Saturday, August 29, 2009

किसान

फिल्म समीक्षा

अच्छी नीयत से बनायी गयी ‘किसान‘

धीरेन्द्र अस्थाना


अचानक ऐसा लगा जैसे हम सातवें-आठवें दशक के समय में बैठ कर ‘मेरा गांव मेरा देश‘ या ‘उपकार‘ जैसी कोई फिल्म देख रहे हैं। ‘कमीने‘, ‘देव डी‘, ‘न्यूयार्क‘ जैसी प्रयोगधर्मी और यथार्थवादी फिल्मों के इस दौर में ‘किसान‘ जैसी पुरानी शैली और भावुकता भरी फिल्म देखना एक विरल अनुभव है। इसमें कोई शक नहीं कि ‘किसान‘ को सदिच्छा और अच्छी नीयत के साथ बनाया गया है। यह महानगरों के मल्टीप्लेक्स थियेटरों के लिए बनी हुई फिल्म नहीं है। लेकिन हिंदुस्तान तो छोटे शहरों-कस्बों में ही बसता है। वहां के सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों में ‘किसान‘ चल सकती है। निर्माता सोहेल खान की इस बात के लिए तारीफ करनी पड़ेगी कि इस उत्तर आधुनिक समय में उन्होंने गांव के किसानों के शोषण और उनकी जमीन हड़पने की साजिशों को स्पर्श करने का प्रयास किया। आज के ‘युवा केंद्रित दौर‘ में किसानों की दुर्दशा पर फिल्म बनाना बड़े जिगर का काम है।

संयोग से फिल्म में सोहेल का नाम भी जिगर ही है। वह जैकी श्रॉफ के छोटे बेटे के किरदार में है जो खांटी किसान है, पिता की तौहीन बर्दाश्त नहीं कर सकता और गुस्सैल स्वभाव का है। अरबाज खान का किरदार जैकी के बड़े बेटे अमन का है जो पढ़ लिख कर आधुनिक वकील बन गया है और शहर में जा बसा है। दीया मिर्जा अरबाज की पत्नी के रोल में हैं। नौहीद साइरसी सोहेल की पत्नी के रोल में है। पंजाब के एक गांव की इस सीधी सादी फिल्म में पारंपरिक रूप से कुछ अच्छे चरित्र हैं, तो कुछ बुरे। बुरे चरित्र शहर के उद्योगपति दिलीप ताहिल का साथ देते हैं। कुछ लालच और कुछ गलतफहमियों के चलते अरबाज खान भी दिलीप ताहिल के पाले में खड़ा नजर आता है। अरबाज की गैर जानकारी में दीया मिर्जा ‘दिलीप ताहिल विरुद्ध किसान‘ केस पर काम कर रही हैं। दीया को बुरे लोग जला देते हैं। जैकी के आदेश पर सोहेल खान और उसके साथी तमाम बुरे लोगों को मार डालते हैं। गुंडों के द्वारा किसानों की हत्या करवा के आत्महत्या प्रचारित करवा देने तथा उनकी जमीनों को हड़पने के आरोप में सीबीआई दिलीप ताहिल को गिरफ्तार कर लेती है। अरबाज खान की गलतफहमी दूर होती है। बिछड़ा हुआ नाराज बेटा अपने बाप और भाई से आ मिलता है। बुराई पर अच्छाई की विजय होती है। इस कहानी में बीते समय की फिल्मों जैसा थोड़ा रोना-धोना, थोड़ी बीमारी, थोड़ा इमोशनल ड्रामा और थोड़ी मारा-मारी का तड़का भी है।
जैकी सिख किसान के वेष में जीवंत और प्रभावी लगते हैं। सोहेल खान ने प्रतिबद्ध बेटे का किरदार शानदार ढंग से निभाया है। फिल्म में कुल सोलह गायकों ने अपनी आवाज दी है। भावुक दर्शक फिल्म देख सकते हैं।

निर्माता: सोहेल खान
निर्देशक: पुनीत सीरा
कलाकार: जैकी श्रॉफ, सोहेल खान, अरबाज खान, दीया मिर्जा, नौहीद सायरसी, दिलीप ताहिल
संगीतकार: डब्बू मलिक

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