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Saturday, August 21, 2010

लफंगे परिंदे

फिल्म समीक्षा

इलीट क्लास के ‘लफंगे परिंदे‘

धीरेन्द्र अस्थाना

अपने बॉलीवुड में कौन-कौन से खास लोग हैं जो झोपड़पट्टी या बैठी चाल या गरीब गुरबों की बस्ती में जीवन जीते किरदारों को विश्वसनीय, सहज और वास्तविक ढंग से पर्दे पर उतार सकते हैं? जो गली कूचों की टपोरी भाषा ही नहीं बोल सकते वैसा जीवन जीवंत भी कर सकते हैं? आम आदमी का जीवन जी सकने में सफल ये खास कलाकार हैं - आमिर खान, सलमान खान, संजय दत्त, अरशद वारसी, नसीरुद्दीन शाह, ओमपुरी, महेश मांजरेकर, करीना कपूर, विद्या बालन, तब्बू, मिथुन चक्रवर्ती, जैकी श्राफ, नाना पाटेकर, रणवीर शौरी, इरफान खान, अक्षय कुमार, सुनील शेट्टी, परेश रावल, उर्मिला मातोंडकर, प्रियंका चोपड़ा आदि। लेकिन अंग्रेज व्यक्तित्व वाले नील नितिन मुकेश और इलीट क्लास की दीपिका पादुकोन तो कहीं से भी ’लफंगे परिंदे‘ नजर नहीं आते। न हावभाव से, न चालढाल से, न संवाद अदायगी से, न बॉडी लैंग्वेज से। इसीलिए गली-कूचों की एक जीवंत, मर्मस्पर्शी और जिंदादिल दास्तान ’निर्जीव तमाशे‘ में बदलती नजर आती है। इलीट क्लास के ’लफंगे परिंदे‘ लोअर डेप्थ (तलछट) का यथार्थ साकार नहीं कर सके। हर निर्देशक का अपना ’जोनर‘ होता है जो उसे पहचानना चाहिए। इसी तरह हर कलाकार की भी अपनी सीमा होती है लेकिन जो उस सीमा का सफलतापूर्वक अतिक्रमण कर लेता है वह महान कलाकारों की श्रेणी में शुमार हो जाता है। जैसे सबसे बड़ा उदाहरण अमिताभ बच्चन। अगर दुर्भाग्य से इस फिल्म में पीयूष मिश्रा और केके मेनन जैसे अद्वितीय कलाकार नहीं होते तो ’लफंगें परिंदे‘ शायद उड़ भी नहीं पाते। फिल्म का सबसे ज्यादा प्रभावशाली पक्ष है इसका गीत-संगीत, उसके बाद ध्यान खींचते हैं संवाद। नील नितिन मुकेश के व्यक्तित्व पर किसी अमीरजादे का चरित्र ही सहज लग सकता है। दीपिका पादुकोन ने अंधी लड़की के किरदार में घुसने की जी-तोड़ कोशिश की है लेकिन फिल्म ’ब्लैक‘ में रानी मुखर्जी ने इस चरित्र के संदर्भ में जो लंबी लकीर खींच दी है उसे पार करना शायद संभव नहीं है। ’लफंगें परिंदे‘ की जो बुनियादी प्रेम कहानी है वह यकीनन बहुत संवेदनशील और ’ट्रेजिक‘ है। इस कहानी को मुंबई की किसी ’चाल‘ या ’वाड़ी‘ के बजाय पैडर रोड, नरीमन प्वाइंट अथवा बांद्रा के ’पॉश परिवेश‘ में घटता दिखाते तो शायद फिल्म का भविष्य कुछ और होता। उस परिवेश में दोनों प्रमुख पात्र ज्यादा ’रीयल‘ लगते। इस फिल्म की एकमात्र कमजोरी इसका अनरीयल होना ही है। इतना जरूर है कि फिल्म का कथानक लगातार बांधे रखता है।

निर्माता: आदित्य चोपड़ा
निर्देशक: प्रदीप सरकार
कलाकार: नील नितिन मुकेश, दीपिका पादुकोन, केके मेनन, पीयूष मिश्रा
गीत: स्वानंद किरकिरे
संगीत: आर.आनंद