Monday, January 19, 2015

अलोन


फिल्म समीक्षा
अजब भूत की भ्रमित दास्तान: अलोन 
धीरेन्द्र अस्थाना
जब हम अपने बचपन के दिनों में रहते थे तब कोहरा, महल, बीस साल बाद, वह कौन थी, गुमनाम जैसी रहस्यमय और रोमांचक फिल्में देखा करते थे। ये फिल्में अपनी रोचकता के कारण हिट भी होती थीं। इन सब फिल्मों का एक कॉमन, प्रगतिशील तथ्य यह होता था कि आत्मा की चहलकदमी मानव निर्मित साजिश सिद्ध हो जाती थी। यह छठे सातवें दशक का सिनेमाई यर्थाथ था। वक्त बदला। हम कंप्यूटर युग में उतरे मगर सिनेमा इस मोर्चे पर पिछड़ गया। उसने डर का कारोबार करते करते आत्मा या भूत को सही साबित कर दिया। डर के इस व्यापार को राम गोपाल वर्मा ने अपनी फिल्म भूत से उंचाई पर पहंुचाया और इसके बाद तो भूतों को लेकर उटपटांग फिल्मों का सिलसिला ही चल निकला। अलोन इसी सिलसिले की नयी कडी है जो दर्शकों को डराने के बजाय बेजार और बोर करती है। एक समय था जब बिपाशा बसु की गिनती बॉलीवुड की टॉप टेन अभिनेत्रियों में होने लगी थी लेकिन उन्होंने जिस तरह की थकी और बेतुकी फिल्मों का चुनाव किया उसके चलते उन्हें अलोन जैसी ढीली ढाली और कमजोर फिल्मों का हिस्सा बनना पड़ रहा है। इस फिल्म में वह डबल रोल में हैं। अंजना और संजना नाम की दो जुडवां बहने अपनी किशोर उम्र में करण सिंह से प्यार करती हैं। करण संजना से प्यार करता है जबकि अंजना करण से। करण दस साल बाद लंदन से लौट रहा है। करण को रिसीव करने के लिए संजना एयरपोर्ट जाना चाहती है जबकि अंजना इसमें बाधक बन रही है। संजना अंजना को मार देती है और सर्जरी के जरिए अपना बदन अंजना से अलग कर लेती है। अंजना की लाश घर के आउट हाउस में गाड़ दी जाती है। संजना का विवाह करण के साथ हो जाता है। दोनों मुंबई में रहते हैं जबकि संजना का मायका केरल में है। मां बीमार पड़ती है और संजना तथा करण को वापस केरल जाना पड़ता है जहां से संजना भाग कर आयी थी क्योंकि वहां अंजना की ढेर सारी यादें है। केरल प्रवास में संजना के पीछे अंजना की आत्मा पड़ जाती है। आवाजों और दृश्यों से निर्देशक ने दर्शकों को डराने की बहुत कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो पाये। दर्शक डर के दृश्यों में हंस रहे थे। फिर अंजना का भूत संजना के जिस्म में प्रवेश कर जाता है और करण के साथ अपनी हवस को शांत करता है। करण समझता है कि यह उसकी बीबी संजना है जबकि होती वह अंजना है। फिर एक तांत्रिक संजना के जिस्म से अंजना का भूत तो उतार देेता है लेकिन उस भूत को नष्ट नहीं कर पाता। फिल्म के अंत में जब इस भूत को नष्ट कर दिया जाता है तब यह रहस्योद्घाटन होता है कि संजना ने अंजना को नहीं बल्कि अंजना ने संजना को मारा था और संजना बन कर करण से विवाह किया था। करण अंजना के साथ रहने से मना कर देता है क्योंकि उसने तो संजना से प्यार किया था। अंजना करण को मारने के लिए चाकू निकाल लेेती है। संजना की आत्मा अंजना को आग में जला देती है और करण को बचा लेती है। यह सवाल अनुत्तरित है कि अगर अंजना जिंदा रह गयी थी तो बुरे काम क्या संजना जैसी अच्छी आत्मा कर रही थी? फिल्म देखनी है या नहीं यह दर्शकों के अपने विवके पर है।

निर्देशक: भूषण पटेल
कलाकारः करण सिंह ग्रोवर, बिपाशा बसु, जाकिर हुसैन
संगीत: अंकित तिवारी, जीत गांगुली




No comments:

Post a Comment