Saturday, June 16, 2012

फेरारी की सवारी


फिल्म समीक्षा

सपने करें ‘फेरारी की सवारी’

धीरेन्द्र अस्थाना

विधु विनोद चोपड़ा भी बाजार में बैठे हुए फिल्मकार हैं लेकिन जब हिंदी के बाजार में ‘एकलव्य’ जैसी फिल्म पिट जाती है तो वह ‘राउडी राठौर’ नहीं बनाते। वह ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ और ‘थ्री ईडियट्स’ बनाते हैं, जो बाजार को भी साध लेती हैं और अच्छे सिनेमा का दायरा भी बड़ा करती हैं। विधु मानते हैं कि फिल्मकार एक रचनात्मक व्यक्ति होता है और जैसे एक साहित्यकार या पत्रकार की अपने समय और समाज के प्रति जिम्मेदारी होती है, ठीक वैसे ही फिल्मकार की भी होती है। ‘फेरारी की सवारी’ बनाकर विधु ने एक बार फिर अपने दायित्व को अंजाम दिया है। पैसा तो देर-सबेर यह फिल्म भी कमा ही लेगी। फिलहाल तो अर्थपूर्ण सिनेमा की गैलरी में ‘फेरारी’ ने अपनी ‘जगह’ कमाई है। पूरी फिल्म क्रिकेट के बहाने मुसीबतों पर संघर्ष की, अवसाद पर उल्लास की, अंधेरों पर रोशनी की और राजनीति पर ईमानदारी की जीत का आख्यान है। यह गली-कूचों के कॉमन मैन द्वारा देखे जा रहे विराट सपनों के पूरा हो सकने की सच्चाई का रेखांकन भी है। कॉमेडी के ताने-बाने में बनायी गयी यह फिल्म हमारे समय और समाज के सबसे खतरनाक हालात का गंभीर विमर्श है। विधु बड़े सितारों को लेकर भी फिल्म बनाते हैं लेकिन इस फिल्म से उन्होंने साबित कर दिया है कि सफलता और सार्थकता की कसौटी केवल और केवल एक अच्छी कहानी ही होती है। निर्माताओं को यह क्यों समझ नहीं आता है कि वह केवल अच्छी फिल्में बनाएं। दर्शकों को एक दिन अच्छे सिनेमा की लत लग जाएगी। दादर की एक गली में क्रिकेट खेलने वाले एक बच्चे की कहानी के माध्यम से निर्देशक ने क्रिकेट जैसे ग्लैमरस खेल के पीछे चलती घिनौनी राजनीति को भी बख्शा नहीं है। फिल्म थोड़ी लंबी हो गयी लेकिन कहानी की रोचकता में झोल नहीं आने देती। बिना हीरोईन वाली ‘फेरारी की सवारी’ में विद्या बालन ने अपने लावणी डांस से एक अजब ही जादू बिखेरा है। एक गरीब बच्चे के जज्बाती सपनों को पंख देने के लिए अपनी जान लड़ा देने वाले पिता के किरदार को शरमन जोशी ने जबर्दस्त ऊंचाई दी है। इस फिल्म से बालीवुड में उनकी गाड़ी तो निकल पड़ी है। फिल्म की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसका एक भी किरदार नकली नहीं लगता। शायद इस तरह की मौलिक कहानियां रचने में तीन-चार साल का वक्त लगना जायज है। कोई बात नहीं। लगे रहो विधु विनोद चोपड़ा। 

निर्माता: विधु विनोद चोपड़ा
निर्देशक: राजेश मापुस्कर
कलाकार: शरमन जोशी, बोमन ईरानी, ऋत्विक सहोरे, (चाइल्ड आर्टिस्ट)
संगीत: प्रीतम चक्रवर्ती

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