Monday, January 13, 2014

डेढ़ इश्किया

फिल्म समीक्षा

लंपट ठगों का मोहब्बतनामा

डेढ़ इश्किया

धीरेन्द्र अस्थाना

अपने एक साक्षात्कार में नसीरुद्दीन शाह ने कहा है - डेढ़ इश्किया इश्किया से ज्यादा बेहतर फिल्म है। फिल्म देख कर निकले तो मानना पड़ा कि नसीर की बात में दम है। दोनों फिल्मों की कहानी अलग है। मगर डेढ़ इश्कियाको बड़े पर्दे पर उतारने का अंदाज निराला है। एक बात और रेखांकित कर दें कि अरशद वारसी के जिस किरदार को सबसे जुदा और बेमिसाल माना जाता है वह है सरकिट का किरदार, फिल्म मुन्ना भाई एमबीबीएस में। उसी कड़ी में डेढ़ इश्कियाका बब्बन भी खड़ा हुआ है। निर्देशक अभिषेक चौबे ने इस फिल्म में अरशद को एक अनूठे, दिलचस्प और जमीन से जुड़े चरित्र के तौर पर पेश किया है। बब्बन एक लंपट सर्वहारा है। मोहब्बत उसके भीतर एक जुनूनी इबादत भर देती है। वह ठग और बदमाश होने के बावजूद मोहब्बत के पवित्र आलोक से भर उठता है। चोरी उसका पेशा था तो हुमा कुरैशी उसका मकसद है। फिल्म में हुमा कुरैशी ने भी जान लगा दी है। इस अभिनेत्री ने बहुत जल्दी खुद को साबित कर दिया है। अब हम इसे भविष्य की उम्मीद के तमगे से नवाज सकते हैं। माधुरी दीक्षित और नसीर तो मंजे हुए, तपे हुए कलाकार हैं। यहां उनके अभिनय का एक नया ही आयाम देखने को मिलता है। यूं तो नसीर का चरित्र भी एक लंपट ठग का ही है लेकिन उनके किरदार को निर्देशक ने थोड़ी पाकीजगी और थोड़ी रूमानियत भी बख्शी है। वह चोर हैं लेकिन इस बार वह मोहब्बत में गिरफ्तार एक शायर के अवतार में हैं। जो बात शुरू में बतानी चाहिए थी वह अब बता रहे हैं कि यह फिल्म आम आदमी के लिए नहीं है। इस फिल्म को देखने के लिए दिमाग को घर पर छोड़ कर नहीं आना है बल्कि साथ लेकर आना है। यह मनोरंजक नहीं मेधावी फिल्म है जिसे ठीक से समझ कर ही इसका लुत्फ उठाया जा सकता है। 30 नवंबर 2007 को रिलीज माधुरी दीक्षित की फिल्म आजा नच लेको माधुरी की कमबैक फिल्म कहा गया था जो वह फ्लॉप होने के कारण सिद्ध नहीं हो सकी थी। लेकिन डेढ़ इश्कियाको हम पूरे विश्वास के साथ माधुरी की वापसी फिल्म कह सकते हैं। इस वापसी पर ठप्पा लगाने आ रही है उनकी एक और फिल्म गुलाब गैंगजिसमें माधुरी का एक अलग ही रूप नजर आने वाला है। डेढ़ इश्कियाढाई घंटे की फिल्म है। इसे बहुत आसानी से पूरे दो घंटे की किया जा सकता था। तब शायद यह आम पब्लिक को भी हजम हो जाती। चोरी, ठगी, मोहब्बत, प्रतिशोध, शायरी, एक्शन और मारधाड़ से भरपूर इस फिल्म में शायराना इश्क का चेप्टर कुछ ज्यादा लंबा हो गया है। इसे छोटा किया जा सकता था। फिल्म के अंत में इस फिल्म का सीक्वेल बनाने की गुंजाईश को खुला रखा गया है। पैसा वसूल तो माधुरी दीक्षित के डांस से ही हो जाता है। बाकी सब तो बोनस है। फिल्म का गीत-संगीत भी उम्दा और यादगार है। 

निर्देशक: अभिषेक चौबे
कलाकार: नसीरुद्दीन शाह, माधुरी दीक्षित, अरशद वारसी, हुमा कुरैशी, विजय राज
संगीत: विशाल भारद्वाज
गीत: गुलजार 



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