Monday, February 3, 2014

वन बाई टू

फिल्म समीक्षा

दो दुखों की एक नाव: वन बाई टू

धीरेन्द्र अस्थाना

एक फिल्म में दो, तीन, चार, दस कहानियां पहले भी आ चुकी हैं। उनमें से कुछ बहुत अच्छी फिल्में भी साबित हुईं। जैसे दस कहानियां, मेट्रो, रांझना आदि। लेकिन इस दृष्टि से वन बाई टूथोड़ा निराश करती है। यह दो दुखों की एक नाव तो बनती है लेकिन हिचकोले खाने वाली डगमग नाव। एक लीक से हटकर कलात्मक फिल्म बनाने का यह अर्थ नहीं है कि निर्देशक दर्शकों की तरफ पीठ फेर कर फिल्म बनाये। आप दर्शक की अनदेखी करेंगे तो दर्शक फिल्म को ठुकरा देगा। यही कारण है कि एक तो फिल्म को बहुत कम शो हासिल हुए और जितने भी हुए उनमें दर्शकों की संख्या बस खाने में नमक के बराबर ही थी। इतनी भी जटिल और अबूझ फिल्म बनाने का क्या मतलब है कि दर्शक सोचता ही रह जाए कि यह पर्दे पर चल क्या रहा है। पूरी फिल्म में एक-दो नहीं ऐसी सात आठ घटनाएं हैं जिनका कोई सिर-पैर ही नहीं है। इंटरवल तक तो फिल्म पकड़ में ही नहीं आती। इंटरवल के बाद तब थोड़ी राहत मिलती है जब अहसास होता है कि चलो फिल्म पटरी पर तो आई। उससे पहले तो बिना कोई राह पकड़े जिस तिस दिशा में फिल्म ऐसे आती जाती है कि सिर घूमने लगता है। कला के नाम पर पैसों के साथ ऐसे क्रूर मजाक नहीं किए जाने चाहिए। सिनेमा में अभय देओल ने अपना एक अलग रास्ता पकड़ कर एक अलग इमेज बनायी है। लेकिन इस तरह की फिल्में अगर उन्होंने जारी रखीं तो शायद उनका नसीब उनके लिए गुमनामी बुन देगा। इस फिल्म में उनका अभिनय भी उनके किरदार की तरह बोरिंग और अझेल है।
फिल्म में अभय देओल और प्रीति देसाई की दो अलग कहानियां एक साथ खुलती हैं लेकिन यह तथ्य दर्शकों के सामने इंटरवल के बाद खुलता है। दो घंटे उन्नीस मिनट की फिल्म के तीस मिनट केवल डांस वारनामक रियलिटी शो में बीत जाते हैं। अभय देओल को उसकी प्रेमिका ने छोड़ दिया है और प्रीति देसाई को उसके पिता ने। पिता ने दरअसल अपनी पत्नी को छोड़ा था और प्रीति ने पिता के बजाए मां के साथ रहने को प्राथमिकता दी। इन दोनों अलगावों के कारणों को न जस्टीफाई किया गया न ही स्थापित। प्रेमिका के बिछोह के कारण अभय देओल का जीवन असंतुलित और असहज हो गया है लेकिन जब प्रेमिका उसके जीवन में फिर से लौटने की पेशकश करती है तो अभय इस प्रस्ताव को ठुकरा देता है। दूसरी तरफ प्रीति के जीवन में उसका लंदन निवासी पिता वापस लौटता है और उसे लंदन में डांस अकेडमी खोलने का प्रस्ताव देता है। प्रीति यह प्रस्ताव ठुकरा देती है क्योंकि उसे मां को नहीं छोड़ना है। मां दिन-रात शराब पीकर पड़ी रहती है। प्रीति डांस शो में विनर के पायदान तक पहुंचती है लेकिन इस घोषणा से पहले कार्यक्रम से गायब हो जाती है। इसका भी कोई कारण नहीं दिखाया गया है। फिल्म के अंत में एक भद्दे और बेहूदे टॉयलेट सीन के बाद प्रीति अभय को अपनी मां से मिलवाती है और स्क्रीन पर टाइटल उभरने लगते हैं। दी एंड।

निर्देशक:     देविका भगत
कलाकार:     अभय देओल, प्रीति देसाई, रति अग्निहोत्री, दर्शन जरीवाला, स्मिता जयकर
संगीत:       शंकर-अहसान-लॉय



Monday, January 27, 2014

जय हो

फिल्म समीक्षा

सलमान का नया करिश्मा जय हो

धीरेन्द्र अस्थाना

यह जानते हुए भी कि पर्दे पर सचमुच का जीवन नहीं बल्कि एक काल्पनिक फिल्म चल रही है, दर्शक सलमान खान के एंट्री लेते ही चीखने चिल्लाने और सीटियां बजाने लगते हैं। फिल्मों में सलमान की एंट्री होती भी बड़े नाटकीय तरीके से है। जैसा कि होता है सलमान की नयी फिल्म भी एक करिश्मा है। दर्शकों का क्रेज देख लगता है कि अभी कुछ वर्षों तक सलमान का जादू छाया रहेगा। वांटेडऔर दबंगकी ही श्रृंखला में जय होभी एक कड़ी है लेकिन कुछ अलग अंदाज, नये तेवर और संदेशपरक फंडे के साथ। इस बार सलमान आम आदमी की खातिर गुंडों की तोड़ा ताड़ी कर रहे हैं। ऐसे गुंडे जिन्हें राजनैतिक संरक्षण मिला हुआ है। फिल्म में उनका नारा है -आम आदमी सोता हुआ शेर है। उंगली मत करो वरना सब चीर फाड़ देगा।उनका संदेश है - थैंक्यू मत बोलो। किन्हीं तीन लोगों की मदद करो। उन तीन लोगों से बोलो कि वे अगले तीन तीन लोगों की मदद करें। इससे जो चेन बनेगी वो करोड़ों लोगों की होगी। संदेशपरक होने के बावजूद फिल्म पूरी तरह कमर्शियल मसालों से भरी हुई है मगर इन मसालों से एसीडिटी नहीं होती। राहत मिलती है कि एक पूरी तरह मनोरंजक और इमोशनल फिल्म देखने को मिली। फिल्म की एक उल्लेखनीय बात यह है कि इसमें सलमान बहुत सारे गुम हो चुके कलाकारों को लाए हैं। यह एक तरह से उन गुम कलाकारों के करिअर का चमकदार अवतार है। सलमान की फिल्म आम तौर पर केवल सलमान की फिल्म होती है लेकिन जय होमें बहुत सारे लोगों को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिला है। फिल्म में नादिरा बब्बर, तब्बू, मुकुल देव, डैनी, रेशम टिपणिस, अश्मित पटेल, यश टोंक, सना खान, मोहनीश बहल, आदित्य पंचोली, शरद कपूर, नौहीद आदि को काम करता देख सलमान की उदारता और साथी भाव पर दुलार उमड़ता है। लेकिन भरपूर मौका मिलने के बावजूद सलमान के अपोजिट अभिनेत्री डेजी शाह ने खुद को प्रमाणित नहीं किया। दरअसल सलमान के अपोजिट कोई आक्रामक तेवरों वाली हीरोईन ही जंचती है। जैसे कैटरीना कैफ, करीना कपूर और सोनाक्षी सिन्हा आदि। सुनील शेट्टी आर्मी ऑफीसर के किरदार में अपनी छाप छोड़ते हैं तो ऑटो वाले के रूप में महेश मांजरेकर और क्रूर गृहमंत्री के किरदार में डैनी डेनजोंग्पा याद रह जाते हैं। फिल्म के तीन गाने सुपरहिट रहेंगे। इतनी मारधाड़ वाली फिल्म में गुजराती तड़के वाली कॉमेडी रिलीफलेकर आती है। सोहेल खान ने एक पल के लिए भी निर्देशन पर अपनी पकड़ ढीली नहीं पड़ने दी है। वर्ष की पहली सुंदर, सार्थक और मनोरंजक फिल्म। अवश्य देखें। 

निर्देशक: सोहेल खान
कलाकार: सलमान खान, तब्बू, डैनी, जेनेलिया डीसूजा, डेजी शाह, सुनील शेट्टी आदि। 

संगीत: साजिद-वाजिद

Monday, January 20, 2014

कर ले प्यार कर ले

फिल्म समीक्षा

कर ले प्यार कर ले

ऐसी पिक्चर का क्या करें

धीरेन्द्र अस्थाना

            बड़े फिल्म निर्माता की संतान होने का एक फायदा यह हो जाता है कि सिनेमा में संघर्ष आसान हो जाता है। लेकिन यह कतई जरूरी नहीं है कि बड़े अभिनेता, निर्माता या लेखक का बेटा भी वही बने जो उसका पिता है। समझदार लोग संतान मोह में नहीं फंसते। वह अपनी संतानों के लिए उनकी प्रतिभा, परिश्रम और व्यक्तित्व के अनुरूप उनके करिअर का चुनाव करते-करवाते हैं। लेकिन कुछ लोग संतान मोह में फंस कर संतान को अभिनेता या अभिनेत्री बनाने के लिए फिल्म लांच कर देते हैं। निर्माता सुनील दर्शन ने भी यही किया है। बेटे को लेकर एक एक्शन लव स्टोरी कर ले प्यार कर लेबना डाली। कुल फिल्म का हासिल शून्य है। फिल्म में अगर किसी के काम की तारीफ की जा सकती है तो हीरोईन की मां अमनदीप कौर और विलेन के बेटे अहम शर्मा की। एक-दो लोगों को छोड़ कर फिल्म के सभी कलाकार नये हैं लेकिन उन्होंने ठीक-ठाक काम करने की पूरी कोशिश की है। फिल्म के हीरो शिव दर्शन और हीरोईन हसलीन कौर के भीतर एक्टिंग मैटीरियलहै ही नहीं। जिम जा कर बॉडी बना लेने से एक्टर बन जाने वाले दिन अब लद गये। अब एक्टर बनने के लिए अभिनय का ज्ञान होना भी लाजिमी है। यह बात सुनील दर्शन के बेटे शिव दर्शन को समझनी होगी। बेहतर होगा कि वह कुछ समय का गैप लेकर अभिनय की बारीकियों को समझें। सलमान, शाहरुख, आमिर के अभिनय को गौर से देखें। और उसके बाद पूरी तैयारी से दूसरी पारी में उतरें। पहली पारी में तो दर्शकों ने उन्हें सिरे से नकार दिया है। फिल्म आलोचकों की नजर में ही नहीं बॉक्स ऑफिस पर भी औंधे मुंह गिर पड़ी है। गलती सुनील दर्शन की नहीं है। वह पैसा लगा सकते थे, लगाया लेकिन उनका चुनाव गड़बड़ा गया। उन्होंने निर्देशक भी ऐसा चुना जो फिल्म को संभाल ही नहीं पाया। पटकथा लेखकों ने केवल पटरहने दिया और कथाको नष्ट कर दिया। एक बेहद थकी हुई पटकथा में तो नसीरुद्दीन शाह जैसे कलाकार भी कोई करिश्मा नहीं कर सकते। यहां तो कलाकार भी नौसिखिये थे। नये खलनायक रूमी खान ने प्रख्यात खलनायक प्रकाश राज को कॉपी करने की काफी कोशिश की है मगर उनकी आवाज में वह दम नहीं है जिसके लिए प्रकाश राज जाने जाते हैं। फिल्म का जो उदास गाना बेहद पॉपुलर चल रहा है उसका फिल्मांकन बेहद अनर्गल है और गायिकी फटे बांस जैसी है। फिल्म देखने का एक भी कारण फिल्म में मौजूद नहीं है। बेहतर है कि इस हफ्ते के फिल्मी बजट की चाट खा लें। 

निर्देशक:          राजेश पांडे
कलाकार:         शिव दर्शन, हसलीन कौर, अहमद शर्मा, अमनदीप कौर, रूमी खान, महेश ठाकुर
सगीत:            रेयान अमीन, राशिद खान आदि।





Monday, January 13, 2014

डेढ़ इश्किया

फिल्म समीक्षा

लंपट ठगों का मोहब्बतनामा

डेढ़ इश्किया

धीरेन्द्र अस्थाना

अपने एक साक्षात्कार में नसीरुद्दीन शाह ने कहा है - डेढ़ इश्किया इश्किया से ज्यादा बेहतर फिल्म है। फिल्म देख कर निकले तो मानना पड़ा कि नसीर की बात में दम है। दोनों फिल्मों की कहानी अलग है। मगर डेढ़ इश्कियाको बड़े पर्दे पर उतारने का अंदाज निराला है। एक बात और रेखांकित कर दें कि अरशद वारसी के जिस किरदार को सबसे जुदा और बेमिसाल माना जाता है वह है सरकिट का किरदार, फिल्म मुन्ना भाई एमबीबीएस में। उसी कड़ी में डेढ़ इश्कियाका बब्बन भी खड़ा हुआ है। निर्देशक अभिषेक चौबे ने इस फिल्म में अरशद को एक अनूठे, दिलचस्प और जमीन से जुड़े चरित्र के तौर पर पेश किया है। बब्बन एक लंपट सर्वहारा है। मोहब्बत उसके भीतर एक जुनूनी इबादत भर देती है। वह ठग और बदमाश होने के बावजूद मोहब्बत के पवित्र आलोक से भर उठता है। चोरी उसका पेशा था तो हुमा कुरैशी उसका मकसद है। फिल्म में हुमा कुरैशी ने भी जान लगा दी है। इस अभिनेत्री ने बहुत जल्दी खुद को साबित कर दिया है। अब हम इसे भविष्य की उम्मीद के तमगे से नवाज सकते हैं। माधुरी दीक्षित और नसीर तो मंजे हुए, तपे हुए कलाकार हैं। यहां उनके अभिनय का एक नया ही आयाम देखने को मिलता है। यूं तो नसीर का चरित्र भी एक लंपट ठग का ही है लेकिन उनके किरदार को निर्देशक ने थोड़ी पाकीजगी और थोड़ी रूमानियत भी बख्शी है। वह चोर हैं लेकिन इस बार वह मोहब्बत में गिरफ्तार एक शायर के अवतार में हैं। जो बात शुरू में बतानी चाहिए थी वह अब बता रहे हैं कि यह फिल्म आम आदमी के लिए नहीं है। इस फिल्म को देखने के लिए दिमाग को घर पर छोड़ कर नहीं आना है बल्कि साथ लेकर आना है। यह मनोरंजक नहीं मेधावी फिल्म है जिसे ठीक से समझ कर ही इसका लुत्फ उठाया जा सकता है। 30 नवंबर 2007 को रिलीज माधुरी दीक्षित की फिल्म आजा नच लेको माधुरी की कमबैक फिल्म कहा गया था जो वह फ्लॉप होने के कारण सिद्ध नहीं हो सकी थी। लेकिन डेढ़ इश्कियाको हम पूरे विश्वास के साथ माधुरी की वापसी फिल्म कह सकते हैं। इस वापसी पर ठप्पा लगाने आ रही है उनकी एक और फिल्म गुलाब गैंगजिसमें माधुरी का एक अलग ही रूप नजर आने वाला है। डेढ़ इश्कियाढाई घंटे की फिल्म है। इसे बहुत आसानी से पूरे दो घंटे की किया जा सकता था। तब शायद यह आम पब्लिक को भी हजम हो जाती। चोरी, ठगी, मोहब्बत, प्रतिशोध, शायरी, एक्शन और मारधाड़ से भरपूर इस फिल्म में शायराना इश्क का चेप्टर कुछ ज्यादा लंबा हो गया है। इसे छोटा किया जा सकता था। फिल्म के अंत में इस फिल्म का सीक्वेल बनाने की गुंजाईश को खुला रखा गया है। पैसा वसूल तो माधुरी दीक्षित के डांस से ही हो जाता है। बाकी सब तो बोनस है। फिल्म का गीत-संगीत भी उम्दा और यादगार है। 

निर्देशक: अभिषेक चौबे
कलाकार: नसीरुद्दीन शाह, माधुरी दीक्षित, अरशद वारसी, हुमा कुरैशी, विजय राज
संगीत: विशाल भारद्वाज
गीत: गुलजार 



Monday, January 6, 2014

मिस्टर जो. बी. करवाल्हो

फिल्म समीक्षा

मिस्टर जो. बी. करवाल्हो

ऐसे भी तो संभव है बुरा सिनेमा

धीरेन्द्र अस्थाना

            थियेटर में घुसने से पहले यह अंदाजा तो था कि मिस्टर जो. बी. करवाल्होएक साधारण फिल्म होगी। लेकिन यह भरोसा भी था कि फिल्म में अरशद वारसी, सोहा अली खान, जावेद जाफरी, विजय राज, वीरेन्द्र सक्सेना और शक्ति कपूर जैसे जांचे-परखे अभिनेता काम कर रहे हैैं तो फिल्म का टाइमपास होना लाजिमी है। मगर यह क्या? इस भरोसे का तो कत्ल हो गया। यहां तो सारे कलाकार इस तरह बर्ताव कर रहे थे कि पैसे के लिए जो भी करवा लो। यह अंदाजा बिल्कुल नहीं था कि साल की शुरुआत में साल की सबसे बुरी फिल्म से पाला पड़ जाएगा। स्टार देने का नियम है इसलिए खराब फिल्म वाला एक स्टार दिया है वरना असल में तो यह एक स्टारलेस मूवी है जिसने खराब फिल्म का वर्ल्ड रिकॉर्ड अपने नाम पर कर लिया है। फिल्म देखने के बाद यह पड़ताल जरूरी थी कि क्यों बॉलीवुड में अनुराग कश्यप की अदभुत फिल्म ब्लैक फ्रायडेको पूरे आठ साल तक प्रोड्यूसर और थियेटर नहीं मिले और क्यों इस फिल्म को देश भर में इतने सारे थियेटर मिल गये? पता चला, मामला इमोशनल अत्याचार का है। फिल्म के प्रोड्यूसर भोलाराम मालवीय अमिनेता अरशद वारसी के लंबे समय से सेक्रेट्री हैं। अब सेक्रेट्री निर्माता बनेगा तो रिश्ते के इमोशन में फंसना ही होगा न। बेचारे अरशद वारसी भी हो गये इमोशनल अत्याचार के शिकार। इन्हीं अरशद वारसी की अगले शुक्रवार डेढ़ इश्कियाजैसी अजब-गजब फिल्म प्रदर्शित होने जा रही है। अनुमान लगाया जा सकता है कि फिल्म के बाकी कलाकारों ने भी किसी न किसी इमोशनल ब्लैकमेल के तहत फिल्म की होगी। वरना यूं ही कोई घटिया सिनेमा में नहीं उतर जाता। फिल्म देखने का कोई कारण नहीं है इसलिए इस हफ्ते की फिल्म के टिकट के पैसों का खाने-पीने में सदुपयोग कर लें तो ज्यादा बेहतर होगा। रिवाज है इसलिए कुछ तो फिल्म के बारे में भी बताना ही होगा। फिल्म को कॉमेडी जोनर की बताया गया है मगर यह ऐसी कॉमेडी है जिस पर रोना ही आ सकता है। अरशद वारसी एक प्राइवेट जासूस है जिसे घर से भागी, एक अमीर सौतेले बाप की बेटी का प्रेम विवाह रुकवाने का महंगी फीस वाला केस मिलता है। जावेद जाफरी एक इंटरनेशनल हत्यारा है जिसे पकड़ने के लिए सोहा अली खान को तैनात किया जाता है। सोहा एक पुलिस अधिकारी है जो बचपन से अरशद से प्यार करती आयी है मगर अरशद को ही इंटरनेशनल किलर समझ उससे नफरत करने लगी है। परंपरा के अनुसार फिल्म की हैप्पी एंडिंग हो जाती है और खलनायक नदारद हो जाते हैं।
निर्देशक:      समीर तिवारी
कलाकार:     अरशद वारसी, जावेद जाफरी, सोहा अली खान, विजय राज, शक्ति कपूर, वीरेन्द्र सक्सेना

संगीत:             अमर्त्य राहत 

Monday, December 23, 2013

धूम 3

फिल्म समीक्षा

धूम मचाने आयी धूम 3‘ ****

धीरेन्द्र अस्थाना

            यह आमिर खान की फिल्म है। और जिस फिल्म में आमिर खान हों वह केवल आमिर खान की ही फिल्म होती है। यूं तो धूम 3‘ में अभिषेक बच्चन, उदय चोपड़ा, कैटरीना कैफ और जैकी श्रॉफ ने भी बेहतरीन अदाकारी की है मगर सब के सब हाशिए पर चले गये हैं क्योंकि विलेन होने के बावजूद पूरी फिल्म में आमिर खान ही दर्शकों को अपनी तरफ एकाग्र किए रखते हैं। धूम 3‘ में कैटरीना कैफ अपने सिनेमाई करिअर के सबसे ग्लैमरस रोल में हैं और जैकी श्रॉफ ने पांच मिनट के अपने रोल में भी दर्शकों के भीतर तीव्र संवेदना जगाने में सफलता पायी है। जैकी शिकागो में द ग्रेट इंडियन सर्कसचलाते हैं। वह वेस्टर्न बैंक ऑफ शिकागो के कर्जदार हैं। बैंक उनका कर्ज माफ नहीं करता जिसके चलते वह खुद को गोली मार कर खत्म कर लेते हैं। उनके दो छोटे बेटे हैं समर और साहिर। ये दोनों कालांतर में आमिर खान के डबल रोल में आते हैं। लेकिन डबल रोल वाला सीक्रेट इंटरवल के बाद उजागर होता है। इस बार की धूमबदले की कार्रवाई पर आधारित है लेकिन यह बदला व्यक्ति से नहीं वेस्टर्न बैंक ऑफ शिकागो से लिया जा रहा है जिसने जैकी श्रॉफ को आत्महत्या करने पर मजबूर किया था। आमिर खान एक तरफ साहिर वाले किरदार में अपने पिता के सर्कस को फिर से स्थापित करने के संघर्ष में हैं दूसरी तरफ वह वेस्टर्न बैंक की शाखाओं में एक एक करके डकैती डाल रहे हैं और बैंक की इमारत तथा फर्नीचर को तबाह भी कर रहे हैं। आमिर का चरित्र एक सुपर डकैत, अदभुत तकनीशियन और जांबाज बाईकर का है। बैंक लूटने के बाद वह अपनी बाइक पर बैठ छू मंतर हो जाते हैं। इंटरवल तक फिल्म को दर्शक सांस रोक कर देखते हैं। लेकिन इंटरवल के बाद निर्देशक की पकड़ फिल्म के ऊपर से क्रमशः छूटने लगती है। फिल्म तीन घंटे लंबी हो गई है। जबकि कई प्रसंगों को छोटा किया जा सकता था। फिर भी थ्रिलर फिल्मों के इतिहास में धूम 3‘ एक नया अध्याय जोड़ती है। सर्कस के नायाब और हैरतअंगेज करतब दिखाने के लिए साहिर हमेशा दर्शकों के सामने रहता है जबकि समर पर्दे के पीछे, गुमनाम। साहिर को पकड़ने के लिए मुंबई पुलिस का खतरनाक अधिकारी अभिषेक बच्चन और उसका सहयोगी उदय चोपड़ा शिकागो पहुंचते हैं। उदय चोपड़ा का रोल कॉमिक है जिसे उन्होंने बेहद स्तरीयता और नफासत से अंजाम दिया है। इन तीनों ने पूरी फिल्म में बाइक चलाने के अपने अंदाज से दर्शकों के दिलों को छुआ है। आमिर की बाइक तो तकनीकी क्रांति का अदभुत नमूना है। फिल्म के लगभग अंत में आमिर खान बैंक की चौथी और सबसे बड़ी शाखा में डकैती डालते हैं और उसे बम से उड़ा देते हैं। अभिषेक बच्चन शिकागो पुलिस के सहयोग से नदी पर बने एक संकरे पुल पर दोनों आमिर भाइयों को घेरने में सफल हो जाते हैं। इसके बाद क्या, यह फिल्म में जाकर देखें। बैंक तबाह हो कर बंद हो जाता है। आमिर का बदला पूरा होता है। अनिवार्य रूप से देखने लायक फिल्म। गीत-संगीत-कथा-पटकथा-एक्शन-डांस-अभिनय-सस्पेंस हर मोर्चे पर साल की सबसे परफेक्ट फिल्म।

निर्देशक:          विजय कृष्ण आचार्य 
कलाकार:         आमिर खान, अभिषेक बच्चन, उदय चोपड़ा, कैटरीना कैफ, जैकी श्रॉफ
संगीत:              प्रीतम चक्रवर्ती



*बेकार  **साधारण ***अच्छी  ****बहुत अच्छी *****अद्वितीय 


Tuesday, December 17, 2013

जैकपॉट

 फिल्म समीक्षा 

झोल का ‘जैकपॉट‘ 

धीरेन्द्र अस्थाना


कैजाद गुस्ताद की फिल्म ‘जैकपॉट‘ कुछ अचरजों का पिटारा है। अचरज नंबर एक - ऐसी फिल्मों को फाइनेंसर और वितरक कैसे मिल जाते हैं जबकि अनेक महान फिल्में रिलीज का मुंह बमुकश्किल देख पाती हैं। अचरज नंबर दो - नसीरुद्दीन शाह जैसा महान अभिनेता ऐसी फिल्मों का हिस्सा क्यों बन जाता है जो दर्शकों के साथ झोल करती हैं। अचरज नंबर तीन - फिल्म के तीन या चार गानों के लिए दस संगीतकार, दस गायक और आठ गीतकार क्या कर रहे हैं? वह भी ऐसे गाने जो याद नहीं रह पाते। नसीर इस खराब फिल्म का हिस्सा हैं लेकिन नसीर के अभिनय की वजह से ही यह फिल्म देखी भी जा सकती है। कैजाद की यह विशेषता तो रेखांकित करनी पड़ेगी कि उन्होंने नसीर को उनके अब तक के करियर का सबसे अनूठा लुक दिया है। फिल्म की सबसे बड़ी कमी उसकी मेकिंग है। फिल्म बहुत जल्दी जल्दी बहुत सारे फ्लैश बैक में से वर्तमान में आती जाती है। इससे दर्शक कन्फ्यूज हो जाता है। कहानी की डोर दर्शक के हाथ से बार बार छूट जाती है। मुख्यतः यह फिल्म कुछ ठगों की अजीबोगरीब दास्तान का सिनेमाई अवतार है। नसीरुद्दीन शाह गोवा के जैकपॉट नामक कसीनो का मालिक है। उसे सचिन जोशी, जो खुद को ‘ठग कलाकार‘ मानता है, एक आईडिया देता है। आईडिया यह कि कसीनो में जुए की एक बड़ी प्रतियोगिता रखते हैं जिसमें प्रथम विजेता को पांच करोड़ रुपये का ईनाम दिया जाएगा। इस प्रतियोेगिता को सचिन का ही कार्ड प्लेयर दोस्त जालसाजी से जीत लेगा। कसीनो में मौजूद ग्राहकों के सामने दोस्त को पांच करोड़ का ब्रीफकेस दिया जाएगा जिसे सचिन डकैत की शक्ल में आकर छीन ले जाएगा। इस डकैती की एफआईआर लिखाने के बाद इंश्योरेंस कंपनी से पांच करोड़ का क्लेम वसूला जाएगा। सचिन एक आइडिया और देता है। उसके अंकल की दो सौ पचास एकड़ की एक जमीन केवल दो सौ पचास करोड़ में खरीद कर उसे दस गुना ज्यादा दामों में बेच देंगे। इसके लिए विदेशी इन्वेस्टरों को डिज्नीलैंड बनाने का ऑफर दिया जाएगा। इन्वेस्टमेंट नसीर करेंगे। प्रॉफिट में सचिन और उनके दोस्तों का हिस्सा तीस प्रतिशत होगा। बाकी सत्तर प्रतिशत नसीर का। नसीर झांसे में आ जाते हैं। बहुत सारी घटनाओं और नकली हत्याओं के बाद पता चलता है कि सचिन ने नसीर के साथ बहुत बड़ा झोल कर दिया है। फिल्म के अंत में नसीरुद्दीन शाह पानी में डूब कर मारे जाते हैं और सचिन तथा उनका गैंग ठगी से कमाए गये पैसों का समान वितरण कर मजे करता है। इसमें नकली मुख्यमंत्री, नकली अंकल और नकली पुलिस इंस्पेक्टर के अलावा और भी ढेरों नकली किरदार हैं। फिल्म को देखने का कोई भी कारण फिल्म में मौजूद नहीं है।
निर्देशक: कैजाद गुस्ताद
कलाकार: नसीरुद्दीन शाह, सचिन जोशी, सनी लियोनी, मकरंद देशपांडे, भरत निवास
संगीत: शरीब शाबरी, तोशी शाबरी समेत दस संगीतकार