Friday, October 10, 2014

देसी कट्टे


फिल्म समीक्षा

दिल, दोस्ती और जुनून के देसी कट्टे 

धीरेन्द्र अस्थाना

अभावग्रस्त बचपन जीते दो दोस्त। नौ दस की उम्र से ही देसी कट्टे हाथ में थामे स्कूली बच्चों के टिफिन से उनका भोजन थाम नौ दो ग्यारह होते दोस्त। जुर्म की दुनिया के बेताज बादशाह बनने का सपना आंखों मे लिए भागते भागते बड़े हो जाने वाल दोस्त। कथा कहने का पुराना ढर्रा। अपराध जगत के बादशाह आशुतोष राणा के सबसे बड़े और खतरनाक सिपहसालार की हत्या कर उसकी जगह स्थापित होन वाले दोस्त - पाली और ज्ञानी। मतलब अखिल कपूर और जय भानुशाली। कहानी का लोकेल कानपुर। गुंडई, मारामारी, नाचगाना, आईटम सब कुछ कस्बाई अंदाज में। पचासों बार बनी एक और क्राईम फिल्म। लेकिन औरों से जुदा इसलिए कि बैकड्रॉप खेल का। अगर फिल्म बहुत धीमी न होती तो अच्छी की श्रेणी में जा सकती थी। मगर एक्शन, रोमांस, ड्रामा सबकुछ इतना सुस्त और उनींदा कि आदमी बोर हो जाए। दोनों दोस्तों की जिंदगी में सुनील शेट्टी का आगमन होता है जो सेना का रिटायर मेजर है। वह उन्हें समझाता है कि अपने हुनर का उपयोग देश के लिए करो। अच्छे शूटर हो तो देश के लिए शूटिंग में मेडल जीत कर लाओ। वह उन्हें निशाना लगाने की सख्त ट्र्रेनिंग देता है। अब उन्हें नेशनल चैंपियनशिप में भाग लेना है लेकिन तभी दोनों दोस्तों के जीवन में आशुतोष राणा फिर से मौजूद हो जाता है, उन्हें अपने साथ जुड़ने का आग्रह करता हुआ। यह है मध्यांतर। दो दोस्तों की राहें अलग अलग हो जाती हैं। एक फिर से जुर्म की दुनियां में उतर जाता है। दूसरा खेल में अपना करियर बनाने चल पड़ता है। अपराधी है अखिल कपूर जिसके चेहरे पर किसी भी तरह के भाव उभरते ही नहीं हैं। प्लेयर है जय भानुशाली जिससे आगे चल कर कुछ उम्मीदें की जा सकती हैं। साशा आगा और टिया बाजपेयी को ज्यादा कुछ करने का मौका ही नहीं मिला। जितना मिला उसमें भी वह किसी छोटे कस्बे के आर्टिस्ट की तरह रह गयी। सुनील शेट्टी, अखिलेन्द्र मिश्रा, आशुतोष राणा और मुरली शर्मा जैसे सीनियर फिल्म में छाये रहे। अपने काम से भी, अपने अंदाज से भी। इस फिल्म से गायक कैलाश खेर संगीतकार बने। उनका संगीत कहानी को गति भी देता रहा और परिभाषित भी करता रहा। कहानी में तनाव तब पैदा होता है जब शूटिंग के नेशनल चैंपियन जय भानुशाली को विश्व चैंपियनशीप में भाग लेने की अनुमति नहीं मिल पाती क्योंकि उसका आपराधिक रिकॉर्ड है। जय और सुनील दोनों टूट जाते हैं। किस कारण जय को अनुमति मिलती है और किस तरह वह विश्व प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल लेने में कामयाब होता है और क्यों उसकी कामयाबी को अंजाम देते हुए उसका दोस्त अखिल कपूर मारा जाता है, यह सब जानने के लिए तो फिल्म को एक बार देखना बनता है। हॉकी, क्रिकेट, दौड़, बॉक्सिंग के बाद शूटिंग के खेल पर रोचक फिल्म है।

निर्देशक : आनंद कुमार
कलाकारः, सुनील शेट्टी, अखिल कपूर, जय भानुशाली, साशा आगा, टिया बाजपेयी, आशुतोष राणा, अखिलेन्द्र मिश्रा।
संगीत : कैलाश खेर





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