Saturday, August 8, 2009

अज्ञात

फिल्म समीक्षा

क्या लिखें इस ‘अज्ञात‘ पर?

धीरेन्द्र अस्थाना

अगर राम गोपाल वर्मा ने ‘कोहरा‘, ‘बीस साल बाद‘, ‘वह कौन थी‘ या ‘गुमनाम‘ जैसी किसी पुरानी फिल्म का रिमेक बना दिया होता तो भी दर्शकों को ज्यादा रोमांच दे सकते थे। फिल्म ‘भूत‘ के बाद उनका डर का कारोबार चल नहीं पा रहा है। बेहतर होगा कि वह ‘सत्या‘ और ‘सरकार राज‘ जैसी फिल्में ही बनाया करें। उनकी रोमांचक फिल्म ‘अज्ञात‘ का एकमात्र रोमांच श्रीलंका के घने और रहस्यमय जंगलों की यात्रा भर है। बाकी तो सब कुछ ज्ञात हो जाता है इस ‘अज्ञात‘ में। जिस फिल्म की कहानी भी अज्ञात हो उस पर भला क्या लिखा जा सकता है?
एक नकचढ़े एक्टर और प्रसिद्ध अभिनेत्री के साथ फिल्म की एक यूनिट जंगलों में शूटिंग के लिए जाती है। थोड़ी देर बाद यूनिट का पथ प्रदर्शक एक स्थानीय जंगलवासी किसी रहस्यमय शक्ति के हाथों मारा जाता है। फौरन अनुमान लग जाता है कि हीरो-हीरोईन के अलावा बाकी सब एक-एक करके मारे जाएंगे। ठीक यही होता है। कुछ शक्ति के हाथों मार दिये जाते हैं, कोई अपनी बेबसी से निराश होकर खुद मर जाता है। दो चरित्रों को उनकी तात्कालिक दुश्मनी ले डूबती है। अंत में बचती है रामू की प्रिय हीरोईन निशा कोठारी जो इस फिल्म में नये नाम प्रियंका के साथ मौजूद है। दूसरा बचता है दक्षिण का युवा हीरो नितिन रेड्डी जो जंचता है और जिसकी दक्षिण की ‘मार्केट वेल्यू‘ को मुट्ठी में लेने के लिए फिल्म को तमिल-तेलुगू में भी डब किया गया है। खबर है कि पांच करोड़ के छोटे बजट में बनी यह फिल्म अपना पैसा दक्षिण के बाजार से वसूलने में कामयाब भी हो गयी है। अब कुछ भी लिखते रहें हिंदी वाले! क्या फर्क पड़ता है? फिल्म के अंत में ‘अज्ञात-2‘ की घोषणा कर दी गयी है। जाहिर है जिंदा बची प्रियंका और नितिन रेड्डी को फिल्म के सीक्वेल में भी काम मिलना तय हो गया है।
नितिन में काफी संभावनाएं हैं। बॉलीवुड की भीड़ में खोने से बच गया तो जीवन में कोई करिश्मा भी हो सकता है। भाव व्यक्त करने आते हैं नितिन को। सिर्फ बदन दिखा कर कोई लड़की बॉलीवुड में नहीं टिक सकी है आज तक। यह तथ्य प्रियंका को समझ लेना चाहिए वह भी समय रहते और थोड़ा बहुत ध्यान अभिनय सीखने पर केंद्रित करना चाहिए। जंगलवासी सेतु के किरदार में जॉय फर्नांडिस के अलावा अन्य कोई कलाकार प्रभावित नहीं करता। सुरजोदीप घोष की सिनेमेटोग्राफी जरूर आकर्षक और दिलकश है। वह हमारी स्मृतियों में जंगल को जीवंत करने में सफल होते हैं। रामगोपाल वर्मा जैसा भाग्य बॉलीवुड में बहुत कम लोगों को नसीब है। उन्हें यह भाग्य व्यर्थ की फिल्मों में नहीं गंवाना चाहिए।

निर्देशक: राम गोपाल वर्मा
कलाकार: नितिन रेड्डी, प्रियंका कोठारी, गौतम रोडे, रसिका दुग्गल, जॉय फर्नांडिस।
संगीत: इमरान, बापी, टुटुल

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