चरित्र देखने को मिलेगा। फिल्म का गीत-संगीत भी कर्णप्रिय और ताजगी भरा है। कोई भी फिल्म अनायास ही सृजन कैसे बन जाती है इसका प्रतीक है ‘पा‘। अर्थपूर्ण सिनेमा के समर्थक इसे कृपया अवश्य देखें।

निर्माता: ए.बी.कॉर्प.
निर्देशक: आर. बालकी
कलाकार: अमिताभ बच्चन, अभिषेक बच्चन, विद्या बालन, जया बच्चन (फिल्म की टीम का परिचय देती हैं, यह नया स्टाइल है।)
संगीत: इलिया राजा
गीत: स्वानंद किरकिरे

1 comment:

  1. अच्छी समीक्षा जिस में कहानी का कखग भी नहीं खोला गया।

    ReplyDelete