Sunday, February 15, 2015

रॉय

फिल्म समीक्षा

प्यार जिंदगी में और पर्दे पर: रॉय 

धीरेन्द्र अस्थाना

जैसे सपने के भीतर एक सपना होता है, उसे सिर्फ मेहसूस करना होता है। उस एहसास को समझाना बहुत जटिल होता है। उसी तरह कई फिल्में भी अपनी बुनावट के स्तर पर इतनी जटिल और संवेदना के स्तर पर इतनी महीन होती हैं कि उनके बारे में तय करना मुश्किल हो जाता है कि उन्हें किस कैटेगरी में रखा जाए। बॉलीवुड में तो दो ही कैटेगरी प्रचलित हैं। फिल्म मासी है या क्लासी? मतलब आम दर्शक के लिए है या खास दर्शक के लिए। जाहिर है कि रॉय आम दर्शक के लिए नहीं है। जो आम दर्शक सिनेमाघर में भारी संख्या में आ गये थे वे रणबीर कपूर के झांसे में आ गये थे। उन बेचारों को मालूम नहीं था कि फिल्म उनके सिर के उपर से गुजरने वाली है। इसीलिए सिनेमाघर के एक चौथाई दर्शक इंटरवल में भाग गये और एक चौथाई फिल्म खत्म होने से आधा घंटा पहले ही निकल गये ।तो क्या जिन्होंने पूरी फिल्म को देखा वे बुद्धिमान दर्शक थे? उनकी बातचीत से लगा कि वे फिल्म को समझने की कोशिश कर रहे थे। मगर यही वह जगह है जहां रूक कर यह कहना पड़ रहा है कि हिंदी सिनेमा के साथ यह कितनी बड़ी ट्रेजेडी है कि सिनेमा तो आगे बढ़ गया है लेकिन उसका आम दर्शक पीछे ही छूटा रह गया है। यह विरोधाभास कैसे सधेगा और इस विरोधा भास के बीच हम हिंदी फिल्मों से ऑस्कर पाने की उम्मीद भी रखते हैं। जो भी हो दर्शकों को फिल्म बिल्कुल समझ नहीं आयी। ऐसा सिनेमाघर में फिल्म देखने के दौरान उनकी खीझी हुयी प्रतिक्रियाओं से पता चल रहा था। जबकि फिल्म को समझने का नुक्ता बेहद मामूली था। अर्जुन रामपाल मुख्य धारा सिनेमा का सफलतम डायरेक्टर है। वह कमर्शियल फिल्में बनाता है जो करोड़ों कमाती है उसकी बनायी गन और गन टू सुपर हिट हो चुकी हैं। अब वह गन थ्री पर काम कर रहा है। पटकथा लिखनी अभी बाकी है। इसके बावजूद गन थ्री के लिए प्रोड्यूसर मिल चुका है। सिगरेट, शराब, रोमांस अर्जुन का शगल है। रिश्तों को लेकर ना तो वह गंभीर है ना ही कमिटेड। गन थ्री की शूटिंग के लिए वह मलेशिया जाता है जहां इत्तेफाक से आयशा यानी जैकलीन जैसी क्लासी फिल्म बनाने वाली डायरेक्टर भी अयी हुयी है। अर्जुन के पास पटकथा नहीं है लेकिन आयशा के साथ अफेयर होते ही उसे अपनी कहानी मिल जाती है। वह आयशा के साथ मोहब्बत करने के साथ साथ रणबीर कपूर की कहानी पर पटकथा लिखने और उसे शूट करने में लग जाता है। रणबीर एक इंटरनेशनल चोर है जो गन थ्री में एक पेंटिग चुराने के मिशन पर है। असल में यह फिल्म के भीतर फिल्म वाली तकनीक पर बनी कथा है। एक दिन आयशा अर्जुन की फिल्म की पटकथा पढ़ लेती है और उसकी जिंदगी से निकल जाती है। आयशा को लगता है कि अर्जुन उसकी जिंदगी पर फिल्म बना रहा है। आयशा के जाते ही फिल्म की पटकथा भी रूक जाती है और शूटिंग भी। कुछ उपकथाओं के बाद फिल्म की बाकी पटकथा लिखी जाती है और फिल्म फिर से शूट हो कर पूरी होती है। फिल्म पूरी होने के साथ ही जीवन में अर्जुन और पर्दे पर रणबीर की लव स्टोरी को एक सुखांत मिलता है। जैकलीन का डबल रोल है। वह अर्जुन की आयशा है जो खुद भी एक डायरेक्टर है। वह रणबीर की टिया है जो पेंटर और आर्ट कलेक्टर है। उसी के घर से रणबीर पेंटिग चुरा ले गया है जिसे अंत में लौटा कर वह अपना प्रेम पा लेता है। बड़ी ही मर्मस्पर्शी लेकिन बारीक सी फिल्म है जिसे देख कर दिमागी स्तर पर बड़ा सुकून सा मिलता है कि कुछ जुनूनी लोग हैं जो संजीदा सिनेमा को ले कर संजीदा हैं। अच्छी बात है कि अब ऐसे लोगों को भी प्रोड्यूसर मिलने लगे हैं। फिल्म के सारे गाने पहले से ही सुपर हिट है।ं एक बार तो देखो भाई लोगो। सभी कलाकारों ने बेहतरीन काम किया है।
निर्देशक: विक्रमजीत सिंह
कलाकार: रणबीर कपूर, जैकलीन फर्नांडिस, अर्जुन रामपाल, अनुपम खेर
संगीत: अंकित तिवारी, मीत ब्रदर्स





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