Monday, September 26, 2011

मौसम

फिल्म समीक्षा

संवेदनशील लेकिन बोझिल ’मौसम‘

धीरेन्द्र अस्थाना

पंकज कपूर अभिनय की दुनिया का एक बड़ा नाम हैं। सिर्फ एक्टर ही नहीं हैं बल्कि रंगकर्म के प्रख्यात अध्येता भी हैं। इसलिए समझ नहीं आया कि क्यों और किस मोह के चलते उन्होंने तीन घंटे लंबी फिल्म बना दी। ‘दो घंटे का सिनेमा’ वाला दौर आये वॉलीवुड में जमाना बीत गया है तो फिर एक संवेदनशील और नाजुक सी प्रेम कहानी कोई तीन घंटे में फैली क्यों देखना चाहेगा। नतीजा, एक खूबसूरत और दिलचस्प फिल्म को दर्शक बीच में ही छोड़ कर जा रहे थे। दंगों के बैकड्रॉप पर पहले भी प्रेम कहानियां रची गयी हैं। ‘मौसम‘ भी उसी कतार की फिल्म है लेकिन एक ही फिल्म में बहुत कुछ नहीं सब कुछ दिखा देने की चाहत में पंकज ने फिल्म को बोझिल बना दिया है। वरना तो शाहिद कपूर और सोनम कपूर का अपना अपना विशेष युवा दर्शक वर्ग बन गया है। ‘मौसम‘ में शाहिद और सोनम ने डूब कर अभिनय किया है। और अपने-अपने चरित्रों को विश्वसनीयता तथा गहराई के साथ जिया है लेकिन दोनों के मिलकर बिछुड़ जाने के बाद फिर मिलने में इतनी देर लगा दी गयी है कि दर्शक का धैर्य जवाब दे जाता है। मिलन से पहले एक प्रसंग तो ऐसा आता है जब दर्शक मान बैठते हैं कि यह एक दुखांत फिल्म है, कि शाहिद ने सोनम को खो दिया है। लेकिन कुछ ही देर बाद पंकज इस थीसिस की एंटी थीसिस रचते नजर आते हैं और गुजरात दंगों की शिकार बनी सोनम अचानक शाहिद द्वारा बचा ली जाती है। दोनों के जीवन में प्यार का ‘मौसम’ लौट आता है। बड़ी सहजता से इस फिल्म को दो घंटे का बनाया जा सकता है। एक घंटे का संपादन इस फिल्म को ज्यादा सहज, गतिशील और कविता जैसा लयात्मक बना सकता था। पर पंकज की चेतना पर पता नहीं क्यों दंगे ज्यादा हावी थे। कश्मीर के दंगे, बाबरी मस्जिद का ध्वंस, मुंबई बम विस्फोट, अमेरिका में ट्विन टावर संहार, गुजरात के दंगे। इतने मार तमाम दंगों के साथ-साथ कारगिल युद्ध। इसके बावजूद पंकज बड़े पर्दे पर एक लंबी ही सही प्रेम कविता रचने में कामयाब हो गये हैं। दुख इसी बात का है कि एक बेहतरीन फिल्म को ‘प्रतिबद्ध दर्शकों’ का संग साथ ही मिल सकेगा। बॉलीवुड में चल रही समकालीन अश्लील हवाओं के विरुद्ध एक रचनात्मक मौसम संभव करने वाली इस फिल्म को देखना एक कर्तव्य बन जाता है। फिल्म के गाने पहले ही हिट हो चुके हैं।

निर्देशक: पंकज कपूर
कलाकार: शाहिद कपूर, सोनम कपूर, अनुपम खेर, अदिति शर्मा, सुप्रिया पाठक
संगीत: प्रीतम चक्रवर्ती

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