Monday, September 30, 2013

मद्रास कैफे


फिल्म समीक्षा

सत्ता के षड्यंत्र की मद्रास कैफे

धीरेन्द्र अस्थाना


जो थोड़ी बहुत फिल्में हिंदी सिनेमा का चेहरा बदलने के जुनून और साहस में लगी हुई हैं उनमें जॉन अब्राहम द्वारा प्रोड्यूस की गयी मद्रास कैफेका नाम भी शामिल होने वाला है। भले ही इस फिल्म को बॉक्स आफिस पर भारी सफलता न मिले लेकिन पहले दिन जितने दर्शक इस फिल्म को देखने पहुंचे उससे यह भरोसा भी कायम हुआ कि बेहतर और संजीदा फिल्म देखने वालों की संख्या में इजाफा हो रहा है। अपने इंटरव्यू में जॉन ने इसे एक पॉलिटिकल थ्रिलर बताया है लेकिन हकीकत में यह सत्ता के षड्यंत्रों को बेनकाब करने वाली फिल्म है जो यह भी दर्ज करती है कि राजनीति की डोर कैसे-कैसे दुर्गम गलियारों में जा रही है। यह इन दो तथ्यों पर भी उंगली रखती है कि पैसों के लालच में कैसे कुछ महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हुए लोग देश की सुरक्षा को भी दांव पर लगा देते हैं और कैसे कुछ लोग अपने परिवार की कुर्बानी देकर भी देश की सुरक्षा के सामने लौह कवच की तरह तने रहते हैं। निर्देशक शूजीत सरकार ने अपनी बेहतरीन प्रतिभा और ज्ञान से एक अत्यंत परिपक्व राजनैतिक फिल्म बनायी है लेकिन फिल्म निर्माण में कहीं कहीं जिस तरह वह तथ्यों से दूर चले गये हैं वह उनके भीतर के डर को रेखांकित करता है। पूरी दुनिया जानती है कि भारत के कौन से अत्यंत शक्तिशाली राजनैतिक नेता की तमिलनाडु में मानव बम का इस्तेमाल कर हत्या की गयी थी। उस महिला का नाम भी सब जानते हैं जिसने इस नेता को माला पहनायी थी और बम धमाके से खुद भी उड़ गयी थी। फिल्म में सही नाम लेने से बचा गया है लेकिन इसके बावजूद फिल्म कई जगह डॉक्यूमेंट्री सिनेमा में बदलती नजर आती है। यह पूरी तरह से केवल जॉन अब्राहम की ही फिल्म है जो एक रॉ एजेंट बने हैं। फिल्म के दो महिला किरदार नरगिस फाखरी एक विदेशी पत्रकार के रूप में उनके मिशन को सपोर्ट करने के काम आती हैं। दूसरी राशि खन्ना ने जॉन की पत्नी के रोल में उनके पारिवारिक जीवन की उपकथा बुनी है। फिल्म तकनीकी रूप से भी बेहद उच्च स्तरीय है और संपादन के मोर्चे पर भी कसी हुई है। फिल्म में एक भी गाना नहीं है। गाने की जरूरत भी नहीं थी। एकमात्र गीत अंत में बैकग्राउंड में बजता है। श्रीलंका और तमिल समस्या के नाजुक मुद्दे को फिल्म पूरी संवेदनशीलता के साथ उठाती है। जरूर देखें।

निर्देशक:     शूजीत सरकार
कलाकार:     जॉन अब्राहम, नरगिस फाखरी, राशि खन्ना
संगीत:       शांतनु मोहत्रा

24 अगस्त 2013


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