Wednesday, August 27, 2014

मर्दानीः

फिल्म समीक्षा

मर्दानीः लड़ाई अभी बाकी है

धीरेन्द्र अस्थाना


जब मुख्य धारा सिनेमा के जोनर से कोई सार्थक फिल्म निकलती है तो बड़ी खुशी मिलती है। स्मगलिंग, उसका भंडाफोड़ और मारधाड़ वाली फिल्में बहुत पहले से बनती आ रही हैं। इस अर्थ में मर्दानी कोई महान फिल्म नहीं है। मर्दानी का महत्व उसके संदेश और उसके निर्माण में निहित यथार्थवादी स्पर्श से है। यह अपनी मेकिंग के दौरान पूरी तरह वास्तविक बनी रहती है। इसके एक्शन सीन भी रियल हैं और अपराधी तक पहुंचने का रानी का रास्ता भी विश्वसनीय और जमीन से जुड़ा हुआ है। फिल्म के अंत में रानी केवल एक ही गुंडे से भिड़ती है। वह मारती भी है और मार खाती भी है। फिल्म बहुत चुस्त दुरूस्त भी है। कहीं कोई झोल नजर नहीं आता। कोई रोमांटिक सीन नहीं। कोई लव सांग नहीं। अपनी बेटी जैसी लड़की प्यारी के अचानक गायब हो जाने के कारणों को तलाशती क्राईम ब्रांच की इंस्पेक्टर रानी मुखर्जी का टकराव उस गैंग से हो जाता है जो न सिर्फ ड्रग की तस्करी करता है बल्कि अलग अलग शहरों से नाबालिग लड़कियों को उठा कर उन्हें सेक्स रैकेट में धकेल देता है। अपनी खोजबीन की प्रक्रिया में रानी गैंग लीडर ताहिर राज भसीन के एक खतरनाक गुंडे को मार देती है और दूसरे को उठा लेती है। यह उठाया हुआ गुंडा रानी को गैंग लीडर के कई रहस्यों की जानकारी देता है। सबसे महत्वपूर्ण यह कि एक वकील साहब हैं जो ताहिर के जोड़दार हैं और गैंग में नम्बर दो का महत्व रखते हैं। वकील साहब दिल्ली में रहते हैं। रानी अपना जाल बिछा कर वकील के अड्डे पर पहुंचने में सफल हो जाती है। लेकिन वकील खुद को गोली मार लेता है। ताहिर बौखला जाता है। रानी उसे अब तक नहीं ढूंढ पायी है। वकील की बाडी से मिले कुछ सामानों के जरिए वह ताहिर के घर पहुंच जाती है। वहां ताहिर की मां रानी को दवा वाली चाय पिला कर बेहोश कर देती है। फिर ताहिर आ कर रानी को बांध देता है। ताहिर के विशाल घर से ही चलता है सेक्स रैकेट। फिर कैसे बंधी हुयी रानी खुद को आजाद करती है, एक मंत्री, ताहिर की मां और ताहिर के खास लोगों को गिरफ्तार करती है, और आखिर कार पहले ताहिर को खुद मारती है फिर उन पचासों अगवा की गयी लड़कियों के हवाले कर देती है जो वहां कैद है, यह आपको फिल्म में ही देखना चाहिये। क्योंकि यही फिल्म का रहस्य है। ये अगवा की गयी लड़कियां ताहिर को पीट पीट कर उसे जान से मार डालती हैं। यही है उन नाबालिग लड़कियों का प्रतिशोध और फिल्म का संदेश। नये खलनायक ताहिर ने बहुत शानदार काम किया है। उसका अभिनय सहज और कूल है। वह बहुत आगे जाने वाला है। अठारह साल से ज्यादा उम्र की सभी लड़कियों को यह फिल्म जरूर देखनी चाहिए। रानी के अभिनय में अभी जान बाकी है।


निर्देशक : प्रदीप सरकार
कलाकारः रानी मुखर्जी , ताहिर राज भसीन, प्रियंका शर्मा
संगीत : जूलियस पकियम




1 comment:

  1. अच्छी समीक्षा .... रानी यक़ीनन एक बेहतरीन अदाकारा हैं ....

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