Wednesday, February 11, 2015

हवाईजादा

फिल्म समीक्षा
जिद और जुनून की उड़ान : हवाईजादा 
धीरेन्द्र अस्थाना
आज के दौर में जब डबल मीनिंग वाले नहीं सिंगल मीनिंग वाले अश्लील संवादों को सेंसर पास कर रहा हो, हवाईजादा जैसी फिल्म बनाना जुनून ही तो है। न मारधाड़, न सेक्स, न आईटम सांग, न गालियां। दर्शक क्यूं आते? एक संजीदा और मकसद के लिए बनी फिल्म का बैंड बज गया। कुल जमा पच्चसी तीस दर्शक जबकि इसी के साथ रिलीज खामोशियां पर दर्शक जुट रहे थे। वह एडल्ट फिल्म है। सन 1895 के गुलाम भारत के समय में खड़ी बहुत धीमी गति वाली हवाईजादा को इस मकसद से बनाया गया है कि आज के दर्शक यह जान सकें कि राइट बंधुओं के हवाईजहाज उड़ाने से आठ साल पहले मुंबई के एक युवक तलपदे ने दुनियां का पहला जहाज बना कर उसमें उड़ान भरी थी। जबकि पहली हवाई उड़ान का श्रेय विदेश के राइट बंधुओं के नाम दर्ज है। इतने रूखे, वैज्ञानिक विषय में रोचकता भरने के लिए निर्देशक ने उसमें एक प्रेम कहानी भी डाली है और कुछ गाने भी रखे हैं। फिल्म अपने मकसद के कारण अच्छी है लेकिन उसका इंटरवल से पहले वाला हिस्सा इतना स्लो हो गया है कि बोरियत की हद को छू लेता है। सन 1895 का समय, संस्कृति और परिवेश की रचना भी निर्देशक की परिकल्पना का कमाल है। जाहिर है तब का मुंबई दर्शाने के लिए सेट ही खड़ा किया गया होगा। आयुष्मान खुराना की एक और महत्वपूर्ण फिल्म। बतौर एक्टर उन्होंने जादू रच दिया है। लेकिन उनके कुछ कॉमिक सीन में साफ पकड़ में आता है कि वह राजकपूर को अपने अभिनय में उतार रहे हैं। दो ही लोगों की फिल्म है। मिथुन चक्रवर्ती और आयुष्मान खुराना की। गुरू के बाद इस फिल्म में मिथुन ने फिर से यादगार अभिनय किया है। विमान बनाने की परिकल्पना उन्हीं की है। अपने इस सपने को आयुष्मान की आंखों में रोप कर वह विदा लेते हैं। इस सपने को आयुष्मान जिद और जुनून की तरह अपने भीतर बसा लेता है। अंग्रेज सिपहसालारों के विरोध के बावजूद वह इस सपने को उड़ान के पंख देता है और बंबई की जनता देखती है कि गुलाम भारत का पहला आजाद नागरिक उड़ रहा है। आयुष्मान के बनाये हवाईजहाज में आयुष्मान और उसकी प्रेमिका पल्लवी शारदा के उड़ने के सीन पर फिल्म समाप्त हो जाती है। इसे अनिश्चित रखा गया है कि जहाज सफलता पूर्वक जमीन पर उतर सका या हवा में ही नष्ट हो गया। क्योंकि आयुष्मान को सिर्फ हवाईजहाज उड़ाने का हुनर पता था। उसे रोकने, मोड़ने या उतारने के ज्ञान से वह वंचित था। पल्लवी शारदा के पास करने को कुछ खास नहीं था तो भी कुछ सीन में अपने खामोश इमोशन से वह प्रभावित करती है। वह थियेटर करती है  और तब थियेटर में काम करने वाली कलाकार को नाचने वाली बाई कहा जाता था जिसका दर्जा वेश्या के समान माना जाता था। इस वेश्या को अपने जीवन में संगिनी का दर्जा दे कर आयुष्मान सामाजिक क्रांति का भी उदघोष करता है। कभी कभार ऐसी फिल्में देखलेने में कोई हर्ज नहीं है जो आपके सामान्य ज्ञान में इजाफा करती हों।

निर्देशक : विभू विरेन्द्रपुरी
कलाकारः आयुष्मान खुराना, पल्लवी शारदा, मिथुन चक्रवर्ती
संगीत : रोचक कोहली, विशाल भारद्वाज




Monday, January 26, 2015

बेबी

फिल्म समीक्षा
गहरी और अर्थपूर्ण: बेबी 
धीरेन्द्र अस्थाना

मुख्यधारा सिनेमा में काम करने की एक अजीब सी टेªजेडी यह है कि आतंकवाद जैसे गंभीर विषय पर फिल्म बनाते हुए भी निर्माता निर्देशक चटपटे मसालों से बच नहीं पाते। निर्देशक नीरज पांडे बाजार में बैठ कर भी बाजारू होने से बचे हुए हैं इसके लिए उन्हें दाद मिलनी चाहिए। उनकी नयी फिल्म भी मसालों से पूरी तरह दूर है। बेबी को उन्होंने अपनी परिकल्पना, सूझबूझ और मंशा के चलते आतकंवाद के खिलाफ एक सार्थक हस्तक्षेप के रूप में ढाल दिया है। यह फिल्म मनोरंजन से बहुत उपर उठकर अंधकार के विरूद्ध प्रकाश की लड़ाई में बदल जाती है। सिनेमा के आम दर्शकों को फिल्म निराश कर सकती है क्योंकि इसमें चालू फिल्मों की तरह हीरोपंती, मारधाड़, आइटम सांग, डबल  मीनिंग वाले डायलॉग वगैरह नहीं हैं। लेकिन सार्थक और गहरी फिल्मों के कद्रदानों के लिए बेबी 2015 का बेहतरीन तोहफा है। शायद इसीलिए हिंदी सिनेमा के अनेक सफल और स्थापित एक्टरों ने इस फिल्म में छोटे छोटे रोल करना स्वीकार किया है। असल में पूरी फिल्म ही अक्षय कुमार के कंधों और चरित्र पर टिकी हुई है। बाकी तमाम कलाकारों को फिल्म के सपोर्टिव एक्टर कहा जा सकता है जो फिल्म को गति देने का काम करते हैं। फिल्म में ईशा गुप्ता का एक आइटम सांग भी है लेकिन जब उसकी बारी आती है तब तक दर्शक थियेटर से निकल रहे होते हैं और पर्दे पर नामावली चल रही होती है। इसलिए उसके होने का भी कोई मतलब नहीं हर जाता है। मधुरिमा तुली कोई बहुत जाना पहचाना नाम नहीं है और उसके करने के लिए भी फिल्म में कुछ खास नहीं था तो भी अक्षय की पत्नी के रोल में वह याद रह जाती है। ऐसी पत्नी जिसे यह भी नहीं पता कि उसका पति करता क्या है और हर समय गायब क्यूं रहता है। वह अक्षय को जब भी फोन करती है बस एक डायलॉग बोलती है: मरना मत। यह निवेदन दर्शकों के अंतःकरण को स्पर्श करता है। फिल्म की हीरोइन साउथ की स्टार तापसी पन्नु है जो फिल्म में अक्षय के साथ होते हुए भी उनका लव इंटरेस्ट नहीं है। वह खुद एक खुफिया अधिकारी हैं जो एक खास मिशन मंे अक्षय को सपोर्ट करती हैं। अपने एक्शन सीन्स में वह प्रभावित करती हैं। बेबी किसी लड़की का नहीं एक मिशन का नाम है जिसे अक्षय कुमार लीड करता है। इस टीम में भारत के बारह खुफिया ऐजेंट होते हैं जिनमें अलग अलग मिशन को अन्जाम देने के दौरान आठ शहीद हो जाते हैं। बचते हैं केवल चार: अक्षय कुमार, अनुपम खेर, तापसी पन्नु और राणा दग्गूबत्ती। के. के. मेनन और सुशांत सिंह जैसे समर्थ अभिनेता छोटे छोटे रोल में आतंकवादी बने हैं। लेकिन दोनों ही अपनी मौजूदगी को प्रभावशाली बना सके हैं। के. के. जैसे एक्टर के खाते में तो एक भी संवाद नहीं आया तो भी वह अपनी बॉडी लैंग्वेज से कमाल रच देते हैं। डैनी डैगंजोग्पा मुंबई एटीएस की चीफ हैं और अपनी भंगीमाओं से फिल्म को विस्तार देते हैं। सबसे अंत में हम अक्षय कुमार को याद करेंगे जिन्होंने बता दिया है कि वह केवल एक्शन या कॉमिक फिल्मों के ही बादशाह नहीं हैं बल्कि अर्थपूर्ण और गहरी फिल्मों को भी अपने दमदार अभिनय से नयी उचांईयां दिला सकते हैं। एक बेहतरीन और कसी हुयी सार्थक फिल्म है। दिमाग को साथ लेकर देखने जाइए।

निर्देशक: नीरज पांडे 
कलाकारः अक्षय कुमार, तापसी पन्नु, अनुपम खेर, के के मेनन, राणा दग्गूबत्ती, मधुरिमा तुली, सुशांत सिंह
संगीत: मीत ब्रदर्स, अनजान 





Monday, January 19, 2015

अलोन


फिल्म समीक्षा
अजब भूत की भ्रमित दास्तान: अलोन 
धीरेन्द्र अस्थाना
जब हम अपने बचपन के दिनों में रहते थे तब कोहरा, महल, बीस साल बाद, वह कौन थी, गुमनाम जैसी रहस्यमय और रोमांचक फिल्में देखा करते थे। ये फिल्में अपनी रोचकता के कारण हिट भी होती थीं। इन सब फिल्मों का एक कॉमन, प्रगतिशील तथ्य यह होता था कि आत्मा की चहलकदमी मानव निर्मित साजिश सिद्ध हो जाती थी। यह छठे सातवें दशक का सिनेमाई यर्थाथ था। वक्त बदला। हम कंप्यूटर युग में उतरे मगर सिनेमा इस मोर्चे पर पिछड़ गया। उसने डर का कारोबार करते करते आत्मा या भूत को सही साबित कर दिया। डर के इस व्यापार को राम गोपाल वर्मा ने अपनी फिल्म भूत से उंचाई पर पहंुचाया और इसके बाद तो भूतों को लेकर उटपटांग फिल्मों का सिलसिला ही चल निकला। अलोन इसी सिलसिले की नयी कडी है जो दर्शकों को डराने के बजाय बेजार और बोर करती है। एक समय था जब बिपाशा बसु की गिनती बॉलीवुड की टॉप टेन अभिनेत्रियों में होने लगी थी लेकिन उन्होंने जिस तरह की थकी और बेतुकी फिल्मों का चुनाव किया उसके चलते उन्हें अलोन जैसी ढीली ढाली और कमजोर फिल्मों का हिस्सा बनना पड़ रहा है। इस फिल्म में वह डबल रोल में हैं। अंजना और संजना नाम की दो जुडवां बहने अपनी किशोर उम्र में करण सिंह से प्यार करती हैं। करण संजना से प्यार करता है जबकि अंजना करण से। करण दस साल बाद लंदन से लौट रहा है। करण को रिसीव करने के लिए संजना एयरपोर्ट जाना चाहती है जबकि अंजना इसमें बाधक बन रही है। संजना अंजना को मार देती है और सर्जरी के जरिए अपना बदन अंजना से अलग कर लेती है। अंजना की लाश घर के आउट हाउस में गाड़ दी जाती है। संजना का विवाह करण के साथ हो जाता है। दोनों मुंबई में रहते हैं जबकि संजना का मायका केरल में है। मां बीमार पड़ती है और संजना तथा करण को वापस केरल जाना पड़ता है जहां से संजना भाग कर आयी थी क्योंकि वहां अंजना की ढेर सारी यादें है। केरल प्रवास में संजना के पीछे अंजना की आत्मा पड़ जाती है। आवाजों और दृश्यों से निर्देशक ने दर्शकों को डराने की बहुत कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो पाये। दर्शक डर के दृश्यों में हंस रहे थे। फिर अंजना का भूत संजना के जिस्म में प्रवेश कर जाता है और करण के साथ अपनी हवस को शांत करता है। करण समझता है कि यह उसकी बीबी संजना है जबकि होती वह अंजना है। फिर एक तांत्रिक संजना के जिस्म से अंजना का भूत तो उतार देेता है लेकिन उस भूत को नष्ट नहीं कर पाता। फिल्म के अंत में जब इस भूत को नष्ट कर दिया जाता है तब यह रहस्योद्घाटन होता है कि संजना ने अंजना को नहीं बल्कि अंजना ने संजना को मारा था और संजना बन कर करण से विवाह किया था। करण अंजना के साथ रहने से मना कर देता है क्योंकि उसने तो संजना से प्यार किया था। अंजना करण को मारने के लिए चाकू निकाल लेेती है। संजना की आत्मा अंजना को आग में जला देती है और करण को बचा लेती है। यह सवाल अनुत्तरित है कि अगर अंजना जिंदा रह गयी थी तो बुरे काम क्या संजना जैसी अच्छी आत्मा कर रही थी? फिल्म देखनी है या नहीं यह दर्शकों के अपने विवके पर है।

निर्देशक: भूषण पटेल
कलाकारः करण सिंह ग्रोवर, बिपाशा बसु, जाकिर हुसैन
संगीत: अंकित तिवारी, जीत गांगुली




तेवर

फिल्म समीक्षा
मसालों का फ्लेवर: तेवर
धीरेन्द्र अस्थाना
आखिर अर्जुन कपूर जैसा संभावनाशील और प्रतिभाशाली एक्टर भी कमर्शियल सिनेमा के दुश्चक्र में फंस ही गया। बिना मसालों वाली लीक से हट कर बनी बीसियों फिल्में हिट हो चुकी हैं, हिट हो रही हैं तो भी निर्माता निर्देशक बार बार महाशियां दी हट्टी, एमडीएच मसाले में घुस जाते हैं। मसालों के फ्लेवर के बावजूद बहुत चलने वाली फिल्म नहीं है तेवर। इसे सिर्फ कुछ लोगों के उम्दा काम की वजह से देखा जा सकता है या फिर इसके गानों की वजह से जो पहले से ही सुपर हिट की केटेगरी में शामिल हो चुके हैं। सोनाक्षी सिन्हा लगातार सिढ़ियां चढ़ रही हैं और हर तरह के किरदार में अपनी छाप छोड़ रही है। अर्जुुन इस फिल्म से पूरी तरह सलमान खान के नक्शे कदम पर चल पड़े हैं। उन्हें डायलॉग भी उसी तरह के दिये गये हैं जैसे डायलॉग बोल कर सिनेमा हॉल में सलमान खान तालियां बटोरा करते हैं। एक्टिंग और लोकेशन केे मोर्चे पर इस फिल्म की यूएसपी हैं अभिनेता मनोज बाजपेयी और आगरा मथुरा की गलियां। मनोज बाजपेयी के लेफ्ट हेंड बने अभिनेता सुब्रत दत्ता के रूप में बॉलीवुड को एक नये तेवर वाला खलनायक मिला है। उसने किसी स्थापित एक्टर की नकल करने के बजाय अपना खुद का अंदाज विकसित किया है। लेकिन आने वाली फिल्मों में उसे सोनू सूद और प्रकाश राज जैसे स्वतंत्र खलनायकों वाले किरदारों को प्राथमिकता देनी चाहिए ना कि खलनायक के सहायक की भूमिका। मथुरा के वहशी गुंडे के किरदार में मनोेज बाजपेयी ने पूरी फिल्म में समां बांध दिया है। सत्या के बाद उनकी तेवर को दर्ज किया जाएगा। सेंसर बोर्ड आजकल काफी उदार हो गया लगता है। एकदम अश्लील संवादों को धडल्ले से ओके कर रहा है। फिल्म कुल मिला कर गुंडागर्दी और मोहब्बत का कॉकटेल है। अर्जुन कपूर आगरा का बिंदास और तेवर वाला लड़का है जो कहीं भी कुछ गलत होते देख उससे भिड़ जाता है। फिर चाहे उसका नतीजा कुछ भी हो। हालांकि वह आगरा के एसपी राजबब्बर का बेटा है लेकिन उसके अंदाज टपोरियों जैसे ही हैं। सोनाक्षी मथुरा की मिडिल क्लास फैमिली से है। उसे डांस वगैरह बहुत पसंद है। ऐसे ही एक डांस के कार्यक्रम में मथुरा का बाहुबली मनोेेेेेेेेेेेेेेेेज बाजपेयी उस पर फिदा हो जाता है और उससे शादी का निवेदन तक कर आता है। सोनक्षी का भाई टीवी रिपोर्टर इस शादी में बाधा खड़ी करता है तो मनोज उसकी हत्या कर देता है। सोनक्षी मथुरा छोड़ दिल्ली भाग रही होती है और वहां से अमेरिका लेकिन तभी स्टेशन पर मनोज उसे पकड़ लेता है। दूसरों के पंगों में टांग अड़ाने वाला अर्जुन स्टेशन पर मनोज की जम कर धुनायी करता है और सोनाक्षी को भगा ले जाता है। इसके बाद की पूरी फिल्म सोनक्षी और अर्जुन के लगातार भागते रहने, गुंडों से लड़ने और गाने बजाने में बीतती जाती है। पर्दे पर दिखने के लिए राज बब्बर जैसे बड़े एक्टर ने मामूली पुलिस कर्मी का रोल निभा लिया यह देख कर दुख हुआ। सचमुच बहुत क्रूर है हिंदी सिनेमा। कमल हासन जैसे महान एक्टर की बेटी ने फिल्म में आइटम डांस किया है, यह भी एक खबर है। नये साल की पहली साधारण फिल्म।

निर्देशक: अमित रविन्द्रनाथ शर्मा
कलाकारः अर्जुप कपूर, सोनाक्षी सिन्हा, मनोज बाजपेयी, श्रुति हासन, राजेश शर्मा 
संगीत: साजिद वाजिद




Monday, December 29, 2014

अगली

फिल्म समीक्षा

काले तंत्र की क्रूर कथा : अगली

धीरेन्द्र अस्थाना

अनुराग कश्यप का एक और बेहतरीन प्रोजेक्ट : अगली। क्रूर तंत्र की काली कथा बयां करने का एक नया अंदाज और सिनेमा का एक नया पाठ। कितना कठिन संधर्ष किया है इस बंदे ने तब जा कर कहीं यह बॉलीवुड में अपनी खुद की लकीर खींच पाया है। अगली समाज के धुले पुछे लोगों के कुरूप चेहरों की पड़ताल करती है। इस फिल्म के हीरो हीरोइन इसकी कहानी है और उस कहानी को विमर्श में ढाल देने का अंदाज उसका क्राफ्ट है। इस फिल्म को इसलिए भी देखा जाना चाहिए ताकि पता चले कि अच्छा सिनेमा कैसे बुना और रचा जाता है। यह सौ करोड़ के क्लब में शामिल होने वाली फिल्म भले ही ना हो लेकिन सौ बरस के बेहतरीन सिनेमा की एक फिल्म अवश्य है। रोनित रॉय, राहुल भट्ट, तेजस्वनी कोल्हापुरे, सुरवीन चावला इन सभी कलाकारों ने अपने किरदार में जान लड़ा दी है। ये सब समय के हाथों पिटे हुए चरित्र हैं। राहुल एक स्ट्रगलर एक्टर है जिसे अब तक किसी भी फिल्म में मौका नहीं मिला है। उसका अपनी बीबी तेजस्वनी से तलाक हो चुका है और वह हर शनिवार अपनी बेटी कली को अपने साथ ले जाता है। तेजस्वनी ने राहुल को छोड़ एक कठोर, निर्मम पुलिस ऑफिसर रोनित रॉय से शादी कर ली है लेकिन इस रिश्ते में भी उसके हाथ हताशा और वंचना ही आयी है। इस दौरान तेजस्वनी और राहुल की बेटी कली को एक उचक्का उठा ले जाता है। कली को बांध कर छुपाने के बाद वह उच्चका एक सड़क दुर्घटना में मारा जाता है। राहुल कली के किडनेप की खबर लिखाने पुलिस के पास जाता है और खुद ही अपहरण के शक में घर लिया जाता है। अनुराग ने यह बताने की कोशिश की है कि बच्ची के अपहरण की सही खोज कोई नहीं करता। सब इस अपहरण के नाम पर अपनी निजी कुंठाएं और दुश्मनी तथा फायदे सिद्ध करना चाहते हैं। रोनित को राहुल को फंसा कर अपने कॉलेज के दिनों की दुश्मनी निकालनी है। तेेजस्वनी का भाई बहन से फिरौती की रकम मांग कर ऐश करना चाहता है। राहुल का दोस्त रोनित से पैसे एेंठना चाहता है। तेजस्वनी अपने पति के कू्रर और ठंडे व्यवहार से आहत और दुखी है। सब अपने अपने हिस्से की एक थकी हुयी लड़ाई लड़ रहे हैं जबकि वह बच्ची जिसका अपहरण हुआ था एक गली में बंघी सड़ रही है। जिस जगह से बच्ची का अपहरण हुआ था अगर उस जगह के आस पास की पुलिस महकमा तलाशी लेता तो शायद लड़की को बचा लिया जाता। अपहरण कर्ता की जिस बुआ के साथ पुलिस अंत में सख्ती बरतती है उसके साथ अगर शुरू में ही सख्ती से पेश आती तो शायद बंघक लड़की तक पहुंचा जा सकता था। यही तो है अनुराग कश्यप का अंदाज। उन काले कोनों को उजागर करना जहां किसी की नजर नहीं जा पाती। अवश्य देख लें। कहानी, एक्टिंग, निमार्ण सब कुछ बेमिसाल है।

निर्देशक : अनुराग कश्यप
कलाकारः रोनित रॉय, राहुल भट्ट, तेजस्वनी कोल्हापुरे, सुरवीन चावला
संगीत : जीवी प्रकाशराव




Sunday, December 21, 2014

पी के

फिल्म समीक्षा

एलियन की प्रेम कहानी: पी के

धीरेन्द्र अस्थाना

जब यह खबर बाहर आयी कि इस बार आमिर की फिल्म में कोई संदेश नहीं है। कि वह शुद्ध कॉमेडी फिल्म है जो दर्शकों को हंसा हंसा कर लोटपोट कर देगी। फिल्म के ट्रेलर से भी कोई अंदाजा नहीं लगा पा रहा था और आमिर खान के इंटरव्यूज से भी इस बात का खुलासा नहीं हो रहा था कि आखिर पीके नाम की इस फिल्म की कहानी क्या है। जो भी हो दिल यह मानने को तैयार नहीं था कि आमिर खान जैसा मिस्टर परफैक्शनिस्ट सिर्फ कॉमेडी करके दर्शकों का दिल बहलाएगा। इस काम के लिए तो बॉलीवुड में एक्टरों की कतारें लगी हुयी हैं। तो क्या आमिर भी उसी कतार में? लेकिन फिल्म ने आंखों में पड़े सारे धुंधलके साफ कर दिये। फिल्म में न सिर्फ संदेश है बल्कि बड़ा करारा संदेश है। ऐसा संदेश कि जिसके लिए लोहे का कलेजा चाहिए। धर्म चाहे जो भी हो यह फिल्म हर धर्म के भगवान के मैनेजरों के खिलाफ युद्ध का ऐलान करती है। धर्म के ठकेदारों से टकराते टकराते यह फिल्म एक एलियन की खामोश प्रेम कहानी में ढल जाती है। इस एलियन और उसकी मासूमियत के माध्यम से निर्देशक राजकुमार हिरानी ने समाज के कई ज्वलंत मुद्दों को बेधक सवालों से बेपर्दा किया है। यह एलियन है आमिर खान जो अपने ग्रह से पृथ्वी पर आया है यह जानने के लिए कि क्या उनके ग्रह जैसा जीवन किसी और ग्रह पर भी है। उसके गले में एक लॉकेट है जो दरअसल उसका रिमोट कंट्रोल है। इसके जरिए वह अपने यान को बुलाकर वापस अपने ग्रह लौट सकता है। उसके ग्रह पर लोग नंगे रहते हैं इसलिए वह भी पृथ्वी पर नंगा ही उतरता है। लेकिन राजस्थान के जिस गांव में वह उतरता है वहां एक चोर उसका रिमोट छीन कर भाग जाता है। अब पृथ्वी की भाषा बोली आचरण व्यवहार और पोशाकों से कतई अनजान एक एलियन कैसे सर्वाइव करे। कुल मिला कर फिल्म का यही संघर्ष है और इस संघर्ष की प्रक्रिया में एलियन टकराता है खुदा के विभिन्न सौदागरों से। इसी दौरान उसकी मुलाकात टीवी रिपोर्टर अनुष्का शर्मा से होती है जो सरफराज नामक प्रेमी से धोखा खाए बैठी है। एलियन अनुष्का की तरफ आकर्षित होने लगता है और अंततः उसे प्यार कर बैठता है। चोर ने एलियन का रिमोट कंट्रोल देश के एक बहुत बड़े स्वामीजी को चालीस हजार में बेच दिया था। अनुष्का एलियन और स्वामीजी के बीच में एक टीवी शो करवा कर वह रिमोट वापस पाने का चक्कर चलाती है। ताकि एलियन फिर से अपने घर अपने ग्रह लौट सके। जब एलियन अपने ग्रह लौट रहा होता है तब उजागर होती है एलियन यानी पीके की खामोश प्रेम कहानीे। लेकिन तब तक तो दोनों के जीवन में बहुत कुछ बुनियादी रूप से बदल चुका होता है। जिसे अनहुआ नहीं किया जा सकता। फिल्म शब्द और उसके अर्थ का एक नया पाठ भी आपके सामने रखती है जिससे गुजरते समय आप आवाक रह जाएंगें।सुंदर, मार्मिक, बेहतरीन और अर्थपूर्ण फिल्म है जिसमें मनोरंजन का भी भरपूर ध्यान रखा गया है। अनुष्का और आमिर दोनों ही अब तक के नये लुक में हैं। एक करिश्माई फिल्म जिसका जादू सिर पर देर तक चढ़ा रहता है। अवश्य देखें। 

निर्देशक: राज कुमार हिरानी
कलाकारः आमिर खान, अनुष्का शर्मा, बोमन ईरानी, सुशांत सिेह राजपूत, संजय दत्त, सौरभ शुक्ला
संगीत: शांतनु मौइ़त्रा



Thursday, December 18, 2014

एक्शन जैक्सन

फिल्म समीक्षा
एक्शन जैक्सन केवल एक्शन
धीरेन्द्र अस्थाना
पता नहीं दर्शकों को कैसे पता लग जाता है कि कौन सी फिल्म देखनी है और कौन सी नहीं। वरना तो जितना इस फिल्म का प्रचार हुआ है उसे देख कर लग रहा था कि अजय की यह फिल्म कहीं उनकी ही सुपर हिट फिल्म सिंघम का रिकॉर्ड न तोड़ दे। मगर अजय देवगन जैसा आजमाया हुआ एक्शन स्टार, सुपर हिट सोनाक्षी और प्रभु देवा जैसे हिट निर्देशक के बावजूद दर्शकों ने फिल्म को ठुकरा दिया। कुल तीस चालीस लोग अपने साथ यह एक्शन पैक्ड नाटक देखने पहुंचे थे। दरअसल दिक्कत यह है कि बार बार यह लिखने के बावजूद कि सिनेमा की सफलता के लिए एक अदद अच्छी और तार्किक कहानी का होना बहुत जरूरी है, निर्माता निर्देशक बस कहानी पर ही ध्यान नहीं देते। उनकी लोकेशन लाजवाब, उनका बजट बेमिसाल, उनका गीत संगीत धमाल। गायब है तो सिर्फ एक अच्छी और थोड़ी सी नयी कहानी। एक्शन जैक्शन में तो नयी या अच्छी क्या कहानी ही नहीं है। पूरी फिल्म आरंभ से अंत तक सिर्फ मारधाड से भरी है। इंटरवल के बाद थोड़ा सा कॉमिक रिलीफ दिया गया है जो बहुत बेतुका है और फिल्म की थोड़ी बहुत लय को भी गड़बड़ा देता है। फिल्म की सबसे बड़ी विशेषता उसके गाने और हिमेश रेशमिया का संगीत है। सभी गाने बहुत पहले ही हिट हो चुके हैं। हिमेश को सिर्फ संगीत में ही रहना चाहिए। वही उनका असली मुकाम है। बड़े ही अजीबो गरीब चेहरों वाले खलनायकों को तो सिनेमा वाले पकड़ ही लाते हैं लेकिन इस बार मनस्वी ममगांई नाम की जिस लड़की को खलनायिका के रूप में उतारा गया है वह काबिले तारीफ है। वह अपने लुक से ही नहीं अपने पूरे हाव भाव से भी वैंप लगती है। डर है कि कहीं इस नयी लड़की को अब सिर्फ ऐसे ही रोल ना ऑफर होने लगें। सोनाक्षी सिन्हा को देखकर अजय देवगन का यह कहना कि जब जब पैंट उतारता हूं, सामने आ जाती है, बहुत भद्दा और अश्लील लगता है। इस डायलॉग को एवॉइड किया जा सकता था लेकिन सिनेमा जो ना कराए। सोनाक्षी ने अपने हिसाब से मनोरंजक काम किया है लेकिन वह फिर से मोटापे की तरफ बढ़ रही है। यमी गौतम के लिए ज्यादा स्पेस नहीं था। जितना था उसमें उसने अपना होना जस्टीफाई किया। अब बचे अजय देवगन। वह डबल रोल में हैं। दोनों गुंडे हैं। एक लोकल एक इंटरनेशनल। दोनों की जिंदगी में एक अदद लड़की आती है और दोनों अपराध की दुनियां से निकल कर साफ सुथरी जिंदगी बिताना चाहतें हैं। मगर ऐसा होता थोड़े ही है। एक बार जो अंधेरी गलियों में उतर गया उसका रौशन सड़क पर लौटना संभव ही नहीं है। एक अजय मुंबई का लोकल गुंडा है दूसरा अजय एशिया के सबसे बड़े डॉन का राइट हैंड है। दोनो को अपनी अपनी प्रेमिकाओं के लिए अच्छा आदमी बनना है लेकिन भाई लोग बनने ही नहीं देते। अब क्या करें। एक ही रास्ता है कि येन केन प्रकारेण जुर्म और जुल्म के सरदारों का सत्यानाश करो और फिल्म की हैप्पी एंडिंग को अंजाम दो। यही रास्ता इस फिल्म के लिए भी आजमाया गया है। डॉन का अंत होता है और दोनों देवगन अपनी अपनी प्रेमिकाओं के साथ प्यार की खुशनुमा गली में उतर जाते हैं। जो मारधाड और मारकाट के शौकीन हैं उनके लिए यह फिल्म टकाटक है। बाजार के खिलाफ जाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। 

निर्देशक: प्रभु देवा
कलाकारः अजय देवगन, यमी गौेतम, सोनाक्षी सिन्हा, मनस्वी ममगांई
संगीत: हिमेश रेशमिया