Monday, February 3, 2014

वन बाई टू

फिल्म समीक्षा

दो दुखों की एक नाव: वन बाई टू

धीरेन्द्र अस्थाना

एक फिल्म में दो, तीन, चार, दस कहानियां पहले भी आ चुकी हैं। उनमें से कुछ बहुत अच्छी फिल्में भी साबित हुईं। जैसे दस कहानियां, मेट्रो, रांझना आदि। लेकिन इस दृष्टि से वन बाई टूथोड़ा निराश करती है। यह दो दुखों की एक नाव तो बनती है लेकिन हिचकोले खाने वाली डगमग नाव। एक लीक से हटकर कलात्मक फिल्म बनाने का यह अर्थ नहीं है कि निर्देशक दर्शकों की तरफ पीठ फेर कर फिल्म बनाये। आप दर्शक की अनदेखी करेंगे तो दर्शक फिल्म को ठुकरा देगा। यही कारण है कि एक तो फिल्म को बहुत कम शो हासिल हुए और जितने भी हुए उनमें दर्शकों की संख्या बस खाने में नमक के बराबर ही थी। इतनी भी जटिल और अबूझ फिल्म बनाने का क्या मतलब है कि दर्शक सोचता ही रह जाए कि यह पर्दे पर चल क्या रहा है। पूरी फिल्म में एक-दो नहीं ऐसी सात आठ घटनाएं हैं जिनका कोई सिर-पैर ही नहीं है। इंटरवल तक तो फिल्म पकड़ में ही नहीं आती। इंटरवल के बाद तब थोड़ी राहत मिलती है जब अहसास होता है कि चलो फिल्म पटरी पर तो आई। उससे पहले तो बिना कोई राह पकड़े जिस तिस दिशा में फिल्म ऐसे आती जाती है कि सिर घूमने लगता है। कला के नाम पर पैसों के साथ ऐसे क्रूर मजाक नहीं किए जाने चाहिए। सिनेमा में अभय देओल ने अपना एक अलग रास्ता पकड़ कर एक अलग इमेज बनायी है। लेकिन इस तरह की फिल्में अगर उन्होंने जारी रखीं तो शायद उनका नसीब उनके लिए गुमनामी बुन देगा। इस फिल्म में उनका अभिनय भी उनके किरदार की तरह बोरिंग और अझेल है।
फिल्म में अभय देओल और प्रीति देसाई की दो अलग कहानियां एक साथ खुलती हैं लेकिन यह तथ्य दर्शकों के सामने इंटरवल के बाद खुलता है। दो घंटे उन्नीस मिनट की फिल्म के तीस मिनट केवल डांस वारनामक रियलिटी शो में बीत जाते हैं। अभय देओल को उसकी प्रेमिका ने छोड़ दिया है और प्रीति देसाई को उसके पिता ने। पिता ने दरअसल अपनी पत्नी को छोड़ा था और प्रीति ने पिता के बजाए मां के साथ रहने को प्राथमिकता दी। इन दोनों अलगावों के कारणों को न जस्टीफाई किया गया न ही स्थापित। प्रेमिका के बिछोह के कारण अभय देओल का जीवन असंतुलित और असहज हो गया है लेकिन जब प्रेमिका उसके जीवन में फिर से लौटने की पेशकश करती है तो अभय इस प्रस्ताव को ठुकरा देता है। दूसरी तरफ प्रीति के जीवन में उसका लंदन निवासी पिता वापस लौटता है और उसे लंदन में डांस अकेडमी खोलने का प्रस्ताव देता है। प्रीति यह प्रस्ताव ठुकरा देती है क्योंकि उसे मां को नहीं छोड़ना है। मां दिन-रात शराब पीकर पड़ी रहती है। प्रीति डांस शो में विनर के पायदान तक पहुंचती है लेकिन इस घोषणा से पहले कार्यक्रम से गायब हो जाती है। इसका भी कोई कारण नहीं दिखाया गया है। फिल्म के अंत में एक भद्दे और बेहूदे टॉयलेट सीन के बाद प्रीति अभय को अपनी मां से मिलवाती है और स्क्रीन पर टाइटल उभरने लगते हैं। दी एंड।

निर्देशक:     देविका भगत
कलाकार:     अभय देओल, प्रीति देसाई, रति अग्निहोत्री, दर्शन जरीवाला, स्मिता जयकर
संगीत:       शंकर-अहसान-लॉय



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