Tuesday, March 19, 2013

जॉली एलएलबी


फिल्म समीक्षा

यथार्थ की जमीन पर ‘जॉली एलएलबी‘

धीरेन्द्र अस्थाना

कई तरह के संघर्षांे से गुजरने के बाद निर्देशक सुभाष कपूर को अपनी मर्जी के हिसाब से फिल्म बनाने को मिली तो उन्होंने मौके को हाथ से नहीं जाने दिया। अब तक दर्शक बड़े पर्दे पर सिनेमाई कोर्ट कचहरी को देखते आये हैं लेकिन सुभाष कपूर की फिल्म ‘जॉली एलएलबी‘ लगभग यथार्थ की जमीन पर खड़ी की गयी है। हिंदुस्तानी कोर्ट कचहरी की भीतरी और बाहरी वास्तविक तस्वीर फिल्म में देखने को मिलती है। पेड़ों के नीचे बैठे हुए वकील, मुवक्किलों के पीछे पड़ते स्ट्रगलर वकील, कोर्ट रूम में एसी का न होना, स्थापित वकीलों का रौब रुतबा और छोटे वकीलों की लाचारगी, कोर्ट रूम में आरोपी के खड़े होने के लिए कठघरे तक का न होना आदि आदि कई ऐसे छोटे छोटे दृश्य हैं जिनके माध्यम से निर्देशक ने कानूनी सिस्टम का वास्तविक चेहरा पकड़ने का प्रयास किया है। फिल्म की कहानी भी लार्जर दैन लाइफ नहीं बल्कि रीयल लाइफ की घटनाओं से प्रेरित है। एक बड़े घराने की अय्याश औलाद द्वारा हिट ऐंड रन केस को कहानी का बेस बनाया गया है। लड़का शराब के नशे में तेज स्पीड गाड़ी को फुटपाथ पर चढ़ा कर भाग जाता है। हादसे में पांच लोग मारे जाते हैं लेकिन बड़े वकील की दलीलें और दौलत का अंबार केस को खारिज करवा देता है। अरशद वारसी एक स्ट्रगलर वकील है जिसके पास कोई काम नहीं है। वह अपने शहर मेरठ को छोड़ भाग्य आजमाने दिल्ली आता है रातों रात मशहूर होने के लिए। वह ‘हिट ऐंड रन‘ केस को फिर से खुलवाने के लिए एक जनहित याचिका दायर करता है। उसके इस साहस से बड़ा वकील बोमन ईरानी हैरान है। हैरान है बड़ा घराना भी और पैसे से बिके हुए लोग भी जिन्होंने सिस्टम में सेंध लगा कर उसे जर्जर और अविश्वसनीय बनाया हुआ है। इस केस के खुलने के दौरान पैसों के लालच से लेकर अरशद की मारपीट तक तमाम हथकंडे अपनाये जाते हैं मगर अरशद अपने कदम वापस नहीं लेता। फिर किस तरह वह नये नये सबूत इकट्ठे करता है और गवाह जुटाता है यह सब काफी दिलचस्प ढंग से बुना गया है। पूरी फिल्म अरशद वारसी, बोमन ईरानी और सौरभ शुक्ला (जज के किरदार में) के कंधों पर खड़ी हुई है। वैसे भी पूरी फिल्म एक कोर्ट रूम ड्रामा है इसलिए इसमें अमृता राव नहीं भी होतीं तो कोई फर्क नहीं पड़ता। फिल्म का सबसे कमजोर पक्ष उसके दो गाने हैं जो न तो फिल्म को आगे बढ़ाते हैं न उसमें दिलचस्पी जगाते हैं। नॉनसेंस फिल्मों की भीड़ में एक ठीक ठाक समझदार सी फिल्म है जिसमें आम आदमी को जीतता हुआ दिखाया गया है।

निर्देशक: सुभाष कपूर
कलाकार: अरशद वारसी, अमृता राव, बोमन ईरानी, सौरभ शुक्ला, हर्ष छाया, मोहन अगाशे
संगीत: कृस्ना

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