Wednesday, February 11, 2015

हवाईजादा

फिल्म समीक्षा
जिद और जुनून की उड़ान : हवाईजादा 
धीरेन्द्र अस्थाना
आज के दौर में जब डबल मीनिंग वाले नहीं सिंगल मीनिंग वाले अश्लील संवादों को सेंसर पास कर रहा हो, हवाईजादा जैसी फिल्म बनाना जुनून ही तो है। न मारधाड़, न सेक्स, न आईटम सांग, न गालियां। दर्शक क्यूं आते? एक संजीदा और मकसद के लिए बनी फिल्म का बैंड बज गया। कुल जमा पच्चसी तीस दर्शक जबकि इसी के साथ रिलीज खामोशियां पर दर्शक जुट रहे थे। वह एडल्ट फिल्म है। सन 1895 के गुलाम भारत के समय में खड़ी बहुत धीमी गति वाली हवाईजादा को इस मकसद से बनाया गया है कि आज के दर्शक यह जान सकें कि राइट बंधुओं के हवाईजहाज उड़ाने से आठ साल पहले मुंबई के एक युवक तलपदे ने दुनियां का पहला जहाज बना कर उसमें उड़ान भरी थी। जबकि पहली हवाई उड़ान का श्रेय विदेश के राइट बंधुओं के नाम दर्ज है। इतने रूखे, वैज्ञानिक विषय में रोचकता भरने के लिए निर्देशक ने उसमें एक प्रेम कहानी भी डाली है और कुछ गाने भी रखे हैं। फिल्म अपने मकसद के कारण अच्छी है लेकिन उसका इंटरवल से पहले वाला हिस्सा इतना स्लो हो गया है कि बोरियत की हद को छू लेता है। सन 1895 का समय, संस्कृति और परिवेश की रचना भी निर्देशक की परिकल्पना का कमाल है। जाहिर है तब का मुंबई दर्शाने के लिए सेट ही खड़ा किया गया होगा। आयुष्मान खुराना की एक और महत्वपूर्ण फिल्म। बतौर एक्टर उन्होंने जादू रच दिया है। लेकिन उनके कुछ कॉमिक सीन में साफ पकड़ में आता है कि वह राजकपूर को अपने अभिनय में उतार रहे हैं। दो ही लोगों की फिल्म है। मिथुन चक्रवर्ती और आयुष्मान खुराना की। गुरू के बाद इस फिल्म में मिथुन ने फिर से यादगार अभिनय किया है। विमान बनाने की परिकल्पना उन्हीं की है। अपने इस सपने को आयुष्मान की आंखों में रोप कर वह विदा लेते हैं। इस सपने को आयुष्मान जिद और जुनून की तरह अपने भीतर बसा लेता है। अंग्रेज सिपहसालारों के विरोध के बावजूद वह इस सपने को उड़ान के पंख देता है और बंबई की जनता देखती है कि गुलाम भारत का पहला आजाद नागरिक उड़ रहा है। आयुष्मान के बनाये हवाईजहाज में आयुष्मान और उसकी प्रेमिका पल्लवी शारदा के उड़ने के सीन पर फिल्म समाप्त हो जाती है। इसे अनिश्चित रखा गया है कि जहाज सफलता पूर्वक जमीन पर उतर सका या हवा में ही नष्ट हो गया। क्योंकि आयुष्मान को सिर्फ हवाईजहाज उड़ाने का हुनर पता था। उसे रोकने, मोड़ने या उतारने के ज्ञान से वह वंचित था। पल्लवी शारदा के पास करने को कुछ खास नहीं था तो भी कुछ सीन में अपने खामोश इमोशन से वह प्रभावित करती है। वह थियेटर करती है  और तब थियेटर में काम करने वाली कलाकार को नाचने वाली बाई कहा जाता था जिसका दर्जा वेश्या के समान माना जाता था। इस वेश्या को अपने जीवन में संगिनी का दर्जा दे कर आयुष्मान सामाजिक क्रांति का भी उदघोष करता है। कभी कभार ऐसी फिल्में देखलेने में कोई हर्ज नहीं है जो आपके सामान्य ज्ञान में इजाफा करती हों।

निर्देशक : विभू विरेन्द्रपुरी
कलाकारः आयुष्मान खुराना, पल्लवी शारदा, मिथुन चक्रवर्ती
संगीत : रोचक कोहली, विशाल भारद्वाज




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