Monday, March 11, 2013

साहेब, बीवी और गैंगस्टर रिटर्न्स


फिल्म समीक्षा

इश्क के उजाड़ में ‘साहेब, बीवी और गैंगस्टर रिटर्न्स‘ 

धीरेन्द्र अस्थाना

सिनेमा में इधर एक नयी पीढ़ी आ गयी है जो कमर्शियल स्तर पर मीनिंगफुल सिनेमा बनाने की जद्दोजहद में जुटी है। फिल्म समीक्षक विनोद भारद्वाज ने ऐसा सिनेमा बनाने वालों को ‘लोकप्रिय आर्ट फिल्मकार‘ कहकर वर्गीकृत किया है। अनुराग कश्यप और तिग्मांशु धूलिया ऐसे ही फिल्मकार हैं। तिग्मांशु की नयी फिल्म ‘साहेब, बीवी और गैंगस्टर रिटर्न्स‘ भी कमर्शियल चोले में कला फिल्म सरीखी ही है। फिल्म को बाजार में भी सफलता दिलाने की मंशा के चलते ही इन फिल्मकारों ने यह नया रास्ता खोजा है और इसमें कोई हर्ज भी नहीं है। आखिर ‘दबंग‘ ही क्यों चले। ‘देव डी‘, ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर‘ या फिर ‘साहेब, बीवी और गैंगस्टर रिटर्न्स‘ क्यों न चलें? और चलीं। दर्शकों का एक बड़ा वर्ग तिग्मांशु धूलिया की इस फिल्म को देखने थियेटर पहुंचा। इरफान खान तो एक सधे हुए सहज अभिनेता हैं और उन्होंने अपनी प्रतिमा तथा योग्यता के अनुरूप ही अपने काम से फिल्म को एक ऊंचाई बख्शी है लेकिन सोहा अली खान और जिमी शेरगिल ने अपने राजसी अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। माही गिल भी पीछे नहीं रहीं हैं। कभी उजाड़ किरदारों की मलिका रहीं मीना कुमारी की बरबस ही माही ने याद दिला दी। दरअसल पूरी फिल्म ही राजे रजवाड़ों के बीते हुए समय के बैक ड्रॉप पर इश्क का एक ऐसा उजाड़ है जिसमें फिल्म के चारों प्रमुख किरदार अपना जख्म लिए दर-दर भटक रहे हैं। फिल्म के संवाद न सिर्फ चुटीले हैं बल्कि चेतना से चिपक भी जाते हैं। पटकथा में कोई झोल नहीं है। दृश्यों में दोहराव नहीं है। संपादन कसा हुआ है। पूरी फिल्म शुरू से अंत तक दिलचस्प और चुस्त दुरुस्त है। फिल्में आम तौर पर त्रिकोण वाली होती हैं लेकिन यहां प्यार का चौकोण है। माही जिमी से, जिमी सोहा से सोहा इरफान से और इरफान अपने भीतर की प्रति हिंसा से इश्क करता है। दिलचस्प बात यह है कि इन सभी का इश्क एक ऐसा बीहड़ है जिसके कूल किनारे स्पष्ट नहीं हैं। किसी के पास अपने प्यार के लिए कोई बंदरगाह नहीं है। इसीलिए पूरी फिल्म उत्सव नहीं प्यार का मर्सिया बन जाती है। इस फिल्म की एक चमत्कारी प्रतीति यही है कि यहां इश्क अपनी परिणति में गुलो गुलजार नहीं, रुदन का बियाबान हो गया है। फिल्म के बीच बीच में राजनीति के, खून खराबे क,े आइटम डांस के, सेक्स के, मजाकिया पलों के छोटे छोटे दौर चलते रहते हैं जो एक गंभीर फिल्म में रोचकता बनाए रखने वाले ‘फिलर्स‘ का काम करते हैं। मुग्धा गोड्से पर फिल्माया आइटम नंबर ‘मीडिया से कह दूं खुले आम‘ एक नया अंदाज लिए हुए है और अश्लील भी नहीं है। अच्छी बात है कि ये फिल्में तथाकथित मुख्य धारा के सिनेमा में अपना ‘स्पेस‘ बनाने में कामयाब हो रही हैं।

निर्देशक: तिग्मांशु धूलिया
कलाकार: इरफान खान, जिमी शेरगिल, माही गिल, सोहा अली खान, राज बब्बर, प्रवेश राणा
संगीत: संदीप चौटा

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