Tuesday, November 18, 2014

किल दिल

फिल्म समीक्षा

एक कहानी कितनी बार 

धीरेन्द्र अस्थाना

 हिंदी का कमर्शियल सिनेमा बाजार के ऐसे दुश्चक्र में फंसा हुआ है कि लीक से थोड़ा भी इधर उधर होने का रिस्क उठाने से डरता है। हांलाकि इस डर का कोई बड़ा लाभ भी नहीं मिलता। फिल्म देखकर सामान्य दर्शक भी दो एक नेगेटिव कमेंट पास कर ही देते हैं। किल दिल के साथ भी यही ट्रेजडी घटित हुई है। पचासों बार फिल्मायी गयी कहानी एक बार फिर सामने है बस कलाकार नये हैं। कहानी में कोई नया डायमेंशन, कोई नयी उपकथा ही डाल देते तो भी कुछ राहत मिलती। नये ट्र्रैक के नाम पर इंटरवल के बाद कॉमेडी तड़का लगाया है जो बोरियत पैदा करता है। दो अनाथ बच्चे हैं जिन्हें एक डॉन पालता पोसता है। दोनों भागते भागते बड़े हो जाते हैं और डॉन के शूटर में बदल जाते हैं। दोनों जिगरी यार हैं। फिर एक की जिंदगी में एक लड़की का प्रवेश होता है। लड़की का साथ पा कर लड़के का सुधरने का मन करता है जिस कारण डॉन नाराज हो जाता है। तो भी बागी लड़का सुधार के रास्ते पर ही चलता जाता है और लड़की का दिल जीत लेता है। अब एंटी क्लाइमेक्स यह कि जब लडका सुधर जाता है तो लड़की को पता चल जाता है कि उसका आशिक तो शूटर था। लड़की रिश्ता तोड़ लेती है। फिर दो चार बेतुकी घटनाओं के बाद लड़का लड़की के प्यार की हैप्पी एंडिंग हो जाती है। डॉन का साम्राज्य नष्ट हो जाता है। इसी पुरानी कहानी को रणवीर सिंह, अली जफर और परिणति चोपड़ा जैसे नयी पीढ़ी के प्रतिभाशाली कलाकारों के जरिए फिर से पर्दे पर उतारा गया है। केवल अंग्रेजी में नाम रख देने से थोड़े ही अठारह से पच्चीस साल के युवक फिल्म देखने दौड़े चले आएंगे। डॉन बने गोविंदा ने भैयाजी के किरदार में पूरी फिल्म को लूट लिया। नहीं समझ आया कि जब गोविंदा इतना शानदार अभिनय कर सकते हैं तो फिर कई दफा फूहड़ कॉमेडी के शिकंजे में क्यूं फंस जाते हैं। रणवीर और अली पूरी दिल्ली में कहीं भी किसी भी गली, नुक्कड़, होटल, बाजार और कार में जा कर शूट कर आते हैं और शहर में प्रशासनिक स्तर पर कोई हरकत भी नहीं होती। कहीं कोई खबर भी नहीं चलती या छपती। फिल्म में गानों की भी भरमार है। शायद दो घंटे सात मिनट की फिल्म में चालीस पचास मिनट तो गानों के फिल्मांकन में निकल गये होंगे। यह अलग बात है कि गाने गुलजार के हैं इसलिए स्वाभाविक रूप से अच्छे हैं और शंकर अहसान लाय ने उन्हें बेहतर ढंग से संगीतबद्ध भी किया है। परिणति अपनी अदाओं को रिपीट कर रही है। ऐसा करने से उन्हें बचना चाहिए और बहन प्रियंका के बहुरंगी, बहुआयामी अभिनय से पाठ लेना चाहिए। लुटेरा और रामलीला जैसी फिल्मों के बाद रणवीर सिंह का किल दिल करना शोभा नहीं दिया। ऐसी फिल्में करेंगे तो उनके पास बी ग्रेड फिल्मों की कतार लग जाएगी। फिल्म को केवल गोविंदा के अभिनय के कारण देखा जा सकता है। शाद अली भी सोच लें कि उन्हें इम्तियाज अली, अनुराग कश्यप और विशाल भारद्वाज की तरह अपनी लकीर खींचनी है या फिर पिटी पिटाई राह पर चलना है।
निर्देशक : शाद अली
कलाकारः रणवीर सिंह, अली जाफर,परिणति चोपड़ा, गोविंदा
संगीत : शंकर अहसान लाय




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