Saturday, August 22, 2009

सिकंदर

फिल्म समीक्षा

सिकंदर: बचपन की आंख से आतंक

धीरेन्द्र अस्थाना

लीक से हटकर, अर्थपूर्ण सिनेमा बनाने वालों की जमात में आतंक एक प्रिय विषय है। निर्देशक पीयूष झा ने अपनी फिल्म ‘सिकंदर‘ में आतंकवाद की इबादत को बचपन की आंख से रेखांकित करने की कोशिश की है। बस एक यही बात इसे अन्य आतंकवाद आधारित फिल्मों से अलग करती है। बहुत जमाने के बाद ‘सिकंदर‘ के माध्यम से समकालीन और यथार्थवादी कश्मीर को देखने का मौका मिला। आतंकवाद और फौज के अनुशासन के बीच सहमा हुआ कश्मीर और उस कश्मीर में धीरे-धीरे बड़े होते बच्चे। आतंक की वर्णमाला सीखते हुए। आतंकवाद का निशाना बनते बच्चे, आतंकवाद के लिए इस्तेमाल होते बच्चे, आतंक को अपनाते बच्चे। यही ‘सिकंदर‘ फिल्म का बुनियादी कथ्य है जिसे बहुत सादगी और सहजता के साथ कहने का प्रयास किया गया है। पता नहीं क्यों दर्शक ऐसी फिल्में देखना पसंद नहीं करते। मीरा रोड के सिनेमैक्स में इस फिल्म के शाम साढ़े तीन बजे के पहले शो में कुल छह दर्शक मौजूद थे। सातवां यह समीक्षक। किसी गंभीर विषय से टकराने को जल्दी राजी नहीं होते हिंदी के दर्शक। आतंकवाद भी ‘न्यूयार्क‘ जैसे ग्लैमरस अंदाज में पेश किया जाए तो ही दर्शक सिनेमा हॉल में जाना पसंद करते हैं। जो भी हो धारा के विरुद्ध जा कर भी जिरह तो जारी रहेगी। रहनी भी चाहिए। काफिला बनते-बनते बनता है।
फिल्म के दो मुख्य किरदार परजान दस्तूर (सिकंदर) और आयशा कपूर (नसरीन) जैसे किशोर कलाकार हैं। फिल्म ‘कुछ कुछ होता है‘ का बच्चा परजान अब 18 वर्ष का किशोर है। फिल्म ‘ब्लैक‘ में रानी मुखर्जी के बचपन का रोल निभाने वाली आयशा अब किशोरी है। आने वाले समय में आयशा सिनेमा का अहम् हस्ताक्षर बनेगी ऐसी आहटें उसके ‘सिकंदर‘ के अभिनय से आ रही हैं। दोनों बच्चे एक ही स्कूल में, एक ही क्लास में पढ़ते हैं। एक दिन स्कूल जाते समय सुनसान पगडंडी पर परजान को एक पिस्तौल पड़ी मिलती है जिसे उस दिन तो वह छुपा देता है लेकिन अगले दिन उठा कर अपने बैग में रख लेता है। यह पिस्तौल कैसे अनायास और अनजाने में उसका पूरा जीवन ही बदल देती है इस बात को निर्देशक ने विभिन्न उपकथाओं और घटनाओं के जरिए उद्घाटित किया है। दहशतगर्द लोग कैसे अपने जुनून के रास्ते पर बच्चों को उतार देने में भी परहेज नहीं करते, यह भी ‘सिकंदर‘ का एक मुख्य कथ्य है। ‘सिकंदर‘ का माइनस पॉइंट यह है कि एक प्रभावी कथ्य के बावजूद यह उतना प्रभावित नहीं करती जितना कर सकती थी। शायद इसकी ‘मेकिंग‘ में कोई गंभीर कमी है। गीत-संगीत बेहतर है।
निर्माता: सुधीर मिश्रा
निर्देशक: पीयूष झा
कलाकार: आर. माधवन, परजान दस्तूर, आयशा कपूर, संजय सूरी, अरुणोदय सिंह
संगीत: शंकर-अहसान-लॉय, संदेश शांडिल्य

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