Wednesday, August 27, 2014

बॉबी जासूस


फिल्म समीक्षा

बॉबी जासूस : पुरुषों की गली में दखल

धीरेन्द्र अस्थाना

विद्या बालन का आत्मविश्वास देखते ही बनता है। वह निरंतर सोलो फिल्म करने वाली स्टार बनती जा रही हैं। फिल्म ठीक ठाक है। संदेश भी देती है। अर्थपूर्ण भी है। लेकिन पता नहीं क्यों ज्यादा दर्शक फिल्म देखने नहीं पहुंचे। पूरी फिल्म विद्या बालन की है। उनके अपोजिट अली फजल सिर्फ औपचारिकता के लिए हैं और विद्या के सहायक जैसे रोल में हैं। विद्या एक उच्च मध्यवर्गीय मुसलिम परिवार की सबसे बड़ी बेटी है जिसका आचरण, हाव भाव और रहन सहन उसे पिता ( राजेन्द्र गुप्ता) की नजरों में बागी जैसा साबित करता है। फिल्म की लोकेशन हैद्राबाद की है। इसलिए विद्या बालन से लेकर राजेन्द्र गुप्ता तक को हैदराबादी हिंदी बोलनी पड़ी है। सुप्रिया पाठक विद्या की मां के किरदार में हैं और उनके हिस्से में ज्यादा संवाद नहीं आए हैं। तो भी कई जगह अपनी बॉडी लैंगवेज से उन्होंने साबित किया कि वह एक प्रतिभावान एक्ट्रेस हैं। विद्या को जासूस बन कर आड़े टेढे़ केस सुलझाने का शौक है। यह पुरुषों की गली में दखल है। वह करमचंद और सीआइडी जैसे जासूसी धारावाहिकों को देख कर बड़ी हुइ है। उसने अपना नाम बॉबी जासूस रखा है। जब एक सरदारजी की डिटेक्टिव कंपनी में उसे नौकरी नहीं मिलती तो वह खुद की जासूसी कंपनी बना लेती है। वह अपने दोस्त इंटरनेट वाले के दड़बे नुमा ऑफिस से अपना कारोबार शुरू करती है। फिल्म का हीरो अली फजल भी अपने रिश्ते तुड़वाने का काम देने के कारण विद्या के करीब आता जाता हैं। विद्या के अंदर बेचेनी है उसे बड़े थकाउ और भिखमंगे टाइप के काम हल करने पड़ रहे हैं जबकि वह कोई शानदार जानदार केस हल करना चाहती है। यह काम उसे मोटी फीस चुका कर अनीस खान देता है। वह पचास हजार रूपये में एक लड़की को ढूंढने का काम देता है। यह लड़की मिल जाती है तो वह एक लाख रूपये दे कर एक और लड़की को ढुंढवाता है। अंत में पांच लाख रूपये दे कर एक लड़के को तलाशने का काम देता है। दोनो लड़कियों को ढूंढने की बचकानी कोशिशों में फिल्म का इंटरवल आ जाता है। इंटरवल के बाद फिल्म यू टर्न लेती है। विद्या बालन को अपने क्लाइंट अनीस खान पर ही शक हो जाता है कि वह इतने भारी पैसे दे कर काम क्यों करवा रहा है। अब विद्या अनीस खान के पीछे लग जाती है। इस मोड़ पर आ कर फिल्म रोचक हो जाती है और उसमें दिलचस्पी भी बढ़ जाती है। इस दौरान परिवार के मोर्चे पर भी कई घटनाएं घटती हैं जो विद्या के प्रोफेशनल जीवन की राह में रोड़े अटकाने का काम करती हैं। अंत में फिल्म का क्लाइमेक्स पूरी फिल्म का मर्म ही बदल देता है और फिल्म एक संवेदनशील आख्यान के रूप में ढल जाती है। फिल्म का अंत ही उसकी यूएसपी है इसलिए अंत अपनी आंख से देखें। फिल्म में विद्या बालन, सुप्रिया पाठक, राजेन्द्र गुप्ता और किरण कुमार ने उत्तम काम किया है। संगीत कर्णप्रिय है। सुनने में अच्छा लगता है। फिल्म को एक बार देखा जा सकता है। खासकर विद्या के विभिन्न जासूसी रूपों का मजा लेने के लिए।
निर्देशक : समर शेख
कलाकारः विद्या बालन, अली फजल, अरजन बाजवा, राजेन्द्र गुप्ता, किरण कुमार,सुप्रिया पाठक
संगीत : शांतनु मोईत्रा






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